सत उपदेश (हरिगीतिका छंद)
किरपा करे कोनो नही,बिन काम होवै नाम ना।
बूता घलो होवै बने,गिनहा मिले जी दाम ना।
चोरी धरे धन नइ पुरे,चाँउर पुरे ना दार जी।
महिनत म लक्ष्मी हा बसे,देखौ पछीना गार जी।
संगी रखव दरपन सहीं,जेहर दिखावय दाग ला।
गुणगान कर धन झन लुटै,धूकै हवा झन आग ला।
बैरी बनावौ मत कभू,राखौ मया नित खाप के।
रद्दा बने चुन के चलौ,अड़चन ल पहिली भाँप के।
सम्मान दौ सम्मान लौ,सब फल मिले इहि लोक मा।
आना लगे जाना लगे,जादा रहव झन शोक मा।
सतकाम बर आघू बढ़व,संसो फिकर ला छोड़ के।
आँखी उघारे नित रहव, कतको खिंचइया गोड़ के।
बानी बनाके राखथे ,नित मीठ बोलव बोल गा।
अपने खुशी मा हो बिधुन,ठोंकव न जादा ढोल गा।
चारी करे चुगली करे ,आये नही कुछु हाथ मा।
सत आस धर सपना ल गढ़,तब ताज सजही माथ मा।
पइसा रखे कौड़ी रखे,सँग मा रखे नइ ग्यान गा।
रण बर चले धर फोकटे,तलवार ला तज म्यान गा।
चाटी हवे माछी हवे , हाथी हवे संसार मा।
मनखे असन बनके रहव,घूँचव न पाछू हार मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
किरपा करे कोनो नही,बिन काम होवै नाम ना।
बूता घलो होवै बने,गिनहा मिले जी दाम ना।
चोरी धरे धन नइ पुरे,चाँउर पुरे ना दार जी।
महिनत म लक्ष्मी हा बसे,देखौ पछीना गार जी।
संगी रखव दरपन सहीं,जेहर दिखावय दाग ला।
गुणगान कर धन झन लुटै,धूकै हवा झन आग ला।
बैरी बनावौ मत कभू,राखौ मया नित खाप के।
रद्दा बने चुन के चलौ,अड़चन ल पहिली भाँप के।
सम्मान दौ सम्मान लौ,सब फल मिले इहि लोक मा।
आना लगे जाना लगे,जादा रहव झन शोक मा।
सतकाम बर आघू बढ़व,संसो फिकर ला छोड़ के।
आँखी उघारे नित रहव, कतको खिंचइया गोड़ के।
बानी बनाके राखथे ,नित मीठ बोलव बोल गा।
अपने खुशी मा हो बिधुन,ठोंकव न जादा ढोल गा।
चारी करे चुगली करे ,आये नही कुछु हाथ मा।
सत आस धर सपना ल गढ़,तब ताज सजही माथ मा।
पइसा रखे कौड़ी रखे,सँग मा रखे नइ ग्यान गा।
रण बर चले धर फोकटे,तलवार ला तज म्यान गा।
चाटी हवे माछी हवे , हाथी हवे संसार मा।
मनखे असन बनके रहव,घूँचव न पाछू हार मा।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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