Monday 12 March 2018

आल्हा छंद

लड़ाई मैना के(आल्हा)

बड़े बाहरा उगती बेरा,हो जावै सूरज  सँग लाल।
अँधियारी रतिहा घपटे तब,डेरा डारे बइठे काल।

घरर घरर बड़ चले बँरोड़ा,डारा पाना धूल उड़ाय।
दल के दल मा रेंगय चाँटी,चाबे  त  लहू आ जाय।

घुघवा  घू  घू  करे  रात  भर,सुनके  जिवरा जावै काँप।
झुँझकुर झाड़ी कचरा काड़ी,इती उती बड़ घूमय साँप।

बनबिलवा नरियावत भागै,करै कोलिहा हाँवे हाँव।
मनखे  मनके आरो नइहे,नइहे तीर तखार म गाँव।

डाढ़ा टाँग टेड़गी रेंगय,घिरिया डर डर मुड़ी हलाय।
ऊद भेकवा भागे पल्ला,भूँ भूँ के रट कुकुर लगाय।

खुसरा रहि रहि पाँख हलावै,गिधवा देखै आँखी टेंड़।
जुन्ना  हावय  बोइर  बम्भरी,मउहा कउहा पीपर पेड़।

आसमान  मा  डारा पाना,जड़ हा धँसे हवे पाताल।
पानी बरसे रझरझ रझरझ,भीगें ना कतको डंगाल।

उही  डाल  मा  मैना  बइठे,गावै   मया  प्रीत   के  गीत।
हवै खोंधरा जुग जोड़ी के,कुछ दिन जावै सुख मा बीत।

दू ठन पिलवा सुघ्घर होगे, मया ददा दाई के पाय।
चारा चरे ददा अउ दाई,छोड़ खोंधरा दुरिहा जाय।

सुख  मा  बीतै  जिनगी  सुघ्घर , आये नहीं काल ला रास।
अब्बड़ बिखहर बिरबिट करिया,नाँग साँप हा पहुँचे पास।

जाने  नहीं  उड़े  बर पिलवा,पारै  डर  मा बड़ गोहार।
इती उती बस सपटन लागे,मारे बिकट साँप फुस्कार।

उही  बेर  मा  मादा मैना ,अपन खोंधरा तीरन आय।
देख हाल ला लइका मनके,छाती दू फाँकी हो जाय।

तरवा  मा  रिस  चढ़गे ओखर,आँखी  होगे लाले लाल।
मोर जियत ले का कर सकबे,कहिके गरजे बइठे डाल।

पाँख हले ता चले बँड़ोड़ा,चमके बड़ बिजुरी कस नैन।
माते   लड़ई   दूनो  के   बड़,आसमान   ले  बरसे  रैन।

चाकू छूरी बरछी भाला,खागे नख के आघू मात।
बड़े बाहरा के सब प्राणी,देखे झगड़ा बाँधे हाथ।

पड़े  चोंच  के  मार साँप  ला,तरतर तरतर लहू बहाय।
लइका मन ला महतारी हा,झन रोवौ कहि धीर बँधाय।

उड़ा उड़ा के चोंच गड़ाये,फँस फँस नख मा माँस चिथाय।
टपके   लहू  पेड़   उप्पर  ले, जीव तरी  के  घलो  अघाय।

मादा   मैना   के  आघू  मा, बिखहर   डोमीं   माने  हार।
पहिली बेरा अइसन होइस,खाय रिहिस कतको वो गार।

जान  बचाके  भागे  बइरी,मैना  रण  मा  बढ़ चढ़ धाय।
पिलवा मन ला गला लगाके,फेर खुसी दिन रात पहाय।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

No comments:

Post a Comment