Monday 12 March 2018

अरविंद सवैया

######अरविंद सवैया######

                 1(का करही सरकार)
झगरा अउ झंझट फोकट के करबे तब का करही सरकार।
खुद आगि लगा बड़ बम्मर तैं बरबे तब का करही सरकार।
मनखे तन पा नित मीत मया चरबे तब का करही सरकार।
बिन चाँउर के बिरथा जँतली दरबे तब का करही सरकार।

                2(जाड़ पूस के)
मुँह ले निकले गुँगवा धुँगिया  बड़ लागय जाड़ त कापय चाम।
लइका मन संग सियान सबो जुरियाय खड़े अउ तापय घाम।
जमके जब जी जुड़ जाड़ जनाय सुहाय नहीं मन ला तब काम।
ठुठरे मनखे सँग गाय गरू बिहना रतिहा सब पूस के नाम।

               3(तुरकीन)
टुकनी सिर मा मुँह पान दबा बड़ हाँक लगाय हवे तुरकीन।
कतको रँग के बढ़िया बढ़िया ग चुड़ी धर आय हवे तुरकीन।
बहिनी मन तीर म लोर खड़े सबके मन भाय हवे तुरकीन।
पिवँरी ललहूँ सतरंग चुड़ी सबला पहिराय हवे तुरकीन।1

कतको रँग के टुकनी म चुड़ी धरके किँदरे सब गाँव गली म।
पहिचान हवे बहिनी मन संग हवे बड़ ओखर नाँव गली म।
चँवरा म कभू पसरा ह सजे त कभू बर पीपर छाँव गली म।
जब बार तिहार ह तीर रहे तब होवय चाँव ग चाँव गली म।2

             4(मजदूर)
पतला चिरहा कुरथा पहिरे कुहकी बड़ पारत हे मजदूर।
बड़ जाड़ जुलूम करे तब ले तन के जल गारत हे मजदूर।
धर जाँगर ला हथियार बरोबर जाड़ ल मारत हे मजदूर।
जड़काल लजा गुण गावत हे अपने तन बारत हे मजदूर।1

जब सूरज देव बरे बन आग तभो ग खड़े करिया तन चाम।
कतको तप ले कुछु होय नही चलथे बड़ ओखर गा नित काम।
पर जावय हाथ म लोर घलो मिलथे बड़ मुश्किल मा नित दाम।
नँदिया कस धार बहे तन ले कइसे लगही मजदूर ल घाम।2

बिजली चमके गरजे बरसे ग तभो बड़ आगर काम ह होय।
बरसात घरी भर भींगत भींगत रोज सुबे अउ साम ह होय।
बपुरा मजदूर खटे दिन रात तभो जग मा नइ नाम ह होय।
सब काम बुता सिर ओखर हे ग तभो कमती बड़ दाम ह होय।3


             5(बर बिहाव)
लइका मन ला जब देख सियान करे ग विचार त होय बिहाव।
मँगनी झँगनी गठजोर चले जुड़ जावय तार त होय बिहाव।
मड़वा ह गड़े अउ तेल चढ़े झुमथे परिवार त होय बिहाव।
जब प्रीत बढ़े ग गड़ाय मया पहिरावय हार त होय बिहाव।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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