Monday 12 July 2021

आ रे!बादर

 आ रे!बादर


अस  आड. असाड. म, फभे  नही|

नइ गिरही पानी,त दुख ल कबे नही|

तोपाय हे ढेला म,मोर सपना मोर आस|

तोर अगोरा हे रे! बादर,नही ते हो जही नास|

छीत दे चुरवा-चुरवा करके,

बीजा जाम जाय|

मोर हॉड़ी के इही सहारा,

सब कोई इहिच ल खाय|

खेत बनगे मरघट्टी,

मुरदा बनगे बीजा|

पानी छीत जिया ले,

कइसे मनाहू हरेली तीजा|


मोला सरग नही,बस फल चाही,

जांगर अऊ नांगर के पूरती|

लहलहाय रहे मोर खेती-खार,

तन-बदन म रही  फुरती|

मैं सपना सँजोथँव,

बस आस म खेती के|

लेथो करजा म कपड़ा-लत्ता,

टिकली-फुंदरी बेटी के|

मोर ले जादा कोन भला,

तोर नाम लेथे|

फेर तोर ले जादा तो सेठ-साहूकार मन,

मसका-पालिस वाले ल देथे|


पानी के बाँवत,पानी के बियासी,

पानी के पोटरई-पकई रे !बादर|

तोर रूप देख घरी-घरी घुरघुरासी लगथे,

का नइ दिखे तोला मोर करलई रे !बादर|

गोहार लगात हँव मैं,

गली-गली बेटा-बेटी संग|

सबो खेलथे मोर संग ,

झन खेल तैं, मोर खेती संग|

सुन के मोर कलपना,

लेवाल बन आय हे ब्यपारी|

बचाले बेचाय ले बॉचे भुँइया,

इही मोर भाई-बहिनी,

इही मोर बाप-महतारी|

भले मरे के बाद ,

फेक नरक म घानी दे दे|

फेर जीते जीयत झन मार,

मोर सपना ल समय म पानी दे दे|


        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)

           ९९८१४४१७९५

No comments:

Post a Comment