आ रे!बादर
अस आड. असाड. म, फभे नही|
नइ गिरही पानी,त दुख ल कबे नही|
तोपाय हे ढेला म,मोर सपना मोर आस|
तोर अगोरा हे रे! बादर,नही ते हो जही नास|
छीत दे चुरवा-चुरवा करके,
बीजा जाम जाय|
मोर हॉड़ी के इही सहारा,
सब कोई इहिच ल खाय|
खेत बनगे मरघट्टी,
मुरदा बनगे बीजा|
पानी छीत जिया ले,
कइसे मनाहू हरेली तीजा|
मोला सरग नही,बस फल चाही,
जांगर अऊ नांगर के पूरती|
लहलहाय रहे मोर खेती-खार,
तन-बदन म रही फुरती|
मैं सपना सँजोथँव,
बस आस म खेती के|
लेथो करजा म कपड़ा-लत्ता,
टिकली-फुंदरी बेटी के|
मोर ले जादा कोन भला,
तोर नाम लेथे|
फेर तोर ले जादा तो सेठ-साहूकार मन,
मसका-पालिस वाले ल देथे|
पानी के बाँवत,पानी के बियासी,
पानी के पोटरई-पकई रे !बादर|
तोर रूप देख घरी-घरी घुरघुरासी लगथे,
का नइ दिखे तोला मोर करलई रे !बादर|
गोहार लगात हँव मैं,
गली-गली बेटा-बेटी संग|
सबो खेलथे मोर संग ,
झन खेल तैं, मोर खेती संग|
सुन के मोर कलपना,
लेवाल बन आय हे ब्यपारी|
बचाले बेचाय ले बॉचे भुँइया,
इही मोर भाई-बहिनी,
इही मोर बाप-महतारी|
भले मरे के बाद ,
फेक नरक म घानी दे दे|
फेर जीते जीयत झन मार,
मोर सपना ल समय म पानी दे दे|
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
९९८१४४१७९५
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