गीत- होली मा हुड़दंग
होत हावय होली मा हुड़दंग---
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
फागुन के गाना नइहे,नइहे नँगाड़ा।
डीजे मा डोलत हें, पारा के पारा।।
कोई पीये हे दारू कोई भंग--
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
छोटे अउ बड़े के, नइहे लिहाज।
मान मर्यादा ऊपर, गिरगे हे गाज।
चारो कोती फदके हे जंग----
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
असत धरा देहे, सत ला होली मा।
जहर बरसत हावय, सबके बोली मा।
दया मया गय चुक्ता खंग-----
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
धीरे धीरे उठत हे, होली के डोली।
भीगें नइहे धोती, कुर्था साफा चोली।
कपड़ा लत्ता निच्चट हे तंग---
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
पियइया खवइया,नाचे अउ कुदे।
होगे पानी पानी, बने मनखे खुदे।
जावँव कते टोली के संग----
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
परब के मरम ला, जाने ना माने।
ताकत हें मनखे मन, जइसे गिधाने।
देख काँपत हे मोर अंग अंग---
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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