Sunday 13 March 2022

गीत- होली मा हुड़दंग

 गीत- होली मा हुड़दंग


होत हावय होली मा हुड़दंग---

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


फागुन के गाना नइहे,नइहे नँगाड़ा।

डीजे मा डोलत हें, पारा के पारा।।

कोई पीये हे दारू कोई भंग--

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


छोटे अउ बड़े के, नइहे लिहाज।

मान मर्यादा ऊपर, गिरगे हे गाज।

चारो कोती फदके हे जंग----

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


असत धरा देहे, सत ला होली मा।

जहर बरसत हावय, सबके बोली मा।

दया मया गय चुक्ता खंग-----

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


धीरे धीरे उठत हे, होली के डोली।

भीगें नइहे धोती, कुर्था साफा चोली।

कपड़ा लत्ता निच्चट हे तंग---

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


पियइया खवइया,नाचे अउ कुदे।

होगे पानी पानी, बने मनखे खुदे।

जावँव कते टोली के संग----

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


परब के मरम ला, जाने ना माने।

ताकत हें मनखे मन, जइसे गिधाने।

देख काँपत हे मोर अंग अंग---

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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