Wednesday 1 June 2022

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

 अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं सरग ले सुघ्घर,अउ मैं नरक के द्वार।

तै ठाहिल पटपर भाँठा,मैं चिखला कोठार।

तैं उर्वर बाहरा,अउ मैं बंजर भर्री।

मोर नैन झिमिर झामर,तोर नैन कर्री।

तोर जिनगी ताजमहल कस उज्जर,

अउ मोर जिनगी, करिया जेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,

तोर अउ मोर मेल गोरी।


छप्पन भोग माढ़े हवै,तोर चारो कोती।

चाबत हौं मैं नानकुन,सुख्खा जरहा रोटी।

खीर मेवा पकवान कस,तैं करे भूख के नास।

मैं हड़िया मा लटके हौं, बने चिबरी भात।

तैं हवा संग उड़ागेस,

अउ मैं बढ़त हौं जिनगी ल ढँकेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


आगर इत्तर माहुर मोहर,सेंट के भरमार के।

चंपा चमेली मोगरा कस,महके महार महार तैं।

तन धोवा निरमल हो जाथे, वो गंगा के धार तैं।

मोर झन पूछ ठिकाना,मैं खजवइय्या तेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


तैं कहाँ सरग के परी,उड़े अगास मा पंख लगाके।

मैं रेंगत हौं उलंड-घोलंड के,चिखला पानी मा सनाके।

संगमरमर के तैं ईमारत,तोर नाम जमाना मा छागे।

ओदरहा मोर ठौर ठिहा मा,नइ आये कोनो भगाके।

तै छाये क्रिकेट हाँकी कस,

मैं लुकाछुपउल के खेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।।


तैं कहाँ मथुरा अउ काँसी, मैं हरौं फाँसी के दासी।

तिहीं खींचे अपन करम के रेखा,मोर हवै बिगड़हा राशि।

चंपा चमेली कमल कुमुदिनी,गोंदा कस तैं गमके।

इती उती उड़ात हौं, मैं फूल बने बेसरम के।

तै कम्प्यूटर के सीपीयू,मैं सस्तहा सेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं कहाँ पिंकी अउ रिंकी,मैं बुधारू मंगलू।

तैं जनम के मालामाल,मैं जनमजात कंगलू।

मैं हँसिया अउ तुतारी,तैं कहाँ बारूद के गोला।

नवा डिजाइन के बैग तैं, अउ मैं चिरहा झोला।

मैं मरहा मेचका,अउ तैं मछरी व्हेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


बहुत पहिली(2005-06) के रचना

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