Saturday 11 June 2022

मन(जयकारी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मन(जयकारी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


जब तक मन मा हवै उमंग, तब तक हे जिनगी मा रंग।

मर जावै जब मन के आस, तब हो जावैं सबे निरास।


हबरे तब डर जर अउ दुक्ख, भागे नींद चैन अउ भुक्ख।

मन के जब हो जावै हार, नइ भावै तब घर संसार।


करे काट नइ अमरित धार, सूखय दया मया के नार।

होय ह्रदय के धड़कन  तेज, नींद घलो नइ देवै सेज।


सच अउ झूठ परख नइ पाय, कतको गिनहा कदम उठाय।

कतको खुद हो जावय राख, कतको करे दुसर ला खाख।


टूटय जब मनके अरमान, तब गड़ जावै अंतस बान।

बोली बयना बीख समान, अंतस मन ला देवै चान।


कतको ला नइ आवै लाज, करे काज बन धोखाबाज।

धोखा खाके जी घबराय, तभो हताशा मन मा छाय।


रखना चाही जिया कठोर, मार सके झन डर दुख जोर।

करना चाही कारज नाँप, लोटे झन अंतस मा साँप।।


मिले बखाना अउ ना श्राप, यहू बिगाड़े मन के ग्राफ।

करौ कभू झन दगा अनीत, दुवा कमावव मिलही जीत।


भरे दवा मा तनके घाव, मन बर चाही बढ़िया भाव।

आशा मया दया विश्वास, लावय जीवन मा उल्लास।


तन ले जादा मन हे रोठ, तेखर करथे दुनिया गोठ।

ओखर कभू होय नइ हार, मन दरिया अउ मन पतवार।


जेखर मन मा मातम छाय, तेखर जिनगी मा हे हाय।

छोट छोट दुख मा घबराय, हो निराश बस माथ ठठाय।


तन के थेभा मन हा ताय, मन हा सुख के दीप जलाय।

मन जिनगी के आवय आस, बुझ जावै ता जिनगी नास।


अलहन के पथ हवै हजार, सुख सत के दरवाजा चार।

जिंहा होय सुख के बौछार, उँहा भिंगावौ तन मन यार।


दया मया सत राखव मीत, हार भागही होही जीत।

जीते बर जिनगी के जंग, हवै जरूरी आस उमंग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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