Friday 7 October 2022

सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  "धरती दाई "


चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।

बंजर होगे खेत खार सब,काय फसल उपजावौं।


सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े।

मोर नैन  मा निंदिया नइहे,संसो दिनदिन बाढ़े।

नाँव  बुझागे  रुख राई के,धरा  बरत हे बम्बर।

मन भीतर मा मातम छागे,काय करौं आडम्बर।

सिसक सकत नइ हावौं दुख मा,कइसे राग लमावौं।

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।


मोटर  गाड़ी  कार  बनत हे,उपजै सोना चाँदी।

नवा जमाना जल थल जीतै,पतरी परगे माँदी।

तरिया  परिया  हरिया  हरगे,बरगे मया ठिठोली।

हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,झरगे गुरतुर बोली।

नव जुग हे अँधियार कुँवा कस,भेड़ी असन झपावौं।

चंदन  माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।


घुरय हवा पानी मा महुरा ,चूरय  धरती दाई।

सुरसा मुँह कस स्वारथ बाढ़य,टूटय भाई भाई।

हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।

नवा समै ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।

ठिहा ठौर के कहाँ ठिकाना,दरदर भटका खावौं।

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)



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