Tuesday 14 February 2023

का वेलेंटाइन डे- कुंडलियाँ छंद

 का वेलेंटाइन डे- कुंडलियाँ छंद


परिभाषा ला प्रेम के, आज सबे झन भूल।

वेलेंटाइन डे कहैं, धर गुलाब के फूल।।

धर गुलाब के फूल, सड़क मा मड़ियाये हे।

रूप रंग ला देख, प्यार कहि पगलाये हे।

जिनगी के आधार, प्रेम नोहे अभिलाषा।

पश्चिम रीति रिवाज, बदल देहे परिभाषा।


आगी पागी के घलो, जेला नइहे होश।

प्यार प्यार रटते रटत, भागय बन खरगोश।

भागय बन खरगोश, मया के मरम भुलाके।

काय जीतही रेस, लाज अउ शरम भुलाके।

दाई ददा ल छोड़, होत हे लइका बागी।

प्यार ल कर बदनाम, लगावत हावय आगी।


टूरा टूरी बीच भर, होय कभू नइ प्यार।

होथे बड़ गाहिर मया, अमिट असीम अपार।

अमिट असीम अपार, मया हा सब बर होथे।

मनखे मनखे बीच, मया मानवता बोथे।

आशिक घूमय आज, धरे नफरत के छूरा।

असल प्यार ले दूर, आज हें टूरी टूरा।।


हग डे कहिके हाग दिस, टूरी टूरा आज।

करनी उंखर देख के, थूकयँ सगा समाज।

थूकयँ सगा समाज, तभो तो नइ डर भय हे।

देखावा हे प्यार, होत पश्चिम के जय हे।

फेक मया के जाल, मनावै प्रेमी ठग डे।

रंग रूप तन देख, कहे हवसी मन हग डे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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एक दिन के दिवस(सार छंद)


का  का  दिवस  मनाथौ  भैया,सुनके  काँपे  पोटा।

नेत नियम कुछु आय समझ ना,धरा दुहू का लोटा।


दाई ददा गुरू ज्ञानी ला,दिन तिथि मा झन बाँधौ।

देखावा मा उधौ बनौ ना,देखावा मा माँधौ।

दया मया नित बड़े छोट ला,हाँस हाँस के बाँटौ।

फूल गुलाब धरे एके दिन,कखरो सर झन चाँटौ।

पश्चिम के परचम लहरावत,बनव न सिक्का खोटा।

का  का  दिवस  मनाथौ  भैया,सुनके  काँपे  पोटा।


हूम  देय  कस  काज करौ झन,करौ झने देखावा।

अइसन दिवस मनावौ झन जे,फूटय बनके लावा।

मीत  मितानी  रोजे  बढ़ही,रोजे  धन  दोगानी।

एक दिवस मा काम चले नइ,भजौ मीठ नित बानी।

थामव कर मा डोर मया के,झन धर घूमव सोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा--।


दाई  बाबू  के  पूजा  तो,रोजे होना  चाही।

रोजे जागे देश प्रेम हा,तभे बात बन पाही।

पवन पेड़ पानी ला जतनौ,रोजे पुण्य कमावौ।

धरती  दाई  के  सुध  लेवव,पर्यावरण बचावौ।

गौरया के गीत सुनौ नित,मारव झन जी गोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा।


चर दिनिया हे मानुष काया,हाँसी खुशी गुजारौ।

धरत हवै भुतवा पश्चिम के,दया मया ले झारौ।

संस्कृति अउ संस्कार बचावौ,आदत नियत सुधारौ।

सबके दिल मा बसव बने बन,कखरो घर झन बारौ।

सोज्झे मुरुख बनावत फिरथौ,अपन उठा के टोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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