Tuesday 14 February 2023

दुर्मिल सवैया(पुरवा)

 दुर्मिल सवैया(पुरवा)


सररावत  हे  मन  भावत  हे  रँग फागुन राग धरे पुरवा।

घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।

बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।

हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।


खैरझिटिया


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कइसे बसंत आथे

--------------------------------.


रितु बसंत बैठे बाजू म, 

बतियाय कवि ले|

मोर नॉव के बोझा ल,

तँय ढोवत हस अभी ले..... |||

 

 मॅय सहर नगर ले दूर

डिही डोंगरी खेत-खार म रिथों|

अपन मन के बात ल,

पुरवइया बयार म किथों|


मँय आमा म मौंरे हों,

मँय परसा म फुलें हौ|

बंभरी म सोनहा खिनवा कस,

त अमली म झूले हौ|


मँय गंहू के  बाली बने हौं

महिं फुल महिं माली बने हौं|

झुले चिरई चढ़के फुलगी म,

महिं पाना महिं डाली बने हौं|


 कोयली संग मँय  बोलथंव|

फगुवा म रंग रस घोलथंव|

घमघम ले अरसी कस फुलके,

पिंवरी सरसो बन डोलथंव|


मँय मुंग मुंगेसा फुट फुटेना कस,

रंग रंग के खाजी|

लहलहावत बारी बखरी म,

आनि-बानि के भाजी|


मँय घाट-घठौंदा;बाग-बगइचा,

अलिन-गलिन म नाचथों|

कुहकी पारत मगन होके,

लइकामन कस हॉसथों।


बरखा आथे त पानी गिरथे,

सीत आथे त जाड़ लगथे,

अऊ गरमी आके गरमाथे|

तँय नइ लिखतेस त कोन जानतिस?

कि कइसे बसंत आथे|


        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)


No comments:

Post a Comment