,,,,भैया मोर राखी(गीत),,,,
नोहे रेशम,न धागा,न डोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया।
पंछी कस बनही,भैया ये तोर पाँखी।
सबो दुख ले बँचाही,मोर बांधे राखी।
लाही जिनगी म,खुशी के हिलोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया-----------|
सुरुज कस चमकही,तोर माथा के कुमकुम।
सुख रहै जिनगी भर,पाँव ला चुम चुम।
लेवत रहिबे सबर दिन,मोर सोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया-----------।
दाई अउ ददा के,तँय नाम जगाबे।
मोरो डेहरी म नित,आबे अउ जाबे।
लाहू लोटा म पानी,मया घोर भैया।
ये राखी मया हरे मोर भैया-------।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
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परेवना राखी देके आ
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परेवना कइसे जावौं रे,
भइया तीर तँय बता?
गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,
तँय राखी देके आ.............|
दाई-ददा के छँइहा म रहँव त,
बइठाके भइया ल मँझोत में।
बाँधौं राखी कुंकुंम लगाके,
घींव के दीया के जोत में।
मोर लगगे बिहाव अउ,
होगे भइया देस के।
कइसे दिखथे मोर भइया ह,
आबे रे परेवना देख के।
सुख के सुघ्घर समाचार कहिबे,
जा भइया के संदेसा ला........|
सावन पुन्नी आगे जोहत होही,
मोर राखी के बाट रे।
धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,
फइलाके दूनो पाँख रे।
चमचम-चमचम चमकत राखी,
भइया ल बड़ भाही रे।
नाँव जगा के ,दाई-ददा के,
बहिनी ल दरस देखाही रे।
जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,
भइया के पता...............|
देखही तोला भइया ह परेवना,
बहिनी के सुरता करही रे।
जे हाथ म भइया के राखी बँधाही,
ते हाथ देस बर लड़ही रे।
थर-थर कापही बइरी मन ह,
गोली के बऊछार ले,
रक्षा करही राखी मोर भइया के,
बइरी अउ जर-बोखार ले।
जनम-जनम ले अम्मर रही रे,
भाई-बहिनी के नता...........।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
998144175
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....@@राखी@@...(गीत)
बॉध मोर कलाई म,
राखी वो बहिनी..........|
हे तोर मोर मया के,
ये साखी वो बहिनी......|
ददा के आसीस हे,
दाई के दुलार हे |
सावन पुन्नी,
भाई-बहिनी के तिहार हे |
बने रेसम के डोरी,
मोर जिनगी के पॉखी वो बहिनी...|
बॉध मोर................................|
रिमझिम सावन म,
मन मोर नाचे |
बहिनी के मया ले,
गुथाही मोर हाथे |
बिनती करव भगवान ले,
शुभ रहे तोर रासि वो बहिनी....|
बॉध मोर.............................|
तोर मया के डोरी,
मोर साथ रहे जिनगी भर |
तोर सुख-दुख म लामत,
मोर हाथ रहे जिनगी भर |
किरिया रॉखी हे,
कोन देखाही तोला ऑखी वो बहिनी..|
बॉध मोर ....................................|
जीतेन्द्र वर्मा
बाल्को(कोरबा)
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राखी-बरवै छंद
राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।
भैया मोला देबे, मया दुलार।।
जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।
सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।
राखी रक्षा करही, बन आधार।
करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।
झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।
दया मया बरसाबे, देबे मान।।
हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।
नता बहिन भाई के, होही पोठ।।
धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।
बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।
राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।
आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।
सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।
जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।
लइकापन के सुरता, आथे रोज।
रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।
कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।
जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।
पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।
देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।
मोरो अँगना आबे, भैया मोर।
जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
रक्षाबन्धन की ढेरों बधाइयाँ💐💐
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