कलमकार न बने
जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।
बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1
जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।
वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2
चुपचाप खीर खाने की,आदत हैं जिनकी,
वो बंद रहें बस्ते में, बाजार न बने।।3
धन हराम का हो, किसी के तिजोरी में।
तो फाँस गले का बने, उपहार न बने।।4
स्वार्थ में सने हुये जो, रहते हैं सदा।
औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।5
झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।
सच होश उड़ा देगा, होशियार न बने।।6
वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।
भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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