Saturday 7 October 2023

गीत-शाकाहार

 गीत-शाकाहार


कंद मूल फर फूल पान खा, बनव सबे झन शाकाहार।

मछरी कुकरी भेड़ बोकरा, हरे राक्षसी जन आहार।।


महतारी कस धरती दाई, देथें धान पान फर साग।

सेवा करके पा लौ मेवा, हँस हँस खावव सँहिरा भाग।।

फर फुलवारी के नइ पाये, माँस मटन चिटिको कन पार।

फल फुलवा भाजी पाला खा, बनव सबे झन शाकाहार।।


काँदा कूसा के गुण भारी, खाव राँध के दुनो जुवार।

खाय मौसमी फर जर भाजी, तन के भागे रोग हजार।।

खनिज लवण प्रोटीन विटामिन,  सबे तत्व होथे भरमार।

फल फुलवा भाजी पाला खा, बनव सबे झन शाकाहार।।


कई किसम के होय वायरस, मास मटन ले भागव दूर।

जीव जानवर ला झन मारव, अपन पेट बर बनके क्रूर।।

कृषि भूमि भारत उपजाथे, भक्कम फर जर चाँउर दार।

फल फुलवा भाजी पाला खा, बनव सबे झन शाकाहार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


विश्व शाकाहार दिवस के बधाई

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