Monday, 30 December 2024

गजल

 गजल


पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे।

दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे।


वोट देके कोन ला जनता जितावैं।

झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे।


खात हावँय घूम घुमके अरदली मन।

सिर नँवइयाँ के मुड़ी ला फोड़ होगे।


बड़ सरल हावय बुराई के डहर हा।

सत कहूँ मुश्किल लगिस ता छोड़ होगे।


मौत के मुँह मा समागे देवता मन।

काल के असुरन तिरन अब तोड़ होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


कुंडलियाँ


पानी बरसे पूस मा,गरज बरस के साथ।

कथरी कम्बल संग मा,छत्ता खुमरी हाथ।

छत्ता खुमरी हाथ,पूस मा अटपट लागे।

खाय मनुस ला जाड़,सुरुज ला बादर खागे।

पड़े दुतरफा मार,कहाँ ले फूटय बानी।

अड़बड़ जाड़ जनाय,ओतको मा ये पानी।


खैरझिटिया

सर्दी दिसम्बर के-लावणी छंद

 सर्दी दिसम्बर के-लावणी छंद


हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।

धरती के हालत खस्ता हे, खस्ता हालत अम्बर के।।


किनकिन किनकिन जाड़ करत हे, कुड़कुड़ाय हे चोला हा।

सुरुज नरायण बिजरावत हे, नइ भावै घर कोला हा।।

धुंध कोहरा मा का करही, चश्मा कोनो नम्बर के।

हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।


बइला भँइसा कुकरी बकरी, काल सबे बर आगे हे।

बघवा भलवा हाथी तक के, ताकत जमे हरागे हे।।

कथरी भीतर मनुष दुबकगे, नोहे क्षण आडम्बर के।

हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।


शीत गिरत हे टपटप टपटप, पेड़ पात अउ छानी ले।

गरम चीज बर फिरैं ललावत, बैर करैं सब पानी ले।।

बबा संग मा कई जवान तक,  नाहे हवँय नवम्बर के।

हाड़ा गोंडा काँप जात हे, सर्दी देख दिसम्बर के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।
भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।
चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।
उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।
गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।
सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।
रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।
पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।
मानुष मन सब अपन मुठा मा,सत सुम्मत ला धरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

गुरतुर बोली जियरा जोड़े,काँटे चाकू छूरी।
घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।
जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।
पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।
दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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नवा बछर के बहुत बहुत बधाई

घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1
बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।
का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।
गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।
अटके ला चौबीस के,पच्चीस मा पार कर।।
बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।
तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।
जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।
बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।

              2
गुजर गे बारा मास,बँचे जतके हे आस।
पूरा कर ये बछर,हटा जमे रोक टोंक।।
मुचमुच हाँस रोज,पथ धर चल सोज।
बुता काम बने कर,खुशी खुशी ताल ठोंक।
दिन मजा मा गुजार,बांटत मया दुलार।
खाले तीन परोसा जी,लसून पियाज छोंक।।
नवा नवा आस लेके,दिन तिथि खास लेके।
हबरे बछर नवा,हमरो बधाई झोंक।।

              3
होय झन कभू हानि,चले बने जिनगानी।
बने रहे छत छानी,बने मुड़की मिंयार।।
फूल के बिछौना रहै, महकत दौना रहे।
जीव शिव प्रकृति के,सदा मिले जी पिंयार।।
आदर सम्मान बढ़े,भाग नित खुशी गढ़े।
सपना के नौका चढ़े,होके घूम हुसियार।।
होवै दिन रात बने,मनके के जी बात बने।
नवा साल खास बने,भागे दूर अँधियार।।

               4
सबे चीज के गियान,पा के बनो गा सियान।
गाँव घर देश राज,छाये चारो कोती नाम।।
मीठ करू खारो लेके,सबके जी आरो लेके।
सेवा सतकार करौ,धरम करम थाम।।
खुशी खुशी बेरा कटे,दुख के बादर छँटे।
जिनगानी मा समाये,सुख शांति सुबे शाम।।
हमरो झोंको बधाई,संगी संगवारी भाई।
नवा बछर मा बने,अटके जी बुता काम।।

                5
अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।
तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।
दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।
कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।
उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।
उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।
नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।
नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।

जीतेंद्र वर्मा""खैरझिटिया
बाल्को,कोरबा
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गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।
बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1

बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।
छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2

अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।
खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3

गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।
चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4

कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।
कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5

धरे हाथ मा जे पइसा, उही लेगे ढील भँइसा।
गले दाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।।6

कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।
उना थाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।7

जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।
झुके भाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।8

नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।
नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।9

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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बधाई नवा बछर के(सार छंद)

हवे  बधाई   नवा   बछर   के,गाड़ा  गाड़ा  तोला।
सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।

सबे  खूँट  मा  रहे  अँजोरी,अँधियारी  झन  छाये।
नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।
बने चीज  नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।
झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।
जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।
हवे  बधाई  नवा  बछर  के,गाड़ा  गाड़ा  तोला----।

धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।
खेत  खार  मा  सोना  उपजे,सेमी  गोभी  बारी।
बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।
का  मनखे  का  जीव जिनावर, पटे  सबो सँग तारी।
राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।
हवे  बधाई  नवा  बछर के,गाड़ा  गाड़ा  तोला------।

बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।
ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।
दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।
पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।
भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

नव वर्ष उछाह मंगल धरके आये
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Tuesday, 17 December 2024

रऊनिया म...

 ....रऊनिया म...

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हाथ-पॉव म का किबे?

जाड़ हमागे हे जिया म|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म|


अगोरा हे चाहा के,

बिहनिया ले उठ के|

टुकुर-टुकुर देखे लइका,

खटिया म सुत के|

फेंक-फेंक के फरिया ल,

गोड़ ल मढ़ात हे|

किनकिनात भुइयाँ,

चाबे ल कुदात हे|

चुल्हा तीर म,

बइठे हे बहिनी जकड़ी|

अऊ हुरसे ऊपर हुरसत हे,

चुल्हा म लकड़ी |

बखरी के बिहनिया ले,

नइ हिटे हे सँकरी |

बबा लादे हे कमरा,

डोकरी दाई ओढ़े हे कथरी|

अंगरा-अंगेठा  भूर्री चाही,

कइसे जाड़ भगाही दिया म....?

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म ..........|


छेरी-बोकरा;बईला-भंईस्सा,

कुड़कुड़ा गेहे जाड़ म|

जमकरहा सीत परे हे कॉदी म,

मुंदरहा नइ हे कोनो खेत-खार म|

ऊगिस घाम ,तिपिस चाम |

कमइया मनके,बाजिस काम|

धान गंजाय कोठार म,

गहूं -चना गेहे जाम |

बिहनिया के बेरा,

कोन टेंड़े टेंड़ा|

ताते-तात खवइया ल,

नइ भात हवे केरा|

सियान बइठे लइका धरे,

दाई धरे मुखारी ल,

चॉंऊर निमारत बहू बइठे,

रॉध-गढ़ के हाड़ी ल |

तापत बइठे घाम टुरा,

किताब धरे भिंया म.........|

कतरो बेरा पहा जथे,

बईठे-बईठे रऊनिया म.......|


घंटा भर नंहवइया,

छिन म नहा डरिस |

तापत-तापत घाम ल ,

दिन ल पहा डरिस |

किनकिनाय दॉत,

कुड़कुड़ाय जॉंगर|

तभो ले कमइया के,

नइ छुटे नांगर |

जइसने बाढ़े जाड़,

तइसने बाढ़े बुता |

अतलंगहा टुरा मन तापे बर,

बार देहे चरिहा सूपा |

आनि -बानि के साग-भाजी,

तात-तात चूरे हे |

गिल्ली,भंवरा-बॉटी खेले बर,

लईका मन जुरे हे |

जमकरहा जाड़ म ,

बड़ मया बाढ़े हे गिंया म....|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म......|


रचनाकाल-2004

           📝 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"📝

                 बाल्को( कोरबा )


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पागा कलगी 26 बर 

परयास"आसो के जाड़ "विषय म


आसो के जाड़

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जाड़ म  जमगे, माँस-हाड़।

आसो बिकट बाढ़े हे जाड़।

आंवर-भाँवर  मनखे जुरे हे,

गली  - खोर   म भुर्री बार।


लादे उपर लादत हे,

सेटर कमरा कथरी।

तभो ले कपकपा गे,

हाड़ -मांस- अतड़ी।


जाड़ म घलो,जिया जरगे।

मुँहूं  ले   निकले  धूंगिया।

तात पानी पियई झलकई,

चाहा  तीर  लोरे  सूँघिया।


जाड़  जड़े    तमाचा;  हनियाके।

रतिहा- संझा अउ   बिहनिया के।

दाँत किटकिटाय,गोड़-हाथ कापे,

कोन  खड़े  जाड़  म,  तनियाके?


बिहना धुँधरा म,

सुरुज अरझ गे।

गुंगवा के रंग म ,

चोरो-खूंट रचगे।


दुरिहा के मनखे,

चिन्हाय    नही।

छंइहा जाड़ म ,

सुहाय      नही।


जाड़  ल   जीते  बर,

मनखे करथे  उपाय।

साल चद्दर के तरी म,

लुकाय ऊपर लुकाय।


फेर  ठिठुर के   मर जथे,

कतको   आने    परानी।

जे न जाड़ म कथरी मांगे,

न घाम  म  ;मांगे   पानी।


जब  बनेच   जाड़  बढ़थे।

सुरुज     थोरिक   चढ़ते।

त बइठे-बइठे रऊनिया म,

गजब    मया        बढ़थे।


बाढ़े     हे    बनेच,

आसो   के  जाड़।

लेवत   हे     मजा,

अंगरा-अंगेठा बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795



Sunday, 15 December 2024

अइसने म दिल कइसे नई जलही..

 अइसने म दिल कइसे नई जलही..

ओट म लगाय रिही लदफद ले लाली.
कान म झुलत रिही रही रही के बाली.
पूर्वाइया हवा संग चुंदी उड़ात रिही.
हाई हील के सेन्डिल पहिरे हाथ ल झुलात रिही.
कजरारी ऑखी ले जब ठॉय-ठॉय  गोली चलही.........
त बता भला,अइसने म दिल कइसे    नई जलही.......

छटपटावत हे चोला
देख के वोला|
खॉद म झुलत हे
नवा डिजाईन के छोला|
चुंदी ल मुड़ी म
चिमटा कसें हे|
चमचमाय कुर्ता जींस
जऊहर फभे हे |
फुकफुक ले पड़ड़ी
न करिया न बलही............|
त बता भला ...................|

ओट ल चाटही
अऊ दॉत ल कटरही|
त भला जवनहा टुरा मनके
नींद कइसे परही|
देखईया मन देखते रीथे
गड़ाके ऑखी|
परी बनके उड़ावत हे
अगास म लगाके पॉखी|
छलिया बनके घेरीबेरी
तनमन ल छलही..............|
त बता भला ...................|

आगी लगे हे फेसन
नवा डिजाईन म छाके|
हेन्सम कहिलात हे
चुंदी कुरथा कटवाके|
धरे हे मोबाईल
हॉस हॉस के गोठियात हे|
घेरी बेरी चुंदी ल
ऑखी ले हटात हे |
नाम हे पिंकीं रिंकीं
नोहे मन्टोरा अंकलही...........|
त बता भला अईसने.............|
                       जीतेन्द्र वर्मा
               खैरझिटी(राजनॉदगॉव)