गजल
पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे।
दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे।
वोट देके कोन ला जनता जितावैं।
झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे।
खात हावँय घूम घुमके अरदली मन।
सिर नँवइयाँ के मुड़ी ला फोड़ होगे।
बड़ सरल हावय बुराई के डहर हा।
सत कहूँ मुश्किल लगिस ता छोड़ होगे।
मौत के मुँह मा समागे देवता मन।
काल के असुरन तिरन अब तोड़ होगे।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
कुंडलियाँ
पानी बरसे पूस मा,गरज बरस के साथ।
कथरी कम्बल संग मा,छत्ता खुमरी हाथ।
छत्ता खुमरी हाथ,पूस मा अटपट लागे।
खाय मनुस ला जाड़,सुरुज ला बादर खागे।
पड़े दुतरफा मार,कहाँ ले फूटय बानी।
अड़बड़ जाड़ जनाय,ओतको मा ये पानी।
खैरझिटिया
No comments:
Post a Comment