Tuesday, 17 December 2024

रऊनिया म...

 ....रऊनिया म...

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हाथ-पॉव म का किबे?

जाड़ हमागे हे जिया म|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म|


अगोरा हे चाहा के,

बिहनिया ले उठ के|

टुकुर-टुकुर देखे लइका,

खटिया म सुत के|

फेंक-फेंक के फरिया ल,

गोड़ ल मढ़ात हे|

किनकिनात भुइयाँ,

चाबे ल कुदात हे|

चुल्हा तीर म,

बइठे हे बहिनी जकड़ी|

अऊ हुरसे ऊपर हुरसत हे,

चुल्हा म लकड़ी |

बखरी के बिहनिया ले,

नइ हिटे हे सँकरी |

बबा लादे हे कमरा,

डोकरी दाई ओढ़े हे कथरी|

अंगरा-अंगेठा  भूर्री चाही,

कइसे जाड़ भगाही दिया म....?

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म ..........|


छेरी-बोकरा;बईला-भंईस्सा,

कुड़कुड़ा गेहे जाड़ म|

जमकरहा सीत परे हे कॉदी म,

मुंदरहा नइ हे कोनो खेत-खार म|

ऊगिस घाम ,तिपिस चाम |

कमइया मनके,बाजिस काम|

धान गंजाय कोठार म,

गहूं -चना गेहे जाम |

बिहनिया के बेरा,

कोन टेंड़े टेंड़ा|

ताते-तात खवइया ल,

नइ भात हवे केरा|

सियान बइठे लइका धरे,

दाई धरे मुखारी ल,

चॉंऊर निमारत बहू बइठे,

रॉध-गढ़ के हाड़ी ल |

तापत बइठे घाम टुरा,

किताब धरे भिंया म.........|

कतरो बेरा पहा जथे,

बईठे-बईठे रऊनिया म.......|


घंटा भर नंहवइया,

छिन म नहा डरिस |

तापत-तापत घाम ल ,

दिन ल पहा डरिस |

किनकिनाय दॉत,

कुड़कुड़ाय जॉंगर|

तभो ले कमइया के,

नइ छुटे नांगर |

जइसने बाढ़े जाड़,

तइसने बाढ़े बुता |

अतलंगहा टुरा मन तापे बर,

बार देहे चरिहा सूपा |

आनि -बानि के साग-भाजी,

तात-तात चूरे हे |

गिल्ली,भंवरा-बॉटी खेले बर,

लईका मन जुरे हे |

जमकरहा जाड़ म ,

बड़ मया बाढ़े हे गिंया म....|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म......|


रचनाकाल-2004

           📝 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"📝

                 बाल्को( कोरबा )


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पागा कलगी 26 बर 

परयास"आसो के जाड़ "विषय म


आसो के जाड़

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जाड़ म  जमगे, माँस-हाड़।

आसो बिकट बाढ़े हे जाड़।

आंवर-भाँवर  मनखे जुरे हे,

गली  - खोर   म भुर्री बार।


लादे उपर लादत हे,

सेटर कमरा कथरी।

तभो ले कपकपा गे,

हाड़ -मांस- अतड़ी।


जाड़ म घलो,जिया जरगे।

मुँहूं  ले   निकले  धूंगिया।

तात पानी पियई झलकई,

चाहा  तीर  लोरे  सूँघिया।


जाड़  जड़े    तमाचा;  हनियाके।

रतिहा- संझा अउ   बिहनिया के।

दाँत किटकिटाय,गोड़-हाथ कापे,

कोन  खड़े  जाड़  म,  तनियाके?


बिहना धुँधरा म,

सुरुज अरझ गे।

गुंगवा के रंग म ,

चोरो-खूंट रचगे।


दुरिहा के मनखे,

चिन्हाय    नही।

छंइहा जाड़ म ,

सुहाय      नही।


जाड़  ल   जीते  बर,

मनखे करथे  उपाय।

साल चद्दर के तरी म,

लुकाय ऊपर लुकाय।


फेर  ठिठुर के   मर जथे,

कतको   आने    परानी।

जे न जाड़ म कथरी मांगे,

न घाम  म  ;मांगे   पानी।


जब  बनेच   जाड़  बढ़थे।

सुरुज     थोरिक   चढ़ते।

त बइठे-बइठे रऊनिया म,

गजब    मया        बढ़थे।


बाढ़े     हे    बनेच,

आसो   के  जाड़।

लेवत   हे     मजा,

अंगरा-अंगेठा बार।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795



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