Friday, 1 August 2025

मनभावन कोरबा-रूपमाला छंद

 मनभावन कोरबा-रूपमाला छंद


कोइला हा कोरबा के आय करिया सोन।

नीर हा हसदेव के जिनगी हरे सिरतोन।।

हे कटाकट बन बगीचा जानवर अउ जीव।

अर्थबेवस्था हमर छत्तीसगढ़ के नीव।।


माँ भवानी सर्वमँगला के हरे वरदान।

कोसगाई मातु मड़वा देय धन अउ धान।।

टारथे चैतुरगढ़िन दुख आपदा डर रोग।

एल्युमिनियम संग बिजली के बड़े उद्योग।।


बाँध बांगो हा बँधाये हे गजब के ऊँच।

बेंदरा भलवा कहे पथ छोड़ दुरिहा घूँच।।

साँप हाथी संग मा औषधि हवे भरमार।

मन लुभाये ऊँच झरना अउ नदी के धार।।


वास वनवासी करें संस्कृति अपन पोटार।

हाथ मा धरके धनुष खोजे बहेड़ा चार।।

मीठ बोली कोरवा गूँजय गली बन खोर।

आय बेपारी घलो सुन कोरबा के शोर।।


आय मनखे कोरबा मा सुन  इहाँ के नाम।

देख के बन बाग झरना पाय सुख आराम।।

कारखाना झाड़ झरना कोइला के खान।

देश दुनिया मा चले बड़ कोरबा के नाम।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

रंग रंग के गहना गुठिया-लावणी छंद

 रंग रंग के गहना गुठिया-लावणी छंद


रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।

खुले रूप सजधज बड़ भारी, सँहिरायें मनखें सबझन।।


सूँता सुर्रा सुँतिया सँकरी, साँटी सिंगी अउ हँसली।

चैन चुड़ी सोना चांदी के, आये असली अउ नकली।।

कड़ा कोतरी करण फूल फर, ककनी कटहर अउ करधन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


बिधू बुलाक बनुरिया बहुटा, बिछिया बाली अउ बारी।

बेनिफूल बघनक्खा बिछुवा, माला मुँदरी मलदारी।।

चुटकी चुरवा औरीदाना, पटा पाँख पटिया पैजन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


तोड़ा तरकी टिकली फुँदरी, रुपिया लगथे बड़ अच्छा।

पटा लवंग फूल नथ लुरकी, झुमका ऐंठी अउ लच्छा।।

ढार नांगमोरी नकबेसर, पैरी बाजे छन छन छन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


कटवा कौड़ी फुल्ली पँहुची, खूँटी खिनवा गहुँदाना।

हार हमेल किलिप हर्रइयाँ, माथामोती पिन नाना।।

सोना चाँदी मूंगा मोती, गहना गुठिया आये धन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सरकारी दारू-सरसी छंद

 सरकारी दारू-सरसी छंद


गांव गांव मा दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।

मंद पियइया बाढ़त हावै, बाढ़त हावै रार।।


कोष भरे बर दारू बेंचय, शासन देखव आज।

नशा नाश ए कहि चिल्लावै, आय घलो नइ लाज।।

पीयैं बेंच भांज दरुहा मन, घर बन खेती खार।

गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।


दारू गांजा के चक्कर मा, होवत हवै बिगाड़।

मंद पियइया मनखें मन हा, लाहो लेवैं ठाड़।।

कहाँ सुधर पावत हे कोई, खावँय चाहे मार।

गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।


नशा करौ झन कहिके शासन, पीटत रहिथे ढोल।

मंद मिलत हावै सरकारी,  खुल जावत हे पोल।।

कथनी करनी मा अंतर हे, काय कहौं मुँह फार।

गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को नगर कोरबा(छग)

बइरी पइरी(गीत)😥😥

 😥😥बइरी पइरी(गीत)😥😥


कइसे बजथस रे पइरी बता।

मोर  पिया  के,मोर पिया के,

अब  नइ मिले  पता......।।


पहिली सुन,छुनछुन तोर,

दँउड़त    आय     पिया।

अब   वोला    देखे   बर,

तरसत  हे  हाय   जिया।

ओतकेच   घुँघरू  हे,

ओतकेच के साज हे।

फेर काबर बइरी तोर,

बदले    आवाज   हे।

फरिहर  मोर मया ल,

झन तैं मता..........।।


का करहूँ राख अब,

पाँव    मा    तोला।

धनी मोर नइ दिखे,

संसो   होगे  मोला।

पहिरे पहिरे तोला,

अब पाँव लगे भारी।

पिया के बिन कते,

सिंगार  करे  नारी।

धनी  के   रहत  ले,

तोर मोर हे नता..।।


देख नइ  सकेस,

मोर सुख पइरी।

बँधे बँधे पाँव म,

होगेस तैं बइरी।

पिया  के  मन  ला,

काबर नइ भावस।

मया  के गीत अब,

काबर नइ गावस।

मैं  दुखयारी,

मोला झन सता--।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

मर लगगे फोटू विडियो-कुकुभ छंद

 मर लगगे फोटू विडियो-कुकुभ छंद


कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।

सबे चीज के फोटू विडियो, सदा मान थोरे पाही।।


सेवा सत सुख गुण गियान ला, देखाये बर नइ लागे।

तोपे ढाँके के उघरत हे, उघरे के हा तोपागे।।

हवै मनुष के आय जातरी, धारेच धार बोहाही।

कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।।


बर बिहाव छट्ठी बरही के, समझ आय विडियो फोटू।

मरनी हरनी जलत लाश ला, नइ छोड़त हावय मोटू।।

रील बनाये के चक्कर मा, नवा जमाना बोहाही।

कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।।


फोटू विडियो मा हे नत्ता, असल बइठगे हे भट्ठा।

मरगे हावय मान मनुष के, भक्ति भाव होगे ठट्ठा।।

आँखी मूँदे बर लागत हे, अउ का काली देखाही।

कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

आज के व्यवस्था ऊपर--कुंडलियाँ छंद

 आज के व्यवस्था ऊपर--कुंडलियाँ छंद


नेता मनके घर मिले, बोरा बोरा नोट।

कखरो डर उन ला नहीं, थरथर काँपय छोट।

थरथर काँपय छोट, चुकावैं पाई पाई।

बड़े खाय मिल बाँट, बने सब भाई भाई।

पइसा जेखर तीर, उही ए विश्व विजेता।

कुर्सी ला पोटार, खाय भारत ला नेता।


भारत भुइयाँ मा हमर, गजब मचे हे लूट।

मनखे आम पिसात हे, बड़का ला हे छूट।

बड़का ला हे छूट, करै रोजे मनमानी।

सुरसा कस मुह फार, खाय नित धन दोगानी।

धरम करम सत मान, बड़े मन हावैं बारत।

साथ देय सरकार, बढ़े आघू का भारत।


लंबा कर कानून के, धरे छोट के घेंच।

बात बड़े के होय ता, फँस जाये बड़ पेंच।

फँस जाये बड़ पेंच, करे का कोट कछेरी।

पद पइसा के तीर, लगावैं सबझन फेरी।

मूंदे आँखी कान, कलेचुप बनके खंबा।

देखे बस कानून, जीभ ला करके लंबा।


खीसा मा धनवान के, अफसर नेता नोट।

डरै आम जन देख के, वर्दी करिया कोट।।

वर्दी करिया कोट, सके छोटे मनखे ले।

गले कभू नइ दाल, बड़े मन उल्टा पेले।

नवें रथे दिनरात, छोट बन खम्भा पीसा।

अकड़ अमीर दिखाय, भरे हे कोठी खीसा।


फ्री के झोरे रेवड़ी, नेता अउ जन खास।।

आम आदमी  हे तभे, होवत हवे विकास।

होवत हवे विकास, फकत कुर्सी वाले के।

मर मोटा नइ पाय, आम जन ला सब छेंके।

कई किसम के टैक्स, देय पानी पी पी के।

मनखे आम कमाय, खाय नेता मन फ्री के।


करजा के दम मा बड़े, बड़े बने हे आज।

लोक लाज के डर नही, नइ हे सगा समाज।

नइ हे सगा समाज, कोन देखाये अँगरी।

रंभा रति नचवाय, मंद पी तीरे टँगड़ी।

इँखरे हे सरकार, भले मर जावैं परजा।

सकल सुरत पद देख, बैंक तक देवै करजा।


फर्जी फाइल ला धरे, होगे बड़े फरार।

रोक छोट के साइकिल, गरजै पहरेदार।

गरजै पहरेदार, दिखाके लउठी डंडा।

नाक तरी धनवान, लुटैं सब ला बन पंडा।

पद पा पूँजी जोर, करैं कारज मनमर्जी।

भागे तज के देश, बनाके फाइल फर्जी।


छोट मँझोलन के रहत, बचे हवै ईमान।

गिरथें उठथें रोज के, बड़े बड़े धनवान।

बड़े बड़े धनवान, चलैं पइसा के दम मा।

धर इज्जत ईमान, जिये छोटे मन कम मा।

जादा के ले चाह, नियत नइ देवैं डोलन।

चादर भीतर पाँव, रखैं नित छोट मँझोलन।


माया पइसा मा मिले, पइसा मा रस रास।

इज्जत देखे जाय नइ, पइसा हे यदि पास।

पइसा हे यदि पास, पास वो सब पेपर मा।

रखे जेन मा हाथ, पहुँच जाये वो घर मा।

पइसा मा धूल जाय, चरित अउ बिरबिट काया।

कोन पार पा पाय, जबर पइसा के माया।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Monday, 28 July 2025

बरवै छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" आ रे बादर(गीत)

 बरवै छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" 


आ रे बादर(गीत)


धान पान रुख राई, सबे सुखाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।


अगिन बरत हे भुइयाँ, हरगे चेत।

बूंद बूंद बर बिलखै, डोली खेत।

मरे मोर कस मछरी, मेंढक मोर।

सबके सुख चोराये, बादर चोर।

सुध बुध अब सब खोगे, मन अकुलाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


निकल जही अइसन मा, मोरे जान।

जादा तैं तड़पा झन, हे भगवान।।

जल्दी आजा जल धर, बादर देव।

खेत किसानी के तैं, आवस नेव।।

भुइयाँ छाँड़य दर्रा, ताल अँटाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


बेटी के बिहाव अउ, बेटा जान।

तोर तीर हे अटके, गउ ईमान।।

देखत रहिथौं तोला, बस दिन रात।

जिनगी मोर बचा दे, आ लघिनात।

बाँचे खोंचे भुइयाँ, झन बेंचाय।।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


जाँगर टोर सकत हौं, तन जल ढार।

फेर तोर बिन हरदम, होथे हार।

रावण राज लगत हे, सावन मास।

दावन मा बेचाये, खुसी उजास।।

गड़े जिया मा काँटा, धीर खराय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


भाग भोंग के मोरे, झन तैं भाग।

करजा बोड़ी बढ़ही, झन दे दाग।

मैं हर साल कलपथौं, छाती पीट।

तैं चुप देखत रहिथस, बनके ढीट। 

बस बरखा बरसा दे, ले झन हाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)