सरकारी दारू-सरसी छंद
गांव गांव मा दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।
मंद पियइया बाढ़त हावै, बाढ़त हावै रार।।
कोष भरे बर दारू बेंचय, शासन देखव आज।
नशा नाश ए कहि चिल्लावै, आय घलो नइ लाज।।
पीयैं बेंच भांज दरुहा मन, घर बन खेती खार।
गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।
दारू गांजा के चक्कर मा, होवत हवै बिगाड़।
मंद पियइया मनखें मन हा, लाहो लेवैं ठाड़।।
कहाँ सुधर पावत हे कोई, खावँय चाहे मार।
गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।
नशा करौ झन कहिके शासन, पीटत रहिथे ढोल।
मंद मिलत हावै सरकारी, खुल जावत हे पोल।।
कथनी करनी मा अंतर हे, काय कहौं मुँह फार।
गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को नगर कोरबा(छग)
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