बचपन बरसा मा(गीत)
बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।
कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।
घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।
पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।
रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।
दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।
घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।
धार ल रोकन, माटी पथरा रचके।
तरिया के पार में,बइठे गोटी फेंकन।
गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकने।
मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।
बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।
खेलेल बुलाये,संगी साथी गड़ी।
रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।
खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।
सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।
झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।
नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।
बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।
माटी ह गाँवे के,लागे जी कुंदन।
बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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