Sunday 19 July 2020

बसंत के दूत-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बसंत के दूत-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

               पूस महीना जब धुँधरा,कोहरा अउ ठुठरत जाड़ ल गठियाके  जाय बर धरथे,तब माँगे महीना माँघ बसंती रंग के सृंगार करे पहुना बरोबर नाचत गावत  हबरथे।माँघ महीना म पुरवा सरसर सरसर गुनगुनाय ल धर लेथे।सुरुज नारायण घलो जइसे जइसे बेरा बाढ़त जाथे अपन तेज ल बढ़ायेल लगथे।जाड़ ल जावत देख चिरई -चिरगुन,जीव- जानवर  पेड़-पउधा,बाग-बगइचा अउ मनखे मनके मन मतंग बरोबर दया मया अउ सुख शांति के अगास म उडियाय बर लग जथे।खेत खार म उन्हारी,उतेरा जेमा चना,गहूँ, तिवरा, सरसो,मसूर,राहेर,अरसी के संगे संग बखरी बारी के धनिया,मेथी,गोभी,पॉलक अउ रंग रंग के साग भाजी पुरवइया हवा म ममहायेल लग जथे।तरिया, नँदिया,नरवा के पानी धीर लगाके लहरा मारत,रद्दा रेंगत मनखे ल तँउरे बर बलाथे त ऊँच ऊँच बर,पीपर,कउहा,सेम्हर,बम्हरी,साल,सरई,तेंदू,चार,आमा,
डुमर अउ कतको पेड़ मतंग होके नाचेल धर लेथे।बाग बगइचा म रंग रंग के फूल  तितली,भौरा के संगे संग मन भौरा ल घलो अपन तीर खिंचेल धर लेथे।अमरइया म कोयली के गाना,पेड़ तरी म बंधाये झूलना अउ पेड़ म झूलत झोत्था झोत्था मउर मन ल मोह लेथे।बोइर पेड़  म लटलट ले लदाये हरियर पिंवरी अउ लाल फर ल देख के बिना एकात ढेला मारे जिवरा नइ अघाय। हवा म झूलत कोकवानी अमली देख भला काखर मुँह म पानी नइ आय?गरती,तेंदू,चार ,महुवा,पिकरी,डूमर खावत कतको चिरई मन मनभर गीत गाथे।अउ बसंत के सुघ्घर दर्शन करावत गीत गाथे।

           माँघ तिथि पंचमी देवी सरस्वती के पूजा पाठ  के दिन होथे,ये दिन ले फागुन के गीत,झाँझ,मंजीरा गली गली चौरा चौरा म सुनायेल धर लेथे।बसंत ऋतु के स्वागत सत्कार म नाचा - गम्मत,मड़ई ,मेला,गीत कविता चारो मुड़ा गूँजेल लग जथे।बसंत ऋतु  म परसा,सेम्हर  लाली लाली फूल म लदाये बर लग जथे।बिरवा के पिवरी पात झरथे अउ नवा पान फोकियायेल लगथे।बसंत ऋतु सब ऋतु ले खास होथे,ये समय घर,बन,बारी,बखरी,खेत,खार,नदी,पहाड़ सबो चीज म खुशी सहज दिखथे।गावत झरना,चिरई चिरगुन,पुरवा अउ नाचत पेड़-पात,लइका सियान सबो जघा दिख जथे।सरसो,राहेर,चना ,गहूँ,अरसी, मसूर,लाख,लाखड़ी सबो रंग रंग के फूल धरके नाचे गाये कस लगथे।बसंत ऋतु म कोयली के गाना,नँगाड़ा के थाप,फाग अउ मेला मड़ई मन मोह लेथे।ये सब ला देख देख सबके मन  म खुशी दउड़त रथे।भुइयाँ कस दसना म रंग रंग के खेल खेलत लइका मन मतंग रथे।
          पहली मनखे मनके मन म बसन्त के वास होवय तरिया,नँदिया,डोली,डंगरी,घाट,बाट,बारी  बखरी,बाग बगइचा, खेत खार घर के दुवारी ले नजर आय।प्रकृति के कोरा म ठिहा ठउर रहय,चिरई- चिरगुन छानी परवा म नाचे गाये।घर के दुवारी म लाली दसमत,अँगना म तुलसी के चौरा,गमकत गोंदा, ममहावत दवना,घमाघम फुले अउ झूले मुनगा,बारी म सेमी नार,भाजी पाला,झूलत केरा खाम,अउ कतको मनमोहक छटा अइसने मन लुभावत रहय,आज ये दृश्य देखे बर नइ मिले।कँउवा  के कांव कांव  लटपट म सुनाथे,तब कोयली,मैना,सुवा,गौरैया के गीत ल छोड़ दे।
 फेर जब जब बसंत आथे अन्तस् म ये सब हिलोर लेय बर धर लेथे।बिन परसा फूल देखे घलो ओखर लाली रंग अन्तस् म अपन सुन्दराई ल बगरा देथे।।
            मनखे मन प्रकृति ले दिनों दिन दुरिहावत हावय।निर्माण के चक्कर म दिनों दिन उजाड़ सहज होगे हे।पेड़ पउधा,बारी बखरी,नंदिया तरिया,खेत खार सब म मनखे मन अपन स्वारथ के झंडा गाड़ देहे।उहाँ कहाँ कोयली,कहाँ पुरवइया, कहाँ अमरइया अउ काय बसंत?फेर आज कवि मन बसंत के दूत बरोबर कोयली कस गावत गावत अपन लेखनी म नदिया,तरिया ,झरना,डोंगरी,पहाड़,सरसो,चना, गहूँ,डूमर,अमरइया,सुवा,मैना,परसा,तेंदू,चार,चिरौंजी अउ जम्मो बसंत के सुघराई ल उकेरत हे।जेला पढ़ सुन के बसंत अन्तस म बस जावत हे।कोन जन बाँचे खोंचे अमरइया म अउ के दिन कोयली गाही,अउ बसंत के सन्देश दे पाही।आज तो बड़े बड़े महल अउ फोर लेन डहर सहज दिख जथे फेर सरसो,अरसी,लाख,लाखड़ी,चना,गहूँ, मसूर, धनिया ,परसा,डूमर,कदम्ब,पीपर,अउ प्रकृति के कतको सनमोल सुघराई खोजे म घलो नइ मिले।आज मनखे अपन सुख सुविधा बर प्रकृति के उजाड़ करत हे।कोनो मौसम बखत या फेर बार होय सब एके बरोबर लगथे।का माँघ अउ का फागुन।वइसे तो बसन्त ऋतु म कुहकइया कारी कोयली बसन्त के दूत आय फेर आज ओखरो संख्या धीर लगाके कमती होवत जावत हे।आज बसन्त के दूत कोयली नही कलमकार कवि मन आय ,जेन अपन गीत कविता म बसंत के सुघ्घर वर्णन करथे।अउ बसंत ऋतु के जम्मो सुघराई ल सबके अन्तस् म पहुँचाथे।बसंत आज सिर्फ  कवि के गीत कविता म सुरक्षित हे।बसंती छटा अउ रंग रंग के रंग ल समेटे कवि कोयल कस जब जब बसंत आही तब तब बसंत के दूत बनके जम्मो बसन्ती सुघराई ल गा गा के सुनाही अउ सबके अन्तस् म आनन्द भरही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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