छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
चुलुक तैं मंद मउहा के, लगाबे झन कभू भैया।
ये दुनिया हाट माया के, ठगाबे झन कभू भैया।1
रतन धन साथ नइ जावै, मया मोह काम नइ आवै।
बुझत दीया हरे तन, बगबगाबे झन कभू भैया।2
धरा के देवता आये, जगत मा तोला जे लाये।
ठिहा ले बाप माई ला, भगाबे झन कभू भैया।3
भरे बारूद घर भीतर, पड़ोसी ला डराये बर।
अगिन पर घर जलाये बर, दगाबे झन कभू भैया।4
गजब कन रूप नारी के, बहिन बेटी सुवारी माँ।
छुपे काली घलो रहिथे, जगाबे झन कभू भैया।5
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
चुलुक तैं मंद मउहा के, लगाबे झन कभू भैया।
ये दुनिया हाट माया के, ठगाबे झन कभू भैया।1
रतन धन साथ नइ जावै, मया मोह काम नइ आवै।
बुझत दीया हरे तन, बगबगाबे झन कभू भैया।2
धरा के देवता आये, जगत मा तोला जे लाये।
ठिहा ले बाप माई ला, भगाबे झन कभू भैया।3
भरे बारूद घर भीतर, पड़ोसी ला डराये बर।
अगिन पर घर जलाये बर, दगाबे झन कभू भैया।4
गजब कन रूप नारी के, बहिन बेटी सुवारी माँ।
छुपे काली घलो रहिथे, जगाबे झन कभू भैया।5
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment