दूअर्थी गीत- कुकुभ छंद
छत्तीसगढ़ मा बढ़त जात हे, दूअर्थी गीत गवइया।
कला गला के वो मन दुश्मन, संस्कृति संस्कार मतइया।।
मिंझरत हावय नाच गान मा, दुर्गुण हर बारा जाती।
अइसन अइसन गीत बनत हे, सुनके फट जाथे छाती।
मुड़ मा चढ़ कतको छपरी मन, नाचत हें ताता थइया।
छत्तीसगढ़ मा बढ़त जात हे, दूअर्थी गीत गवइया।
लाइक व्यूह कमेंट पाय बर, गिर जावत हें लद्दी मा।
अंत अती के हब ले होही, बड़ ताकत हे बद्दी मा।।
बने बने जे लिखही गाही, जस होही ओखर भइया।
छत्तीसगढ़ मा बढ़त जात हे, दूअर्थी गीत गवइया।।
करू कसा नइ टिके जगत मा, जानत हावय तभ्भो ले।
नाक कान अउ गर कटवाके, जहर जगत मा वो घोले।।
मान गिराये महतारी के, बुड़ जाये ओखर नइया।।
छत्तीसगढ़ मा बढ़त जात हे, दूअर्थी गीत गवइया।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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