गीत-भाँखा छत्तीसगढ़ी मोर
ये भाँखा छत्तीसगढ़ी मोर।
बाँधे सब ला जइसे डोर।।
बोले बर मँय नइ छोड़ँव....
ये महतारी के ए बानी।
बहे बनके अमृत पानी।।
घर गाँव गली बन खोर।
सबे खूँट हावय एखर शोर।
बोले बर मँय नइ छोड़ँव....
समाथे अंतस मा जाके।
मिठाथे जइसे फर पाके।।
आलू बरी मुनगा के फोर।
डुबकी अउ इड़हड़ के झोर।
बोले बर मँय नइ छोड़ँव....
बोले मा लाज शरम काके।
बोलव सब छाती ठठाके।।
मन के अहं वहं ला टोर।
मया मीत बानी मा लौ घोर।
बोले बर कोई झन छोड़व....
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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