गरमी मा ताल नदी स्नान-सार छंद
देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।
चटचट जरथे चारो कोती, जुड़ जल जिया लुभाथे।।
पार पाय नइ नल अउ बोरिंग, नदिया अउ तरिया के।
भेदभाव नइ करे ताल नद, गुरिया अउ करिया के।।
का जवान लइका सियान सब, डुबकी मार नहाथें।
देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।।
कोनो कूदे कानों तँउरे, कोनो डुबकी मारे।
तन के कतको रोग रई हा, डुबकत तँउरत हारे।
बुड़े बुड़े पानी के भीतर, कतको बेर पहाथे।
देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।
लहरा होथे गहरा होथे, डर तक रहिथे भारी।
नइ जाने तँउरें बर तउने, मारे झन हुशियारी॥
जीव जंतु तक के ये डेरा, काम सबे के आथे।
देख घाम मा नदिया तरिया, सबके मन ललचाथे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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