Friday 2 November 2018

सवैया

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के सवैया छंद

1,किरीट सवैया(जड़काला)
साँझ सुबे ह सुहाय नही रतिहा बइरी कस लागत हावय।
जाँगर जाड़ म हे अँकड़े अँखिया रतिहा भर जागत हावय।
नाक बहै अउ दाँत बजे बड़ जाड़ म देखव का गत हावय।
सूरज देव घलो तरसावय होत बिहान ले भागत हावय।

2,चकोर सवैया(धान लुवई)
हाथ धरे धरहा हँसिया बड़ मारत हे ग उछाह उफान।
मूड़ म ललहूँ पटकू ल लपेट किसान चले ग लुवे बर धान।
गावत हे करमा सुर मा मन भावत हावय जेखर तान।
धान दिखे चरपा चरपा पिंवरा करपा बड़ पावय मान।

3,अरसात सवैया(अंत समे)
मोर कही झपटे धन दौलत फोकट रोज करे अतलंग जी।
मीत मया सत छोड़ दया तँय काबर छेड़त हावस जंग जी।
के दिन काम दिही धन दौलत साथ न देवय रूप न रंग जी।
छूट जही सब अंत समे बस तोर रही करनी हर संग जी।

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