Sunday 6 December 2020

संस्मरण--मोर आठवी पेपर छूट गे

 संस्मरण--मोर आठवी पेपर छूट गे


रतिहा के 4 बजे बाबू जी के संग साइकिल म बइठ के राजनांदगांव के जुन्ना बस स्टेण्ड पहुँच गेंव, अउ उहाँ ले पहाती के पहली बस म बइठ के दूनों झन कापसी बर निकल गेंन। हव उही कापसी जेन एक समय म हड्डी जोड़े बर भारी प्रसिद्ध रिहिस, अउ अभो घलो हड्डी टूटे के उपचार उँहा होथे, पर पहली कस नही। बस म चढ़के ममा गाँव इरई जावन त खिड़की मेर बइठ के आजू बाजू ल झाँकव, अउ बड़ मजा लेवँव, फेर ये पहली दफा होइस जेमा आँखी ले आँसू झरत रहय, काबर की मोर जेवनी हाथ के हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे कहिके गाँव के डॉक्टर ह बता दे रहय। अउ ओखर ले बड़े दुख ये बात ये रहय कि हप्ता भर बाद मोर आठवी क्लास के बोर्ड परीक्षा होवइया रिहिस। पेपर तैयारी लगभग पूरा कर डर रेंहेंव फेर होनी ल कोन टार सकथे। बस म बइठे बइठे मन म आय कि कापसी म हड्डी जोइड़या तुरते जोड़ दिही त मैं पेपर म घलो बइठ जाहूँ। अइसने गुनत सोचत कब कापसी आगे आरो घलो नइ लगिस, बस के बाहर झँकई तो दूर आघू पाछु कोन बइठे रिहिस तहू ल नइ देख पायेंव।  दरद के मारे हाथ उठाना घलो मुश्किल रहय,बाबू जी सरलग धीर धरावत रहय। कापसी म पहुँचेंन त भारी भीड़। लाइन म लगे के बाद मोरो नम्बर आइस, उँहा बइद महराज ह कुछु पाना के लेप ल छोट कमचिल संग पट्टी म बाँध दिस, अउ किहिस 21 दिन बाद फेर देखाहू। मोर आँखी ले आँसू तरतरी धर लिस,जउन सोचे रेंहेंव ते नइ हो पाइस। अब पेपर देवाना तो असम्भवच होगे।  भइगे घड़ी घड़ी भगवान ल सुमरत रहँव। दूनो झन इलाज के बाद  बस म बइठ के अपन गाँव आगेन। दूसर दिन आँखी म आँसू धरे स्कूल गेंव अउ सर मन ल अपन हाल ल बतायेंव। वो समय मोर स्कूल के प्राचार्य श्री एम एल साहू सर जी रिहिस, संग म जांगड़े सर अउ मंडलोई सर मन घलो सुझाव दिन कि आजे मेडिकल बना के आवेदन लगादे, यदि हो पाही त पूरक वाले मन संग पेपर देय के मौका मिल जाही। फेर ये काम ल झट कर काबर कि पेपर चालू होनेच वाला हे, बोर्ड ल सूचना देना जरूरी हे। ताहन फेर का बाबू जी संग तुरते  शहर(नांदगांव)आगेंव अउ डॉ सदानी करा मेडिकल बनाके, तुरते स्कूल म जमा करेंव, स्कूल म घलो सर मन तुरते आवेदन बनाके, ऊपर बोर्ड म सूचना भेजिन। दू दिन बाद साहू सर कर गेंव त बताइस कि तोर मेडिकल जमा होगे हे, अउ तें अब पूरक परीक्षा के समय पेपर देबे, जा अब जल्दी हाथ ल ठीक कर। मोर मन नइ माढ़त रहय, मोर जम्मो तैयारी धरे के धरे रहिगे। मन म विचार आइस कि डेरी हाथ म लिख के पेपर देहूं, जिद  म पूरा दिन भर लिखेल सीखेंव, फेर कभू तो नइ लिखे रेंहेंव, अउ मुख्य परीक्षा एक दिन बाद चालू होवइया रिहिस,   वो दिन रातभर घलो डेरी हाथ म लिखे के प्रयास करेंव, मोर जेवनी हाथ के लेखनी बनेच रहय फेर डेरी हाथ म घलो धीरे धीरे जादा अच्छा तो नही पर पहली पहली सीखती लइका मन कस लिखा जावत रिहिस। बिहना फेर स्कूल पहुँच गेंव अउ सर ल केहेंव कि मुख्य पेपर म ही बइठहूँ, ये दे डेरी हाथ म घलो अइसन लिख डरथँव, पास होय के पूर्तिन नम्बर आ जाही। जे प्रश्न म कमती लिखे के रही वोला धीरे धीरे लिख डरहूँ। मंडलोई सर मोर बात ल सुनके कथे, बेटा तोर अतेक अच्छा राइटिंग बनथे जेवनी म, जेवनी हाथ जइसन लिखना दू चार दिन म सम्भव नइहे, तैयारी  तो तोर हेवेच घर म बइठ के अउ पढ़ अउ पूरक वाले मन संग पेपर दे देबे, जब तोर हाथ ठीक हो जही तब। मैं मानते नइ रेहेंव, पूरा स्टाफ समझाइस, तब अपन मन ल मार के हामी भर देंव। दूसर दिन स्कूल म मुख्य परीक्षा चालू होगे, स्कूल के तीर म आके स्कूल ल झाँकत रहँव, अउ छुट्टी होय त सबके प्रश्न पत्र ल देखँव, मोला बड़ सरल लगय, फेर का कर सकतेंव, मोला तो बाद म पेपर देना रिहिस। हर साल कक्षा म प्रथम आय के सपना देखे रेंहेंव ते वो साल रट ले टूटे कस लगिस। मोर गाँव म दसवीं तक स्कूल हे, अपन समय म मैं, पहली ले दसवी तक  प्रथम आये हँव बस आठवी ल छोड़ के, काबर कि मैं वो समय मुख्य परीक्षा नइ देवा पाये रेहेंव। पढ़ई लिखई दुख अउ दरद म होबे नइ करे, घड़ी घड़ी हाथ के जुड़े के संसो सताय अउ मुख म हे भगवान रहय। मुख्य पेपर घलो होगे। 21 दिन बाद फेर कापसी जाके, पट्टी बँधवायेंव। कुछ दिन बाद हाथ के पट्टी ल 21 दिन के पहलीच हेर के देखेंव, जेन हड्डी ल टूट गेहे केहे रिहिस, ते तो छुये म जस के तस लगे। बाबू दाई ल घलो बतायेंव। उही समय मोर बड़े फूफा गाँव आये रिहिस, ओहर किहिस कि हमर गाँव तीर भवानी मन्दिर के पास करेला गाँव म एक बइद हे, उहू अच्छा हड्डी जोड़थे, मोरो एक पँइत ईलाज करे हे। ताहन फेर का बाबू जी संग उँहे बर निकल गेंव। उँहचो मैं बतायेंव की हड्डी येदे टूट  गेहे, ताहन उहू हर खींच खांच कुछ लेप के संग 21 दिन बर पट्टी कर दिस। अउ कहिस कि ओखर ले पहली झन निकालबे, फेर 21 दिन बाद आहू। पट्टी कराके घर आगेंव, पूरा दिन रात संसो म कटे, पढ़े लिखे के मन घलो नइ लगे। एके चिंता रहय मोर हाथ कब बने होही। दाई बाबू अउ भाई मनके मया दुलार म ये दुख भरे दिन ला भगवान भरोसा काटत रेंहेंव। 21 दिन पूरे के बाद पट्टी खोल के देखेंव त फेर जस के तस। पास परोस के मन किहिस, कि कापसी ही जाना रिहिस कहाँ करेला चल देव, कापसी म ही येखर ईलाज हो पातिस, मरता का न करता।। फेर उँहें बर चल देंन, फेर उँहा पट्टी कर दिस। हाथ ल लटकाय लटकाय मोला अइसे लगेल धर लिस कि मोर हाथे नइहे। खाना, पीना, नाहाना धोना, खेलना कूदना सब हराम होगे रिहिस। बेरा बीतत गिस, आठवी के परिणाम घलो आगे,मोर कक्षा के रीना देवांगन 70% अंक लेके प्रथम आगे। मोला मोर हालात बर बड़ दुख लागिस, कि वो साल मैं पहली बेर अपन प्रथम आय के वादा ल पूरा नइ कर पायेंव। कथे न धन, दौलत सुख चैन सब स्वस्थ शरीर म ही सुहाथे,अउ जर बुखार म ये सब फालतू होथे। मोला मोर हाथ के संसो रहय। एक दिन फेर दाई बाबू ल  बिना बताये पट्टी ल खोल के देखेंव, जस के तस टूट के खसके हड्डी हाथ म छुये ले उसनेच लगे। अब तो मोर धीरज खरागे, ददा दाई मन घलो तंग आगे। राजनांदगांव म रथे मोर ममा मामी, ये गीत मोर बर फीट हे, काबर की  मोर बड़े ममा मामी म उँहिचे रहय, ममा शहर म नोकरी करे। अउ मोर हाल ल सुनके उहू मन मोला देखे बर गाँव आये रिहिन, ममा कथे अब तो हड्डी वाले डॉक्टर ल ही दिखाना चाही। तुरते फेर शहर के डॉक्टर कर चल देन। डॉक्टर के केबिन म गेंव त डॉक्टर किहिस, कइसे का होगे हे, कइसे टूट गे तोर हाथ ह? मैं बतायेंव कि एक दिन संझा साइकिल के टायर ल उप्पर फेक फेंक के झोंकत रेंहेंव, अचानक एक बेर उप्पर ले गिरत चक्का ल झोंकत झोंकत सीधा कोहनी अउ कलाई के बीच म लगगे अउ हड्डी टूट गे। अउ टूटे के बाद येदे आड़ी होगे हे, तेहा जुड़ते नइहे। डॉक्टर छू के देखिस, अउ छूते साँठ कथे, येमा कुछु चीज गड़े हे। हड्डी टूट के अइसन आड़ी नइ होय हे। अब हम का जानी, वो दिन संझा जइसे चक्का हाथ म पड़िस , दर्द के मारे चितियागे रेंहेंव, अउ गांव के डॉक्टर ल दिखायेंव त (एक तो वोला दर्द के मारे छुवन घलो नइ देवत रेंहेंव) वो किहिस लगथे हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे। अउ छुये म लगे घलो। उही ल सच मान के ईलाज बर जघा जघा घूमत रेंहेंव। डॉक्टर एक्स रे लिखेस। एक्सरे ले साफ होगे कि हड्डी नइ टूटे हे, बल्कि वो चक्का के तार ह (लगभग 6,7 सेंटीमीटर) टूट के हाथ म घूँसे हे। तार के बात ल सुन के डॉक्टर हमन ल बलाके पूछिस कत्तिक दिन होगे हे? बतायेंन कि लगभग अढ़ाई महीना, डॉक्टर माथा धरलिस अउ कथे, अत्तिक दिन ले का करत रेहेव, कहूँ  लोहा के जहर हाथ म फैल गे होही, त हाथ ल घलो काटेल पड़ सकत हे। डॉक्टर के बात ल सुनके मोर होस उड़ गे काबर की लोहा के पइजन के बारे म देखे रेंहेंव, मोर एक झन संगी तरिया म कपड़ा धोवत रिहिस, अउ ओखर थैली के आलपिन वोला गड़ गे रिहिस, त हप्तच भर म ओखर आधा अँगरी ल काटेल लगे रिहिस। फेर मोर तो बनेच दिन होगे रहय। हे भगवान मोर का होही? तुरते आपरेसन के तैयारी होइस। नानकुन टाँका लगाके तार ल निकालिस, अउ डॉक्टर किहिस सुक्र मना बाबू भगवान के दया ले लोहा के एको पैजन ह तोर हाथ म नइ फइले हे, येदे जम्मो जहर तार म ही जमगेहे, तार जंग लग लग के हाथे म बनेच मोठ होगे रहिस। जइसे तार निकलिस, दरद घलो गायब होगे, अउ हाथ ल मैं तुरते  मोड़ माड़ घलो डरेंव। डॉक्टर दरद के कारण बताइस की हाथ के दू हड्डी के बीचों बीच तार ह टूट के गड़गे रिहिस त जरा से हिलाय म घलो दरद करे।  मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, काबर कि मोर हाथ बने होगे रिहिस। डॉ अग्रवाल ल धन्यवाद करके घर आयेंव अउ सोचेंव हे भगवान आज तैं मोर हाथ ल बचा लेस, मोर लापरवाही म  अत्तिक दिन म घलो पैजन नइ होइस, तोर लीला अपरम पार हे। कास  मैं डॉक्टर तीर पहिली जाये रहितेंव, त मोर पेपर घलो नइ छुटतिस|  फेर जे होना रथे ते होके रथे, वो दिन ले बइगा गुनिया मन डहर जाये बर कान पकड़ लेंव, सबले पहली प्राथमिकता डॉक्टर ल देथंव। पूरक के परीक्षा घलो होगे, परिणाम म मोला सिर्फ 65% मार्क्स मिलिस। अउ सर्टिफिकेट म पूरक घलो लिखागे। कँउवा कान लेगे येला सच माने के पहली कान डहर घलो देखना चाही। कोनो भी घटना के जड़ तक जाये बिना वोला आत्मसात नही करना चाही, सच जाने के बाद ही कदम उठाना चाही, नही ते अइसने होथे। येला मैं सॅंउहत भोगे हँव। वो तो भगवान के कॄपा हे जे मोर हाथ सलामत रहिगे, वो दिन ले मैंहर आज तक लगभग हर सोमवार के एक दिन भगवान के धन्यवाद स्वरूप उपवास घलो रथों। अंत मा इही कहूँ, कुछ स्वास्थ्यगत परेसानी आये मा बइगा गुनिया तीर तको जावव फेर पहली तकनीकी अउ डॉक्टर के राय लेना चाही। नही ते बड़ पछतावा होथे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

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