Sunday 6 December 2020

बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा

 बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा


मोर जिनगी के 21 बछर जनम भूमि खैरझिटी(राजनांदगांव) म दाई,ददा, घर- गांव अउ खेत-खार के छाँव म ठेठ गँवइहा स्टाइल म कटिस। मोला मोर लइकन पन के एकठन करामत के सुरता आवत हे। कक्षा सातवी के पेपर होय के बाद गरमी छुट्टी लग गे रहय। गाँव म भागवत पढ़े बर एक झन महराज अपन एक झन चेला के संग पधारे रहय। कोनो परब तिहार होय, या कोनो उत्सव,या फेर खेल कूद या नाचा गम्मत, मोर खुशी के ठिकाना नइ रहय, पंडाल के बनत ले लेके आखिरी बेरा तक उही मेर ओड़ा डार देत रेहेंव। लीपे, बहारे, सब्बल धरके गड्ढा कोड़ के खंभा गड़ाये, तोरन ताव सजाये म घलो बड़ आनन्द आय। वो दिन घलो इही सब काम म हाथ बँटाय के बाद दूसर दिन 9 दिन बर भागवत चालू होगे। महराज ह पंडाल ले थोड़ीक दुरिहा वाले घर म ठहरे रहय, जेला बाजा गाजा के संग परघावत भजन मंडली वाले मन पंडाल तक रोज लाने अउ लेजे घलो, महूँ वोमा थपड़ी पीटत,नही ते झाँझ मंजीरा बजावत शामिल रहँव। गांव भर के मनखे मन रोज भागवत सुने बर सकलाय। बनेच भक्तिमय माहौल रहय, महू संगी साथी मन संग कभू सुनत त कभू उही मेर खेलत रहँव। दू दिन के बाद तीसर दिन बिहनिया 8:30 महराज ल परघा के मंच तक लाना रिहिस, 9 बजे भागवत शुरू हो जावत रिहिस। फेर वो दिन ढोलक बजइया कोनो नइ रिहिस।झांझ मंजीरा म ही भजन गावत महराज ल लावत रिहिस मैं एक ठन ढोलक ल धर लेंव, अउ चलत भजन म थोर बहुत मिलाके ढोलक ल ठोंकत बढ़ गेंव। वइसे कभू तो सीखे पढ़े नइ रेंहेंव फेर सेवा-जस होय ते घरी छुवे बर मिल जावत रिहिस, सियान मन देखे त ,लइका मन भागो रे कहिके चमका देवय। वो दिन संझा घलो मैं एकठन ढोलक ल पहली ले धर लेंव अउ एक झन तो मुख्य वादक रहिबे करे रिहिस। कई सियान मन किहिस रख दे , एक झन तो बजाइय्या हे, ततकी बेर महराज कथे, बजावन दव जी, बेरा बखत म काम आथे, आज बिहना तो लइका बिचारा ह अलवा जलवा बजावत रिहिस न। महराज के बात ल कोन काटे, मैं वो बजकार संग मिलाके ढोलक बजायेंव, दू ठन तो गाना रहय, हाथ वो ताल म जमे कस लगिस। दूसर दिन घलो ढोलक बजाये के सपना रात भर खटिया म सुते सुते देखत रहिगेंव, अउ भगवान ले विनती करेंव कि कोनो बाजा बजाइय्या झन रहितिस, अउ रहितिस भी त एक झन, ताहन महूँ गला म दूसर ढोलक ल अरो के चलतेंव। खुसी के मारे नींद घलो नइ आइस। पहाती नहा खोर के फेर पहुँच गेंव। नीर सोचई सच घलो होगे, फेर कोनो नइ रिहिस बाजा बजइया, ताहन का कहना जेन सियान  मन रख रख काहत रिहिस तिही मन ह, ले बाबू बजा कहिके गला म अरो दिस ।मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, दादरा कस ताल पीटत महराज ल मंच तक लेंगेंव, अउ संझा लानेंव घलो। फेर सँझा कोई न कोई बजकार रहय,पर दूसर ढोलक ह मोर बर फिक्स होगे रिहिस। महराज वइसे तो बिन बाजा पेटी के कथा कहय फेर एक दिन ओखर भजन म सब ताली बजावत रहय त मैं ढोलक ल डरे डर म धीरे धीरे मिलावत रहंव, महराज के चेला कथे - बने बजावत हस, बजा बढ़िया जोर से। ताहन का महराज के भजन-गाना-गीत घलो ढोलक के ताल देख लम्बा खींचा गे। अउ वो दिन ले महराज ह अपन चेला के तीर म महू ल ढोलक धरवा के बइठार देवत रिहिस। लेजना, लानना के अलावा अब कथा के बीच बीच के गाना मन म मंच म बइठे ढोलक ल ठोंकव। ढोलक के आय ले बनेच माहौल घलो बन जावत रिहिस,काबर की तालीच भरोसा म कोनो भजन कत्तिक तानही, महराज के चेला जे नानचुन झोला म हाथ ल डार के बइठे रहय तेहर मंजीरा ल धर लिस। संगीतमय समा ले महराज खुश अउ सुनइया मन तक खुश। देखते देखत आखरी दिन होगे, महराज मोला नाम ले जाने। नटवर नाँगर नन्दा भजो रे मन गोविंदा--इही कीर्तन आखरी बेरा म चलत रहय।

मोर हाथ तो ढोलक म बरोबर ताल देवत रिहिस फेर मन उदास रिहिस, कि काली ये सब बन्द हो जाही। मोर आँखी ले आँसू झरत देख महराज पूछिस का होगे बाबू, मैं कहेंव काली मैं का करहूँ?आप मन तो काली चल देहू।  महराज मजाक करत कथे, त का तहूँ जाबे हमर संग? मैं मुड़ी डोला के हव केहेंव। महराज के, तैं का करबे ल सुन,मैं तपाक से केहेंव आप मन संग ढोलक बजाहूँ, अतेक कहिके फेर रोय बर धर लेंव। महराज रहय मथुरा के छत्तीसगढ़ म ओखर भागवत एक दू जघा अउ रहिस। चढ़ोतरी वगैरह होय के बाद घलो मैं उही मेर रेंहेंव, अउ आखिर बार बाजा बजावत परघावत ओखर ठहरे ठिहा म गेंव। सब सियान मनके घर जाये के बाद मोला बलाही कहिके महराज के आघू आघू म होवत रेंहेंव, आखिर म बलाइस अउ किहिस, तोर दाई ददा मन तोला जावन दिही? मैं फटाक कहेंव हव। का पता कहत महराज कथे वइसे तुम्हर गाँव ले 10 किलोमीटर दुरिहा म नगपुरा हे उँहा अगला भागवत होही। जा बने पूछ के आ घर ले ताहन ,सुबे के बस म  जजमान मन ले बिदा लेके निकलबों? मैं बड़ खुश होगेंव, अउ रतिहा झट ख़ाना खाके महराज के ठिहा म पहुँच गेंव, महराज मन के आराम करे के बेरा होवत रिहिस, मैं जाके झूठ बोलत केहेंव दाई बाबू दूनो ल बताये हँव, ओमन जा किहिस, अउ बात बनावत यहूँ केहेंव की वोमन आखरी दिन नकपुरा आही, मोला लेगे बर। बाजा बजाये के मोह अत्तिक मन म सवार रिहिस कि झूठ मूठ के सबकुछ गढ़ डरेंव। जबकि ददा दाई ल कुछु भी बताये नइ रेंहेंव। सुबे आहूं कहिके घर आगेंव अउ लुका के एकठन ताँत के झोला म दू जोड़ी कपड़ा ल भर के रख देंव। फेर रात भर नींद नइ आइस। बिहना नहा के कलेचुप सीधा बस स्टैंड म पहुँच गेंव, अउ महराज ल बतायेंव येदे मोरो कपड़ा लत्ता हे। गाँव भर के मनखे मन महराज ल विदा करे बर आय रिहिस, मैं कोनो ल नइ बताएंव कि महुँ महराज संग जावत हँव,चुपचाप एक तीर म खड़े रेंहेंव अउ बस आइस ताहन कलेचुप सबके नजर ले बचके चढ़ गेंव गाँव वाला मन महराज के पाँव पल्लगी म भुलाये रिहिस, थोड़ीक देर म चेला घलो चढ़गे वो मोला देखिस, अउ महराज चढ़िस ताहन बस चल पड़िस। वो दिन बाबू जी घलो गोतियार के नाहवन म दूसर गाँव गे रिहिस। मैं तो सबके नजर ले बचके भाग गे रेंहेंव। रतिहा विश्राम करे के बाद दुसर दिन भागवत चालू होइस। मोर बर एक ठन ढोलक समिति वाले मन कर ले जुगाड़े गिस। पहली दिन जम्मो भजन कीर्तन म ढोलक बजायेव ,अउ चेला  के मंजीरा घलो गूँजिस। अब हमन तीन झन होगे रेहेन ।मैं ,महराज अउ ओखर चेला। साथ म सोवई  अउ रंग  रंग के खवई म दाई ददा घर गांव के सुध भुलागे। येती मोला घर ले निकले दू रात बितगे रिहिस दाई के हाल बेहाल रहिस, गांव म जे भागवत करात रिहिस तेला पूछिस, देखे हव का टूरा ल कहूँ महराज के सँग तो नइ चलदिस हे, उँखर मनले तो मैं बचके कलेचुप बस म बइठे रेंहेंव कोन का जानही। कई झन मन किहिस की बस स्टैंड म आखरी बार दिखे रहिस। कतको मन किहिस, कि महराज के सँग भागे होही, काबर की 9 दिन ले तो ओखरे संग चिपके रहय। कतको मन महराज ल खिसियाये लगिस कि महराज ल तो बताना चाही। बाबू गाँव ले आइस त पता करिस कि महराज के भागवत अभी कहाँ चलत हे। अभी कस पहली कहाँ फोन ,एक तो दू दिन बाद म बाबू  गाँव ले आइस वो भी कका बलाए बर गिस तब। येती दाई अकेल्ल्ला का करतिस, भाई मन तक छोटे छोटे , मही खुद 13 बछर के बड़का (चार भाई म) रेंहेंव। ले दे के पता चलिस के नगपुरा म भागवत होवत हे, ताहन  बाबू अउ कका दूनो बिहना साइकिल धरके निकलगे। येती भागवत के दूसरा दिन चलत रिहिस, बनेच भीड़ घलो रहय। कथा म सब रमे रहय अउ महूँ ढोलक के संग कथा म मगन रेंहेंव। बाबू अउ कका स्रोता मनके  संग म बइठ के भागवत के उसले के रद्दा जोहत रिहिस। मोला उहाँ पाके उँखर तरवा ठनकत रहय, फेर संत समागम म हो हल्ला हो जही कहिके कलेचुप रिहिस। भागवत उसले के बाद मोर नजर बाबू अउ कका ऊपर पड़के। मोर तो हाथ पाँव काँपे लगिस। महराज जिहाँ ठहरे रहय तिहाँ दूनो झन तमकत आइस अउ पहली तो महराज ल सुनाइस कि काबर कखरो लइका ल अइसने ले आथो महराज जी कहिके, महराज समझगे कि मैं झूठ बोल के आये हँव। महराज बाबू ल किहिस की मैं तो केहे रेहेंव भई, घर म पूछ कहिके, त ये बाबू ह हव पूछ डरे हँव, जाये बर केहे हे किहिस, त लान परेंव, वइसे महूँ ल एक बार बताना रिहिस, फेर जल्दीबाजी अउ विदा के चक्कर म ध्याने नइ आइस। रिस म कका दू लउठी सूँटिया घलो दिस। अउ साइकिल म जघा के घर ले आइस। गाँव भर म मोर गँवाये के हल्ला पर गे रिहिस, अउ सब जानिस त, खिसियाये, वाह रे लइका कहिके। दाई घलो दू तीन बाहरी जमाये रिहिस। कोन जन का होगे रिहिस ते, मैं वो दरी बाजा के मोह म बइहागे रेंहेंव। दाई बाबू मन कभू अपन ले अलग नइ करे रिहिस, मोला सुरता आवत हे,मोर 5 वी क्लास के बाद नवोदय डोंगरगढ़ म सलेक्शन घलो होय रिहिस फेर नानकुन लइका कहाँ अत्तिक दुरिहा अकेल्ल्ला रही कहिके नइ भेजे रिहिस। दू दिन लइका नइ दिखे त कत्तिक दुख होथे तेला दाई ददा के अलावा कोन जानही। अउ लइका के प्रति वो मोह,मया,लगाव ल ददा बने के बाद अनुभव करथों। बिना बताये कोनो कदम नइ उठाना चाही।


जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment