Sunday 6 December 2020

महूँ आलोचक हो सकथँव*

महूँ आलोचक हो सकथँव*

 मोला जादा दिन तो लिखत नइ होय हे, अउ बने घलो नइ लिखँव, का महूँ आलोचक समीक्षक हो सकथँव? पुस्तक के पाठ, पेपर ल पढ़त पढ़त,मेंहा कालेज के जमाना म हिंदी म लिखत रेहेंव, एक,दू गिनत गिनत आधा सैकड़ा घलो होगे, तब मन म चलुक चढ़िस येला छपवा के नाक ऊँचा करे जाय। फेर येती तेती म मन बिदक के। लिखावट होते रिहिस फेर वो सपना ठंडा बस्ता म चल दिस। कॉलेज के पूरा होय के बाद काम धंधा बर आने गाँव आगेंव, अउ उहाँ के साहित्यिक माहौल ल झाँकेंव, तभो अपन चीज ल कोन हिनहीँ। कोर कसर कोनो बताबेच नइ करिस, मोला लगिस, मैं बढ़िया लिखत हँव। एक दिन अइसने महतारी भाँखा म लिखेंव अउ दू चार जघा पढेंव, बनेच वाहवाही मिलिस, वो दिन ले कलम ह छत्तीसगढ़ी च लिखहूँ कहिके अड़गे, दू चार बछर म बनेच अकन संग्रह घलो होगे, सब ताली बजाइस , फेर मोला लगिस अब येला छपवाये जाय, अउ नाम कमाये जाय। गँवागे मोर गाँव, अउ खेती अपन सेती नाम के दू पुस्तक छत्तीसगढ़ी म छपगे। छपे के बाद पता लगिस नाम वाम सब सपना ये। फेर आत्म सन्तुष्टि ले बढ़के का हे। एक दिन छंद कक्षा छंद सीखे बर गेंव। मोर हिंदी म हमेशा डिस्टेंसन आय , एम ए घलो करे हँव, तभो मात्रा गणना म फेल होगेंव। ले देके कक्षा म गुरुजी मनके निर्देशन म जमेंव। तब *पता लगिस कि जेन पुस्तक ल मैँ छपवाये हँव, वो मोर भावानुरूप फिट हे, फेर व्याकरण जे सुध नइहे हे, सही शब्द रूप, वचन, काल, पुरुष, लिंग म बनेच त्रुटि हे,, पहली बड़का कवि ल पढ़त सुनत देख ओखर पांव छूवत उन ल पुचपुचावत पुस्तक घलो दे देत रेहेंव, फेर वो दिन ले मोटरा बांध के तिरिया देहों* हिंदी के काव्य म लिंग त्रुति ल कोनो कोनो बताये रिहिस, तेखर सेती हिंदी ल छोड़ छत्तीसगढी म लिखत रेहेंव, फेर यहू म गलती?जबकि काल, वचन, लिंग, कारक, पुरुष सबे स्कूल कालेज के पढ़े चीज आय। *इही ल कहिथे पढ़ना अउ कढ़ना* पढ़े के बाद बिन पढ़े घलो कुछु नइ होय। जब तक कढ़ई नइ होवव तब तक। शुद्ध साहित्य देय बर भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष म घलो पकड़ होना जरूरी हे।ये बाद म पता चलिस। मोर पुराना काव्य म पुरुष दोष, काल दोष, वर्तनी दोष,वचन दोष बनेच दिखथे, येला दूर करे के प्रयास चलत हे। वइसे कहे गेहे *परोपदेशे पण्डितव्यम*। मीठ मीठ लिखना समीक्षक के काम होही त, महूँ लिख सकथँव, फेर गलती खोजे बर साहित्य के सेवा शर्त उत्तर प्रतिउत्तर ल अभी जानेल लगही। एक समीक्षक गुणवान, जानकार होथे। वइसे साहित्य के सही आलोचक तो पाठक होथे, अउ पढ़े बिना आलोचक घलो आलोचना नइ करे। फेर मैं बिना विवाद में पड़े, मीठ मीठ लिख सकथँव, करू कसर लिखे बर अउ जानकारी चाही। आजकल तो पाठक हे न बने आलोचक?जेन हे तेला छोड़के, फेर मोर कस निर्विवाद आचोलक सब बन सकथे, जादा हाने सुने के घलो जरूरत नइहे। मीठ मीठ आलोचना बर जरूर सम्पर्क करहू। खैर कुछु नइ लिखाय हे तेखर सेती जउन आइस तउन लिख परेंव। फेर एक समीक्षक ल (वइसे तो आज मौलिक भाव कमसल हे तभो) भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष अउ काव्य के प्रभाव ल जरूर देखना चाही। साहित्य का निर्माण म सहायक हे। कोन कोन रस ल समेटे हे। साहित्य के मूल्यांकन के तो अनेक पहलू हे। जानकार अपन अपन होसाब ले समीक्षा लिखथे। आज तो विकट स्थिति घलो आगे हे, समीक्षक के अलावा कोई बने पाठक घलो नइ मिले। समीक्षा करे म पहली जल्दबाजी नइ होवत रिहिस, कवि लेखक के साहित्य के प्रभाव समाज म कइसन पड़त हे, येखर आधार म घलो समीक्षक मन मूल्यांकन करे। आज के स्थिति चिंतनीय हे, पाठक खोजना पढ़त हे, त फेर वो साहित्य के समाज म प्रभाव के का बात करना। मूल्यांकन के विविध पहलू के चर्चा पटल म बहुत बढ़िया ढंग ले होय हे। एखर बर विचार पठाये गुनी साहित्यकार मन ल सादर नमन। 

 खैरझिटिया

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