Sunday 6 December 2020

मनरेगा

 मनरेगा


           का कोनो किसान कर, धान बोय के बाद अउ कुछु बूता नइ रही त, वो बूता देखाय बर, फेर धान ल उसेल के वोमा धान बोही। मोर खियाल से तो नही। फेर ये मनरेगा म का होवत हे। एक साल खनत हे, त दुसर बछर उही ल पाटत हे। अउ करे त का करे? अब तो गाँव म डीही डोंगरी, अरिया परिया कुछु नइ बाँचे हे। एक ठन गउठान अउ एकलौता चरागन हे, जेमा चारा तो नही फेर गाय गरुवा के हाड़ा जरूर दिख जथे। सड़के सड़क बरदी रेंगथे अउ चरागन म थोर टेम रुक के फेर घर आ जथे। अरिया परिया म डबरी तरिया मनरेगा के चलते अतेक बन गे की अब रीता भुइयाँ के नामो निशान घलो नइहे। येखर बर पोगरी मनरेगा च घलो जिम्मेदार नइहे, बेजा कब्जा नाम के धंधा घलो भारी फले फुले हे। फेर हर बछर कस एहु बछर मनरेगा चलत हे। छोट बड़े सब बरोबर काम करत सरकार के योजना अनुसार पैसा कमावत हे। काम अब उही ल पाटे के चलत हे, जेन ल पउर खने गे रिहिस। अउ एखर अलावा मनरेगा के काम देखाय के कोनो गुंजाइस घलो नइहे। पाछू बछर के घटे घटना पंच, पटेल के आँखि ल उघार दे रिहिस, हर बछर चलत मनरेगा म एक ठन डबरी कुँवा कस गढ्ढा होगे रिहिस, ताहन का,,,, गाय गरुवा संग मनखे मन घलो कई बेर उहां फँस फँस के मरे मरे हे। उप्पर वाले साहब मन ल घलो येखर बर फटकार लग चुके हे। तेखरे पाई के अइसन नवा उदिम खने अउ पाटे के बरोबर चलत हे। अउ सबके बरोबर चूल्हा घलो जलत हे।

             मेट मुंसी मनके मन के अनुसार मुड़ नवाके काम करबे त मनरेगा म पछीना ओगरे के घलो जरूरत नइ पड़े। अउ कहूँ मरखंढा बइला कस मुड़ी उँचाबे त मरे बिहान हे। कमा कमा के जाँगर घलो थक जही। फेर दुसर प्रकार के कमैया लगभग नही के बरोबर मिलथे। जउन रिहिस तउन मन घलो सब चेत गे हे। बढ़िया सरकारी के स्किम के फायदा सब उठात हे। एक दू घण्टा देय बर लगथे जादा घलो नही अउ कभू उप्पर वाले साहेब मनके दौरा रहिथे, वो दिन काम ठिहा म ज्यादातर पुरुष मनके तास पता माते रहिथे, अउ महिला मन जुवा हेरत साहब बाबू मनके अगोरा करथे। 

          आज गाँव के चलत मनरेगा ल देखे बर साहब अवइया हे, सब काम बुता निपटा के अपन अपन ले कुछु खेल कहानी म रमे ओखर रद्दा जोहत हे। उहू साहब एखर सेती वो मेर आवत हे, काबर की वो जघा म गाड़ी आराम से पहुँच जाथे, नही ते गाँव के ओनहा कोन्हा म कोन साहेब अउ कोन बाबू पहुँचे। सब रिकार्ड ल देख के पइसा पास कर देवय। कुछ देर बाद गाड़ी के साइरन बजथे, सब कमैया कुदारी रापा धरके, अपन अपन ठिहा ल छोले छाले बर लग जथे। साहव गाड़ी ले उतरिस, ताहन कोनो सभा कस मेट मुंसी मन उँहचो फूल माला अउ गुलदस्ता भेंट करदिस, जम्मो कमैया जयकार करिस। अन्न दाता की जय,,,,,,, ताहन का कहना साहब के छाती फूल गे, जमे कमैया मनके हाथ हला के अभिवादन करिस। अउ मस्ट्रोल म साइन मारके अपन रद्दा नाप लिस। जमे कमैया मन घर जाये बर धरथे, ओतकी बेरा पटइल कहिथे, आज संझा पइसा मिलही, सब टाइम म पहुँच जहू। सबके खुसी के ठिकाना नइहे। सब घर जाके नहा खोर, संझा पइसा बर लाइन लगागे, खड़ा होगे, हर बार कस एकेक आदमी ले 10,10 रुपिया साहब बाबू के खर्चा पानी कहिके, काट के सब ल पइसा मिलगे। अब आप मन सोचत होहू की कोनो काटे पइसा बर आवाज काबर नइ उठाइस होही। मनरेगा बनिच साल ले चलत हे, आवाज उठायेस ताहन , एकात हप्ता बंद घलो हो जाथे, त काबर मुँह खोलना। शहर नगर म नोकरी चाकरी वाले मनखे मन घरे के काम करे बर शरमाथे, फेर गांव म छोट बड़े किसान सब मनरेगा म मिलजुल कमाथे। अइसने निर्विवाद सरकार के योजना चलही, त सरकार काबर कोनो दखलन्दाजी दिही। जनता खुश सब खुश। भले काम बुता अउ विकास चूल्हा म जाये।  सरकार के अइसन योजना चलते रहय अउ सबके पेट पलते रहय। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

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