Tuesday 13 April 2021

नवा बछर (सार छंद)

 नवा बछर (सार छंद)


फागुन के  रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ  उड़े हे मस्ती।

नवा बछर धर चैत हबरगे,गूँजय घर बन बस्ती।


चैत  चँदैनी  चंदा  चमकै,चमकै रिगबिग जोती।

नवरात्री के पबरित महिना,लागै जस सुरहोती।

जोत जँवारा  तोरन  तारा,छाये चारों कोती।

झाँझ मँजीरा माँदर बाजै,झरै मया के मोती।

दाई  दुर्गा  के  दर्शन ले,तरगे  कतको  हस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।


कोयलिया बइठे आमा मा,बोले गुरतुर बोली।

परसा  सेम्हर  पेड़  तरी  मा,बने  हवै रंगोली।

साल लीम मा पँढ़री पँढ़री,फूल लगे हे भारी।

नवा  पात धर नाँचत हावै,बाग बगइचा बारी।

खेत खार अउ नदी ताल के,नैन करत हे गस्ती।

फागुन  के रँग कहाँ उड़े  हे,कहाँ  उड़े हे मस्ती।


बर  खाल्हे  मा  माते पासा, पुरवाही मन भावै।

तेज बढ़ावै सुरुज नरायण,ठंडा जिनिस सुहावै।

अमरे बर आगास गरेरा,रहि रहि के उड़ियावै।

गरती चार चिरौंजी कउहा,मँउहा बड़ ममहावै।

लाल कलिंदर खीरा ककड़ी,होगे हावै सस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।


खेल मदारी नाचा गम्मत,होवै भगवत गीता।

चना गहूँ सरसो घर आगे,खेत खार हे रीता।

चरे  गाय गरुवा मन मनके,घूम घूम के चारा।

बर बिहाव के बाजा बाजै,दमकै गमकै पारा।

चैत अँजोरी नवा साल मा,पार लगे भव कस्ती।

फागुन के रँग  कहाँ  उड़े  हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"

बाल्को(कोरबा)


नवा बच्छर के आप सबला सादर बधाई🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻🛕🛕

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