सरई के सिंगार- दोहा गीत
सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार।
रहिरहि के नचवात हे, गा गा गीत बयार।।
फूल लगे कलगी असन, ओन्हा जइसे पात।
माते फागुन मास मा, सरई हा दिन रात।।
नवा फूल अउ पान मा, गमकत हावै खार।
सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार......
बने रँगोली तरु तरी, झरथे जब जब फूल।
जंगल लेवय जी चुरा, सुधबुध जाये भूल।
अमरत हवय अगास ला, मानत नइहे हार।
सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार.....
सजे साल ला देख के, गूलर डुमर लजाय।
मउहा सेम्हर मौन हे, परसा जलजल जाय।
बन के जम्मो पेड़ हा, नइ पावत हें पार।
सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार...
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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