कोठी मा धान रही
जब तक कोठी मा भरे धान रही।
तब तक ये जग मा ईमान रही।।
होही चारो कोती गोदाम के राज,
ता मया के बगिया वीरान रही।।
गोदाम सिर्फ दाम के बात करथे,
गिरे थके मन के अटके जान रही।।
कोठी बाँट बिराज के पालथे जग ला,
कोठी काठा वाले असल किसान रही।।
माटी के मनखें उड़ियाही माटी छोड़,
त स्वारथ मा सने सबके जुबान रही।
जब तक पसीना मा उगही धान पान,
तब तक मनुष माटी के गान रही।।
हथेली मा उगही फकत पइसा के पेड़।
ता सत मया ममता पड़े उतान रही।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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