--------------मया के पाती---------------
------- ----------- ठउर- बाल्को, कोरबा
-- दिनाँक- 07/08/2020
*मोर मया ल छोड़, कखरो मया मा झन अरझबे।*
*खून ले लिखत हँव पाती,सियाही झन समझबे।*
मोर मयारु,
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मया का होथे? गउकिन नइ जानव। फेर तोला देखे बिना न नींद आय न चैन, तोर सुरता अन्तस् मा अउ तोर मुखड़ा आँखी म समाये रथे। जेती देखथों तेती तिहीं दिखथस। तैं देखे होबे मैं बइहा बरन तोर आघू पीछू किंजरत रहिथों, कोन जनी मोला का होगे हे, का सिरतोन म मया होगे हे? हाँ, मोला तो लगथे हो गेहे, फेर तोर हामी बिना का मया? मैं ये पाती नइ लिखतेंव, फेर का करँव? तोला देखथंव त मुँह ले बोली भाँखा चिटिको नइ फुटे। मोर हाथ गोड़ म कपकपी अउ जिया म डर हमा जथे। मोर जिया म तोर बर मया तो बनेच दिन ले हिलोर मारत हे, फेर वो मया के लहरा भँवरी कस घूम घूम के उही मेर सिरा जावत रिहिस, आज तक किनारा नइ पा सकिस। तेखर सेती मैं अपन मन के बात बताये बर तोला ये मया पाती पठोवत हँव। तोला अपन संगी संगवारी संग हाँसत मुस्कात देख मोला अब्बड़ खुशी होथे। मोर मन मया के अगास म पंछी बरोबर उड़त सोंचथे कि उही मंदरस कस बानी कहूँ मोर बर छलकही तब का होही, कोन जनी कतेक खुशी मन मे समाही। तोर मया बिन मोर जिनगी अमावस कस कारी रात हे, जेमा चमचम चमकत पुन्नी के चन्दा बन उजियारा फैलादे। ये पाती लिखे के बाद, मैं अब तोर आघू पीछू घलो नइ हो सकँव। मोर मन म तो तैं बसे हस, तोर मन म का हे? जवाब के अगोरा रही,
" तोर मयारू"
खैरझिटिया
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