Monday 3 August 2020

खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बिना खाये उदर आगी, बता कइसे बुझाही जी।
विपत नाचत रही सिर मा, भला का नींद आही जी।

लगे सावन घलो बैसाख, आगी कस धरा हे तात।
कटागे रुख गँवागे सुख, मनुष अब जर भुँजाही जी।

बिगाड़े घर घलो ला ये, बिगाड़े पर घलो ला ये।
नसा हा नास के जड़ ए, खुशी धन तन सिराही जी।

ददा दाई ला धुत्कारे, खुशी सुख सत मया बारे।
सुने नइ बात ला बेटा, कहाँ जाके झपाही जी।

गरब मा राख के नौ माह, झेलिस दुख गजब दाई।
निकम्मा पूत हा होवय, ता छाती नइ ठठाही जी।

भलाई के जमाना गय, करे पापी धरम के छय।
बुराई हा जगत मा, एक दिन लाही तबाही जी।

चले चरचा गुमानी के, दबे गुण ज्ञान  ग्यानी के।
धँधाये जेल मा सत ता, बुराई नइ हमाही जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[7/23, 1:06 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

नफा खोजत उड़य नित बाज, देखे मा फरक हे जी।
मरे नइ लाजवंती लाज, देखे मा फरक हे जी।।1

मरे मनखे ला दफनाये, उहाँ कौने घुमे जाये।
हरे मुमताज के मठ ताज, देखे मा फरक हे जी।2

हवै दाई ददा लाँघन, लुटाये पूत पर बर धन।
करे माँ बाप कइसे नाज, देखे मा फरक हे जी।3

उहू बोलय विपत हरहूँ, यहू कहिथे खुशी भरहूँ।
सबे नेता हे एके आज, देखे मा फरक हे जी।4

बढ़े अउ ना घटे धन, कर खुजाये जेवनी डेरी।
दुनो मा होय खुजली खाज, देखे मा फरक हे जी।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[7/26, 5:00 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

का गलत का सहीं हे बता बात मा।
रोष जादा कभू झन जता लात मा।1

हाड़ अउ मांस के तन मा काके गरब।
काँपथे जाड़ मा जर जथे तात मा।।2

साग भाजी हवा अउ दवा दै उही।
जान हे जान ले पेड़ अउ पात मा।3

आदमी अस ता रह आदमी बीच में ।
बाढ़थे मीत ममता मुलाकात मा।।4

छोड़ लड़ना झगड़ना अरझ के मनुष।
तोर मैं मोर धन अउ धरम जात मा।5

भाँप के बेर ला लउठी धरके निकल।
नइ भगाये कुकुर कौवा हुत हात मा।6

हाँ बँटत दिख जथे धन रतन हा कभू।
नइ मिले अब मया मीत खैरात मा।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
[7/27, 5:05 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोर जिनगी मा आबे अपन जान के।
मोला मितवा बनाबे अपन जान के।1

मोल मोरे गिराही जमाना कहूँ।
सोन कस तैं नपाबे अपन जान के।2

मोर दिल मा मया पलपलावत रही।
हाथ तैंहा बढ़ाबे अपन जान के।3

मान जाबे मया के सबे बात ला।
जादा झन तैं सताबे अपन जान के।4

मैं पतंगा अँजोरी सदा खोजथौं।
दीप बन जगमगाबे अपन जान के।5

असकटावत रबे तैं अकेल्ला कहूँ।
नाम लेके बलाबे अपन जान के।6

धन रतन देश दुनिया हवै फालतू।
जग मया के घुमाबे अपन जान के।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/1, 4:24 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: Date: Aug 1, 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तैं बुरा अउ भला सबला जानत हवस।
फेर नइ बात कखरो रे मानत हवस।1

आन बर बड़ मया पलपलावत हवै।
देख दाई ददा तोप तानत हवस।।2

जाग गे सोय हा, आत हे खोय हा।
तैं डहर धर गलत खाक झानत हवस।3

मोल जानेस नइ तैं समय के कभू।
आग लगगे कुँवा तब रे खानत हवस।4

का करत हस करम तैं अपन देख ले।
सत मया मीत अउ रीत चानत हवस।5

बह जथे धार हा पथ बनाके खुदे।
रोक के धार नदियाँ उफानत हवस।6

आय हे जातरी खुद चपक झन नरी।
तैं दवा कहिके दारू ला लानत हवस।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा (छत्तीसगढ़)
[8/1, 9:54 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तोर अउ मोर मा हे घिरे आदमी।
नित लड़त हे कसोरा भिरे आदमी।1

थल ल दाबत हवे जल ल सोंखत हवे।
अउ अगासे ल जिद मा तिरे आदमी।2

भूख सुख बर भुलाके धरम अउ करम।
भेड़िया बनके भटकत फिरे आदमी।3

एक छिन मा बढ़े एक छिन मा अड़े।
एक छिन स्वार्थी बनके गिरे आदमी।4

बोल मा भर जहर धर गलत सँग डहर।
मीत ममता मया ला चिरे आदमी।5

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/2, 9:52 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

बात नइ माने जे लात खाये बिना।
छोड़बे कइसे वोला ठठाये बिना।1

हाथ देबे ता धरथे गला ला सबे।
पाल लइका घलो सिर चढ़ाये बिना।2

बन बुरा बर बुरा अउ बने बर बने।
काम कर ले सदा मटमटाये बिना।3

खात कौरा नँगाही कुटाही जबर।
पेट भरगे कहन नइ अघाये बिना।4

छाय हावय सबे तीर लत लोभ मद।
साफ करबोन सबला सनाये बिना।5

पाँख रहिके पँखेड़ू  धरा खोजथे।
देख मानुष जिये नइ उड़ाये बिना।6

बात करथे हवा संग गाड़ी धरे।
चेत चढ़थे कहाँ ले झपाये बिना।7

टोर जांगर घलो एक लाँघन पड़े।
एक खाये पछीना गिराये बिना।8

दूध माड़े रथे ता दही बन जथे।
लेवना का निकलथे मथाये बिना।9

साज अउ बाज बिरथा बिना साधना।
धार हँसिया रहे नइ पजाये बिना।10

सामने आय नइ सच सहज मा कभू।
पेड़ ले फल गिरे नइ हलाये बिना।11

काम ला देख के जे नयन मूंद दै।
खाय बर जाग जाथे जगाये बिना।12

बिन मया आदमी आदमी काय ए।
घर कहाये नही छत छवाये बिना।13

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
[8/2, 11:08 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोह मद मा फँसे आदमी मन इहाँ।
फोकटे के हँसे आदमी मन इहाँ।।1

साँप कस धर जहर घूमथे सब डहर।
शांति सुख ला डँसे आदमी मन इहाँ।2

ढोर बन मिल जथे चोर बन मिल जथे।
माथ चंदन घँसे आदमी मन इहाँ।।3

तोर अउ मोर मा धन रतन जोर मा।
डोर धर गल कँसे आदमी मन इहाँ।4

छोड़ के गाँव ला अउ मया छाँव ला।
हे शहर मा धँसे आदमी मन इहाँ।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/3, 9:27 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

दुःख अउ सुख मा जिनगी पहाही इहाँ।
कोई जाही ता कोई हा आही इहाँ।1

धन मया के उपर आज भारी हवै।
धन सकेलत सबे सिर मुड़ाही इहाँ।2

कोई हिटलर हवै कोई औरंगजेब।
फेर इतिहास हा दोहराही इहाँ।3

राज हे लाज ला बेच देहे तिंखर।
जौन लड़ही झगड़ही ते खाही इहाँ।4

जेन पर के भरोसा भरे पेट ला।
वो मनुष काय नामा जगाही इहाँ।5

काटही बेर गिनगिन मनुष मोठ मन।
हाड़ा कस मनखे मन नित कमाही इहाँ।6

घाम करथे जबर बरसा बरसे अबड़।
आ जही का भयंकर तबाही इहाँ।7

चोर के धन चुरा चोर हा लेजही।
राज ला बाँट खाही सिपाही इहाँ।8

खा पी सुरसा घलो तो कलेचुप हवै।
का मनुष धन रतन धर अघाही इहाँ।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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