Monday 3 August 2020

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे
ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।
जस सेवा चलत हे, रहिरहि हलत हे,
खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।
सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,
चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।
खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर
भोजली मनाये मिल,आशीष माँ देत हे।

भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,
जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।
रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,
बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।
फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,
बाँहि डार नाचत हे,मया के गियास मा।
दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,
सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।

अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,
भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।
दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,
धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।
मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,
गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।
राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,
बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।

राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,
नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।
भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,
सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।
राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,
हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।
मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,
कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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