Monday, 25 November 2024

संगे संग मया

संगे संग मया

अब कइसे रचही, मधूबन म रास रे ? मोर तीर हे बंसरी, अऊ तोर तीर हे साँस रे ।

कलेचुप खड़े हे, कदम के रूखवा । तंय पूर्वाइयाँ, अऊ मंय हर पात ||

कइसे ममहाही, मया के मोंगरा ? मंय हर पतझड़, अऊ तंय मधूमास रे ।।

चलत हे बरोड़ा, उड़ावत हे धूर्रा । तंय हर बिरौनी, मंय हर आँख रे ।।

मइलहा मन, मनभात नइहे मनखे के । मया के तरिया म, मन ल काँच रे ।।

फेंक के देख मया के गरी, छत्तीसगढ़ भर । अइसने अरझ जही, फेर छल ले झन फाँस रे ।।

न रो, न रोवा, खा तेंदू -चार - कोवा ।

टपका मुंहुँ ले मंदरस, अऊ मन भर हाँस रे ।।

थोरकिन ते खा, थोरकिन भूखाय ल खवा । कर सिंगार महतारी के, नंवाके माथ रे ।।

ओनहा- कोनहाल, करदे अंजोर । मया के माटी ले, उँच-नीच ल पाट रे ।।

का हे भरोसा, जिनगी के सिरतोन म ? मया - पिरीत ल, झंऊहा- झंऊहा बाँट रे ।।

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

सड़क सुरक्षा- गीत

 सड़क सुरक्षा- गीत


चलना है सड़क में, तो मानो ये बात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जल्दीबाजी करने वाले, चले हथेली पर रख जान।

उस इंसान का नही ठिकाना,किये हैं जो मदिरा पान।।

नसा नाश की जड़ है, इससे पाओ निजात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


काबू में रखकर चलो, गाड़ी की रप्तार।

सीटबेल्ट हेलमेट लगाओ,बनकर समझदार।

होश गँवाकर पछताओगे, मौका ए वारदात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


इंडिकेटर हॉर्न सही हो,सही हो आँख और कान

दाँये बायें आगे पीछे, रखो सभी पर ध्यान।

चलो सड़क में सावधान हो, खुद को दो सौगात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


गीत

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।

कारण मौत का न बन जाये,

होश में आओ रे---


दुर्घटना से, देर भली है।

जिसने माना बला उसकी टली है।

सड़क नही करतब का मैदां,

मान भी जाओ रे------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


नशे में जो गाड़ी चलाये।

खतरा उसके सिर मंडराये।

चलो सड़क में हो चौकन्ना,

सूझ बूझ दिखाओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


सब हँसते गाते घर जाये।

आफत न किसी पर आये।

सड़क नियम को खुद अपनायें,

औरों को बताओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

यम ले बड़े सड़क हे - गीत


जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।

गाड़ी घोड़ा धरके, माते हे इंसान।।


धूत नशा मा कतको, गाड़ी रथे चलात।

कतको ला हे जल्दी, कतको हे अँटियात।।

कतको हे नवसिखिया, ता कतको नादान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


हेलमेट बिन कतको,मोबाइल धर हाथ।

करतब कई दिखावै, पीटे पाछू माथ।।

मौत सड़क मा देखत,यम तक हे हलकान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


नियम भुला अँख मुंदा, गाड़ी जउन भगाय।

अपन संग मा वोहर, पर ला तक रोवाय।।

खँचका डिपरा गरुवा, लेवै छीन परान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


हाथ लगे इस्टेरिंग, ताहन कहाँ लगाम।

होथे बड़ दुर्घटना, लागे रहिथे जाम।।

यम ले बड़े सड़क हे, खोल आँख अउ कान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


धीर धरे सुधबुध मा, गाड़ी जउन चलाय।

नियम धियम ला जाने,सड़क ओखरे आय।

तन के मोल समझके, आने ला समझान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


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[11/26, 9:31 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: जान कीमती है, यह जानते हो।

सुरक्षा को क्यों नही मानते हो?



सुरक्षा नियम तोड़ने वाले।

जल्दी है जग छोड़ने वाले।।


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सड़क सुरक्षा- गीत


चलना है सड़क में, तो मानो ये बात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जल्दीबाजी करने वाले, चले हथेली पर रख जान।

उस इंसान का नही ठिकाना,किये हैं जो मदिरा पान।।

नसा नाश की जड़ है, इससे पाओ निजात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


काबू में रखकर चलो, गाड़ी की रप्तार।

सीटबेल्ट हेलमेट लगाओ,बनकर समझदार।

होश गँवाकर पछताओगे, मौका ए वारदात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


इंडिकेटर हॉर्न सही हो,सही हो आँख और कान

दाँये बायें आगे पीछे, रखो सभी पर ध्यान।

चलो सड़क में सावधान हो, खुद को दो सौगात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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गीत

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।

कारण मौत का न बन जाये,

होश में आओ रे---


दुर्घटना से, देर भली है।

जिसने माना बला उसकी टली है।

सड़क नही करतब का मैदां,

मान भी जाओ रे------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


नशे में जो गाड़ी चलाये।

खतरा उसके सिर मंडराये।

चलो सड़क में हो चौकन्ना,

सूझ बूझ दिखाओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


सब हँसते गाते घर जाये।

आफत न किसी पर आये।

सड़क नियम को खुद अपनायें,

औरों को बताओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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यम ले बड़े सड़क हे - गीत


जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।

गाड़ी घोड़ा धरके, माते हे इंसान।।


धूत नशा मा कतको, गाड़ी रथे चलात।

कतको ला हे जल्दी, कतको हे अँटियात।।

कतको हे नवसिखिया, ता कतको नादान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


हेलमेट बिन कतको,मोबाइल धर हाथ।

करतब कई दिखावै, पीटे पाछू माथ।।

मौत सड़क मा देखत,यम तक हे हलकान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


नियम भुला अँख मुंदा, गाड़ी जउन भगाय।

अपन संग मा वोहर, पर ला तक रोवाय।।

खँचका डिपरा गरुवा, लेवै छीन परान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


हाथ लगे इस्टेरिंग, ताहन कहाँ लगाम।

होथे बड़ दुर्घटना, लागे रहिथे जाम।।

यम ले बड़े सड़क हे, खोल आँख अउ कान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


धीर धरे सुधबुध मा, गाड़ी जउन चलाय।

नियम धियम ला जाने,सड़क ओखरे आय।

तन के मोल समझके, आने ला समझान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


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[11/26, 9:57 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: मत करो हड़बड़ी।

होगा नहीं गड़बड़ी।

[11/26, 3:54 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: सुरक्षा कविता


जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


हर काम मे ईमानदारी।

सुरक्षा अपनाओ सारी।

तभी सुगम होगीं राह।।

जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


आस विश्वास जरूरी है।

होशो हवास जरूरी है।।

पाने के लिये लक्ष्य थाह।

जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


हर काम मे अति।

पहुँचाती है क्षति।।

मानों सहीं सलाह।

जो बने फिरता है लापरवाह।

उसी का होता है जीवन तबाह।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

[11/26, 6:20 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी कविता-सुरक्षा


सुरक्षित जीवन जिये बर, सुरक्षा बहुत जरूरी हे।

हँसी खुशी के इही ए कुंजी, इही जिनगी के धुरी हे।।


कइसे करना हे कोन बूता, तेला पहली जानो।

काम बिगड़थे हड़बड़ी मा, सोचो समझो मानो।।

सुरक्षा तिहाँ समाधान हे, जंजाल तिहाँ दूरी हे।।

सुरक्षित जीवन जिये बर, सुरक्षा बहुत जरूरी हे।।

हँसी खुशी के इही ए कुंजी, इही जिनगी के धुरी हे।।


लापरवाही काम मा होथे, तब तब अंतस रोय।

सतर्क होके काम करे मा, भूल चूक नइ होय।।

जिहां सुरक्षा नइ हे तिहाँ, मातम अउ मजबूरी हे।

सुरक्षित जीवन जिये बर, सुरक्षा बहुत जरूरी हे।

हँसी खुशी के इही ए कुंजी, इही जिनगी के धुरी हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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*निजात*- नशा ले(गीत)


*नशा ले निजात पाना हे।

पुलिस प्रशासन के कहना ला,

मानना अउ मनवाना हे---------


चरस अफिम सिगरेट ला छोड़ो।

सुख शांति ले नाता जोड़ों।।

ये सब के चक्कर मा पड़,

काल के मुँह मा समाना हे---------


दारू होवय या फेर गांजा।

सबे हे जिनगी बर फांदा।

खुद ला समझना हावै सँग मा,

आने ला समझाना हे---------------


तन हा सिराथे धन हा सिराथे।

झगड़ा झंझट तक हो जाथे।।

सादा जिनगी गाना हे ता,

मंद मउहा हा ताना हे--------------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday, 23 November 2024

मोर महिनत🌾🌾 ----------------------

 🌾🌾मोर महिनत🌾🌾

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तउलागे तराजू बॉट म मोर महिनत।

बेंचागे मंडी हाट म मोर महिनत।।


अबड़ दिन सिधोयेव,जांगर टोर-टोर के,

सकलागे दुई  दिन रात म मोर महिनत।


चर्ररस-चर्ररस चलिस,हँसिया धान मा,

गँजागे करपा बन, पाँत म मोर महिनत।


लुवागे, सकलागे, मिंजाके भरागे बोरा म,

गड़त हे ब्यपारी के दाँत म मोर महिनत।।


तउल दिस लकर धकर, दे दिस दाम औने-पौने ,

चार ठन कागज बन,माड़े हे ऑट म मोर महिनत।


सपना संजोये रेहेंव, हँरियर धान ला नाचत देख,

दाना के दाम म दबगे,एके साँस म मोर महिनत।


उधार-बाड़ी,लागा-बोड़ी छुटत-छुटत,

कुछु नइ  बांचिस, हाथ म मोर महिनत।


               जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                 बालको(कोरबा)

                  9981441795

तइहा के सुरता-सीला बिनई

 तइहा के सुरता-सीला बिनई


               कभू पाँव म चप्पल, त कभू बिन चप्पल के झिल्ली नही ते झोला धरे स्कूल जाय के पहली अउ स्कूल ले आय के बाद, संगी संगवारी मन संग मतंग होके, ये खेत ले वो खेत म भाग भाग के सीला बिनन। मेड़ पार ल कूदत फाँदत, बिना काँटा खूंटी ले डरे, धान लुवई भर जम्मो धनहा खेत म भारा उठे के बाद, छूटे छाटे धान के बाली ल टप टप बिनत झोला ल भरन। सीला केहेन त धान के लुवत, भारा बाँधत अउ डोहारत बेरा म गिरे या छूटे धान के कंसी आय। सीला बीने बर  लइकापन म,एक जबरदस्त जोश अउ उमंग रहय, बिनत बेरा भूख प्यास, कम जादा, तोर मोर ये सब नही, बल्कि एके बूता रहय, गिरे छूटे धान ल सँकेलना।  सीला उही खेत म बिनन, जेमा के धान  उठ जाय रहय,कतको खेत के धान लुवाये घलो नइ रहय,न डोहराय। तभो मन म भुलाके घलो लालच नइ आय। वो खेत म जावत घलो नइ रेहेन। फेर कोन जन आजकल के लइका मन का करतिस ते? 

                      हप्ता दस दिन धान लुवई भर सीला बिनई चले,  ज्यादातर बड़े भाई बहिनी मन धान ल डोहारे के बूता करे अउ छोटे मन गिरे धान ल बीने के। संगी संगवारी मन सँग सीला बिनत बेरा काँटा गड़े के दरद तो नइ जनावत रिहिस, फेर घर आय के बाद बबा के चिमटा पिन म काँटा निकालत बेरा के पीरा बड़  बियापे। हाँ, फेर सीला बिनई नइ छूटे, चाहे कतको काँटा खूंटी गड़े। एक दू का?  कोनो कोनो संगवारी मन के गोड़ म, आठ दस काँटा घलो गड़ जावय, तभो कोनो फरक नइ पड़े। रोज रोज सीला बीने म, छोट मंझोलन चुंगड़ी भर  घलो धान सँकला जाये। जेला खुदे कुचर के दाना ल फुन-फान के अलगावन। जेन उत्साह अउ उमंग म सीला बिनन, उही उत्साह  ले वोला घर म लाके सिधोवन, अउ सब चीज होय के बाद नापे म जे आनंद मिले, ओखर बरनन नइ कर सकन।  कभू कभू ददा दाई मन पइसा देके सीला के धान ल रख लेवय त कभू दुकान म बेच देवन, त कभू हप्ता हप्ता लगइया हाट बाजार मा, धान के बदली मुर्रा अउ लाडू लेवन। का दिन रिहिस, कतका पइसा -धान सँलाइस ते मायने नइ रखत रिहिस, पर बढ़िया ये लगे कि सीला बिने के पइसा या धान मिले अउ मन भर उछाह। सीला के पइसा ल मंडई हाट बर घलो गठियाके रखन। 

                सीला बिनइया संगवारी मन म बनिहार घर के लइका संग गौटिया घर के लइका घलो रहय, पहलीच केहेंव पइसा कौड़ी धान पान मायने नइ रखत रिहिस, बल्कि धान फोकटे झन पड़े रहे अउ जुन्ना समय ले चलत आवत हे, कहिके सब मिलजुल सीला बिनन। ऋषि कणाद के सीख के निर्वहण करन। फेर आज ये बूता जोर शोर म नइ दिखे, न पहली कस सीला बीने के माहौल हे, न कखरो सँऊख। आजकल खेत म ही मिंजई हो जावत हे। थ्रेसर हार्वेस्टर के लुवई मिंजई म सिर्फ कंसी(बाली) नही, दाना  घलो गिर जाथे, उहू बहुत ज्यादा, ओतना तो चार पाँच खेत ल किंजरे म मिले। ये सब देख के दुख होथे, फेर का करबे नवा जमाना के ये बदले रूप रंग ल बोकबाय सब देखते हन। काम बूता नवा नवा तकनीक ले भले तुरते ताही हो जावत हे, फेर मनखे, बचे बेरा के बने उपयोग नइ कर पावत हे, येमा न लइका लगे न सियान। हमर संस्कृति अउ संस्कार मा अन्न धन ला जान बूझ के कोनो नइ फेके, बल्कि ओला अन्न देव मानत सँकेले जाथे, इही भावना ले ओतप्रोत रहय सीला बिनई। जे आज कमसल होवत हे।

ना थारी मा भात छूटे, ना खेत मा अन्न।

फेर आज के गत देख, मन हो जाथे सन्न।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


फ़ोटो-साभार फेसबुक( श्री सौरभ चन्द्राकर)

बाल दिवस विशेष---- *छत्तीसगढ़ी गीत अउ लोकगीत मा बाल साहित्य/बाल गीत*

 बाल दिवस विशेष---- *छत्तीसगढ़ी गीत अउ लोकगीत मा बाल साहित्य/बाल गीत*


                 हमर छत्तीसगढ़ के गीत संगीत गजब पोठ हे। मधुरस कस मीठ छत्तीसगढ़ी भाँखा जब  गीत संगीत मा गुथाथे तब, सुनइया सुनते रही जथे। लोक गीत माने जनमानस के अंतर्मन मा रचे बसे गीत। कुछ गीत जुन्ना समय ले परम्परागत चलत आवत रथे ता कुछ गीत के अइसे कवि गायक होथें जउन जनमानस के मन मा अपन छाप छोड़ देथें। हमर लोक गीत घर द्वार, खेती खार, डोंगरी पहाड़, नदी नाला, तीज तिहार, चंदा सुरुज, नता गोता, छोटे बड़े, दया मया, सुख दुख जमे ला समेटे हे,अइसन मा बाल मन के गीत छूट जाए, ये होई नइ सके। लोक गीत मा बाल साहित्य के बात होइस ता, मोला वो दौर के सुरता आवत हे,जब घर घर सुबे शाम रेडियो बजे, जिहाँ सरलग रिकिम रिकिम के गीत सुने बर मिले, वोमा के बाल वाटिका, चौपाल, घर आँगन कस अउ कतकोन कार्यक्रम मा बाल गीत गजब बजय। रेडियो आजो हे,गीत संगीत आजो बजत हे, फेर पहली कस कान मा सहज नइ सुनाय, ना पहली कस परछी मा अर्वाय,बजत दिथे। नवा जमाना के चका चौंध हम सब ला दुरिहा दिस। अइसन मा रेडियो मा ही सुने कुछ बाल गीत मन ला ओरियाये के प्रयास करत हँव।  रेडियो मा बद्री विशाल परमानंद, मेहत्तर राम साहू,दानेश्वर शर्मा, केयूरभूषन, हरि ठाकुर,प्यारेलाल गुप्त, दारिकाप्रसाद तिवारी विप्र, उधोराम झकमार, कोदूराम दलित, सुशील यदु, लक्ष्मण मस्तूरिहा, मुकुंद कौशल, पी सी लाल यादव, रामेश्वर शर्मा, दीप दुर्गवी कस कतको अउ गीतकार मन के किसम किसम के मनभावन गीत बजे।  जेला शेख हुसैन,परसराम यदु, मेहत्तर राम साहू, पंचराम मिर्झा, केदार यादव, नवलदास मानिकपुरी, फिदा बाई मरकाम,किस्मत बाई, बैतल राम साहू, गंगा राम, दुखिया बाई, लता खपर्डे, धुरवा राम मरकाम, लक्ष्मण मस्तुरिया, साधना यादव, कविता वासनिक, ममता चन्द्राकर, कुलेश्वर ताम्रकर कस अउ कतको सुर साज के धनी गायक मन स्वर देवयँ। इही सब हस्ती मन के लिखे अउ स्वर देय छत्तीसगढ़ी लोक गीत मन मा बाल गीत छाँट के परोसे के प्रयास करत हँव। कोन गीत ला कोन गाये हे अउ कोन सिरजाये हे, ठीक ठीक बता पाना मुश्किल हे,काबर कि वो सब गीत मन ला सुने बड़ दिन होगे, अउ कुछ परम्परागत रूप ले बड़ जुन्ना समय ले चलत आवत हें, तभो सुरता के गगरी मा भराय कुछ गीत के मुखड़ा पेस हे---


              खेल के बात होथे, ता सबें लइका मन एक जघा जुरिया जथे। एक मौका मा बासी पेज नइ मिलही ता चल जही, फेर खेल बिगन लइका मन नइ रही सके। तभे तो ये गीत मा उमंग उछाह मा लइका मन आपस मा मिलके रेलगाड़ी खेल खेलबों कहिके,एक दूसर ला बुलावत काहत हे----

*रेलगाड़ी रेलगाडी रेलगाड़ी रेलगाड़ी रेल*

*चलो चली मिलके खेलबों,रेलगाड़ी खेल*

*कोनो बनबों इंजन, अउ कोनो डिब्बा*


              अइसनेच एक गीत अउ हे जेला दानेश्वर शर्मा जी लिखे हे अउ कुलेश्वर ताम्रकर जी मन आवाज देय हे-

*रेलगाड़ी झुकझुक रेलगाड़ी*

*रायपुर ले वोहा छूटे रे संगी*


                 लइका मन के खेल खेलवारी मा, झूलना झूलई के अलगे मजा हे,बिगन झूला के कहाँ  लइका मन  रथे, तभे तो ये गीत नोनी मन ला झूलना झुलावत हे----

*झूलना के झूल नोनी,कदम्ब के फूल वो।*

*झूलना झूलत नोनी हाँसे खुलखुल वो।*


                  गाँव के  तरिया, नरवा, परिया, दैहान अउ गली खोर संग लइका मन अमरइया मा घलो खेलत दिखथें। तभे तो अपन संगी साथी ला सँकेलत घरघुन्दिया खेले बर कविता वासनिक जी मन अपन कोयली कस आवाज मा काहत हे----

*चलो बहिनी जाबों अमरइया मा खेले बर घरघुंदिया*

*घर के खेलई मा दाई खिसियाथे, खोर के खेलई मा ददा*

(ये गीत ला परसराम यदु जी मन घलो अपन अलगे अंदाज मा गाये हे)


              बेंदरा, भलवा, हाथी, घोड़ा, मुसवा,कुकूर, बिलई लइका मन ला बड़ सुहाथे। तभे तो गाँव मा खेल मदारी वाले आये ता सब ले पहली भागत लइका मन घर ले निकले, अउ मँझोत मा डेरा डार देवयँ। कुलेश्वर ताम्रकर जी के ये गीत सियान मन संग लइका मन के बीच बड़ सुने जाथे---

*नाच नचनी वो झुमझुमके झमाझम नाच नचनी*

*बरसे तोर पांव तरी रुपिया खनाखन वो नचनी।*

(लक्ष्मण मस्तुरिया जी के लिखे ये मनभावन गीत उंखर स्वयं के स्वर मा घलो बड़ मनभावन हे।)


               मदारी अउ भलवा बर एक लोकगीत, बैतल राम साहू के गाये बड़ चलथे। जेला लइका मन खूब पसन्द करथें-----

*मदारी वाले आय हे।*

*भलवा ला धरके।*

*खेल देखावय अउ भलवा नचावय*

*जुरियाये गाँव भरके।*


            बिलई अउ मुसवा ऊपर घलो गीत सुने बर मिलथे। जेन गीत के बात करत हँव,ये गीत हबीब तनवीर जी के नाटक चरणदास चोर मा घलो बजे---

*बलई ताके मुसवा, भाँड़ी ले सपट के।*


             लइका मन बबा, डोकरी दाई, ममा दाऊ, ममा दाई के नजदीक जादा रथे,अउ अपन बात  झट ले उन ला बताथे, तभे तो एक लइका ये गीत मा अपन ममादाई ला काहत हे--

*चीला ला ले गे बिलइया वो ममा दाई*

*चीला ला ले गे बिलइया*


               पहिली सब कुकरा के बांग सुनत उठयँ। कुकरा के बोली सुन लइका मन नकल करत बड़ खुश होथे। यर गीत मा लइका मन जुरियाके कुकरा के आवाज निकालत,पढ़े लिखे जाए बर काहत गावत हें,---

*बड़े फजर ले कुकरा बोलय*

*कुकरुस कु भइ कुकरुस कु*

*चल वो सीता चल वो गीता*

*बड़े बिहनिया स्कूल जाबों*


                   सबें चीज मा अघवा रहवइया लइका मन,देश भक्ति मा कइसे पीछू रही। ये गीत मा देशभक्ति के रंग मा रँगे, लइका मन अपन ददा ला काहत हे---

*ददा ग महूँ बनहूँ सिपाही*

*सीमा मा जाहूं, बंदूक चलाहूँ*

*तभे मोर छाती जुड़ाही।*


                मेला मड़ई, हाट बाजार गांव गौतरी जाये बर लइका मन एक टांग मा खड़े रथे। अउ उहाँ मोटर गाड़ी, कुकूर बिलई, फुग्गा लेय के जिद करत घलो दिखथें। बैलतराम साहू जी के गाये ये गीत हर फुग्गा बेचइया के जुबान मा रथे-----

*दाई वो दीदी वो लइका बर फुग्गा ले ले*


              हाथ मा राहेर काड़ी धरे बरसात के मौसम मा फांफा फुरफुंदी के पाछू भागत लइका मन मारे खुशी मा देश राज के बढ़वार के कामना करत इही गीत गाथें---

*घानी मुँदी घोर दे, पानी दमोर दे*

*हमर भारत देश ला भैया, दूध दही मा बोर दे*

(ये गीत दाऊ रामचन्द्र देशमुख जी के द्वारा सिरजाये चंदैनी गोंदा के प्रमुख गीत मा एक रिहिस।)


               का सुबे अउ का शाम,,, बरसा घरी घानी मुंदी खेलत लइका मन यहू गीत ला बड़ गुनगुनाथे---

*अँधियारी अंजोरी*

*घानी मुंदी खेबलों वो*


              गर्मी घरी लइका मन सुते सुते जब जब आगास ला देखथे, चंदा ममा ला अपन तीर बुलाथे। अउ चंदा, ममा कस लइका मन के सब ले पसंददीदा होथे। दाई ददा मन चंदा ला लइका मन ला ममा कहिके रटवा देथे, तभे तो  थोरिक बड़े होके नोनी मन चंदा ममा ला काहत हे---

*ए ममा चंदा ।।2*

*देश बर दे हम ला हंडा*


                पुतरी, घुँघरू, तुतरु लइका मन ला बड़ पसंद आथे। रोवत या फेर रिसाय नोनी बाबू मन ला खेलावत ये गीत सबें गाथें---

*करू करेला वो मीठ कुंदरू*

*नाचत हे नोनी बजत हे घुँघरू*

*पुतरी ला देख के नोनी कइसन हँसत हे*


                तिहार बार ला घलो लइका मन के किलकारी अउ उंखर उछाह उमंग विशेष बनाथे। हरेली मा गेड़ी चढ़ई होय, या पोरा मा नन्दिया बइला दौड़ई। राखी, दही लूट, गणेश पक्ष, दीवाली,दशहरा, होली, छेरछेरा सबें तिहार बार मा लइका मन नाचत गावत अपन छाप छोड़थे। अउ उंखर गीत घलो बरोबर सुनावत रहिथे---


1,*छेरिकछेरा छेर मरकिन छेरछेरा*

2,*दाई मोर बर पिचका लेदे वो*

3, *हाथी घोड़ा पालकी*

4, *रिगबिग रिगबिग बरत दियना*

5, *आगे तीजा पोरा के तिहार ,ममा घर जाहूं*

6, *अटकन बटकन दही चटाका*

7,*फुगड़ी रे फुन्ना फुन


               बाबू मन गिल्ली, भौरा बाँटी, ता नोनी मन फुगड़ी खोखो खेलत मगन रथें। चाहे कोनो खेल होय मुख ले बरोबर मया के गीत झरत रथे। अइसने एक  गीत बिन तो फुगड़ी होबे नइ करे, ये गीत हे---

*गोबर दे  बछरू गोबर दे*

*चारो खूँट ला लिपन दे*


          लइका मन के मन के खुशी ला लक्ष्मण मस्तूरिहा जी एक गीत  के रूप मासिरजाये रिहिस, जे चंदैनी गोंदा के प्रमुख गीत के रूप मासबके मन मोहे।

*चंदा बनके जीबों हम*


                एखर आलावा अउ कतकोन जुन्ना लोक गीत हे, जे बाल साहित्य, बाल गीत के रूप मा सुनावत रथे। नवा नवा गीतकार,गायक मन घलो बाल मन के गीत लिखत हें, अउ जनमानस बीच लावत हें। बाल साहित्य छत्तीसगढ़ी मा अभी खूब सिरजाये जात हे। बलदाऊ राम साहू, मुरारीलाल साव,कन्हैया साहू अमित, मनीराम मितान, दिलीप वर्मा, बोधनराम निषादराज,मिनेश साहू, राम नाथ साहू,अजय अमृतांशु, रामकुमार चन्द्रवंसी, मनोज वर्मा, मिलन मिलरिया, बलराम चन्द्राकर, सुशील भोले,डी पी लहरे, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर, चोवाराम वर्मा बादल, जीतेन्द्र वर्मा कस कतको नवा अउ जुन्ना कवि मन अभो बाल गीत, कविता सिरजावत हे। अरुण निगम जी द्वारा बनाये ब्लाग ""बालगीत खजाना" मा 600 ले घलो जादा एकजई बाल गीत हे। खोजे मा बाल गीत, बाल साहित्य छत्तीसगढ़ी मा बहुत अकन मिल जही। मैं विषयानुसार सिरिफ छत्तीसगढ़ी गीत, लोक गीत के रूप मा रचे बसे बाल गीत ला ,जउन सुरता आइस उही ला रखे के प्रयास करे हँव। नवा गीत मन तो आज यू ट्यूब,फेसबुक आदि मा हे, पर पुराना कतको गीत संगीत के अभाव हे। आज जरूरत हे,उन सब ला नवा माध्यम मा संघेरे के। रेडियो या फेर रिकार्डिंग स्थल मा आजो ये सब गीत मन होही, जेला नवा माध्यम मा बगराना चाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐


गिल्ली भौरा बाँटी, खेलत नइ दिखे बचपन।

 हाँसत गावत मया, मेलत नइ दिखे बचपन।

बस्ता म लदकागे, मोबाइल मैगी म भुलागे,

आमा अमली बोइर,झेलत नइ दिखे बचपन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया


दिल से जउन बच्चा हे, उन सबला बाल दिवस के सादर बधाई

आ जाबे नदिया तीर म

 गीत--आ जाबे नदिया तीर म


आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ।

कुनकुन-कुनकुन जाड़ जनावै, मँय कोयली कस बोलत हौं या ।


महुर लगे तोर पांव लाली, धूर्रा म सनाय मोर पांव पिंवरा हे ।

चिंव-चिंव करे चिरई-चिरगुन, नाचत झुमरत मोर जिवरा हे ।।

फूल गोंदा कचनार केंवरा, चारों खुंट ममहाये रे ।

तोर मया बर रोज बिहनिया, तन-मन मोर पुन्नी नहाये रे । 

मया के दीया बरे मजधारे, मारे लहरा मँय डोलत हौं या ।

आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ------------------


कातिक के जुड़ जाड़ म घलो, अगोरत होगेंव तात रे ।

आमा-अमली ताल तलैया, देखत हे तोर बॉट रे ।

परसा पारी जोहत हावै, फागुन ल बूता सुझावत हे।

होरी जरे कस तन ह भभके, देखे बिन नइ बुझावत हे। 

आमा मँउर कस सपना ल, झोत्था-झोत्था जोरत हौं या।

आ जाबे नंदिया तीर म, अगोरत हौं या -----------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई

नोट के माया..........

 ..........नोट के माया.............

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पहिली चक्की-चक्की गुड़ राहय,

बोरी-बोरी सक्कर।

टीपा-टीपा तेल रखे,

कोन लगाय रासन बर चक्कर।


काठा-काठा नून राहय,

बोरा-बोरा आलू,पियाज।

आनी-बानी  के खोइला राहय,

मजा म बीते काली आज।


रंग-रंग के साग,निकले कोलाबारी म।

कभू कुछु कमी नइ होय,घर के हांड़ी म।

भराय राहय पठंऊवा म,

लकड़ी,छेना,पेरा-भूंसा।

गंहु -चना , खरी- बरी,

पुरे सालभर कांदा-कुसा।


खई-खजानी रोटी - पीठा,

रंग-रंग के रोज चूरे।

धनिया,मेथी,मिरचा,मसाला,

बनेच दिन ले पूरे।


बिन चिंता फिकर के गुजारा होय।

खाय कमाय अउ घर बन ल सिधोय।

फेर अब तो ले ले के खवई चलत हे।

चांउर-दार,तेल-नून ल,सकलई खलत हे।


धान,गंहु,चना,सरसो,

कोठी म अब कहाँ धरात हे?

पइसा के चक्कर म,

कोठारे ले बेंचात हे।


कोठी,पठंउवा,मइरका के जघा,

घर-घर तिजोरी बनगे हे।

चांउर,दार,तेल,नून नही,

रुपिया-पइसा मनखे के जोड़ी बनगे हे।


मनखे धरेल धरिस धन,

बढ़ेल लगिस मंहगई।

फेर आज बड़े नोट बेन होगे,

कतको के होगे कल्लई।


खाये के चीज हरे,

त खा अब।

पइसा म दार-चांउर,

बना अब।


जेन मनखे रिहिस पोठ।

जोड़े रिहिस गजब नोट।

तेला आज लगगे,

भारी भरकम चोट।


सिरतोन म छलथे माया।

छोड़े म बड़ रोथे काया।

नोट घलो मोह माया ए,

आज छोड़ दिस देख।

जोड़ना हे त मया जोड़,

कतको ल बोर दिस देख।


नोट बर बेंक हे,

उंहचे धर।

फेर पहिली कस,

मइरका,कोठी ल भर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


                     जान ले बढ़के का हे? तभो मनखे जान ल जोखिम म लेके जियत हे। रोज के हाय हटर, अउ चारो मुड़ा  मुँह उलाय खड़े काल कतको ल रोज लील देवत हे। तभो मनखे कहाँ चेतत हे। आज मनखे मनके मौत घलो कुकुर बिलई कस सहज होगे हे, तभे तो मनखे मन आज  माड़े अर्थी ल घलो देख के रेंग देवत हे। अर्थी कर सिरिफ घर वाले, सगा सम्बन्धी अउ एकात झन भावुक मनखे भर दिखथे। नही ते एक जमाना रहय, कहूँ एक भी मौत होय त देखो देखो हो जाय, मनखे दुख म डूब जाय। फेर आज आन बर काखर तीर टाइम हे। धन दौलत संग मरनी हरनी सबे चीज म तोर मोर होगे हे। मरे के हजार अलहन हे, फेर जिये के दू चार आसरा, तभो मनखे मन दया, मया, सत, सुमत जइसन जरूरी चीज ल बरो के  मुर्दा बरोबर जीयत हे। बड़खा बड़खा सड़क ल देख के यमदूत मन घलो संसो म हे, कि ये मनखे मन बिन बेरा मरे के साधन बना डरे हे। हाय रे अँखमुंदा भागत गाड़ी, हाय रे नेवरिया चलइया, हाय रे जल्दीबाजी अउ हाय रे दरुहा मँदहा तुम्हर मारे बने सम्भल के चलत मनखे मन घलो निपट जावत हे। 


          चार दिनिया जिनगी पाके घलो मनखे मन अति करत हे, कोन जन अजर अमर रितिस त का करतिस ते। रोज अपराध बाढ़त हे। इही ल रोके बर आज रोज नवा नवा कानून कायदा बनत हे, तभो अपराध रुके के नांव नइ लेवत हे। कानून म कई प्रकार के सजा हे, फेर मनखे मन डरथे कहाँ। हाँ,, डरत उही हे जेन बपुरा मन गरीब अउ अनपढ़ हे, पुलिस ल देख घलो उँखर पोटा काँप जथे। फेर पढ़े लिखे अउ पइसा वाले म डर नाँव के चीज नइहे, अउ रहना भी नइ चाही, पर अपराध करके कानून ले मुँहजोरी बने थोरे हे। पर जमाना अइसने हे, पद पइसा के आघू कानून कायदा घलो लाचार हे। धरम करम के डर ल तो छोड़िच दे।


                जंगल तीर के एक ठन गाँव म विकास के गाड़ी पहुँच गे, लोगन मन पढ़ लिख के हुसियार होगे, स्कूल कालेज कोर्ट कछेरी सब बन गे, अब जंगल अउ गाँव कहना सार्थक घलो नइ रही गे। कागत म कानून कायदा लिखाय हे, तभो ले जीयत मनखे मन, गलती ऊपर गलती करत हे, फेर एक झन *मरे मनखे* के फांदा होगे, काबर कि उही गाँव के एक झन पढ़े लिखे आदमी ह, कोर्ट म केस करदिस, कि फलाना ह,अपन जमाना म कानून कायदा के गजब धज्जी उड़ाय हे, बन बिरवा ला अँखमुंदा काटे हे, जंगल के कतको जीव जिनावर मन ल घलो मारे हे।  कानून म ये सब करना अपराध हे तेखर सेती वोला उम्र कैद के सजा होगे। फेर वोहा कानून ले लड़े बर जिंदा नइ रिहिस, दू चार पेसी देखे के बाद जज वकील मन सजा सुना दिन। आदेश जारी होइस वोला पकड़ के जेल म डारे जाय, खोजबीन म पता चलिस कि वो तो परलोक वासी होगे हे, अब गाज गिरिस ओखर परिवार वाले मन ऊपर। बड़े बेटा आन जात म बिहाव कर डरे रहय त, वो समाज से बहिष्कृत रिहिस, ददा ले कोनो नता नही। पुलिस वोला कुछु करिस घलो नही , फेर  छोटे बेटा घर ओखर ददा के फोटू  टँगाय रहय, उही ल पुलिस मन धरिस अउ कोर्ट लेग गे। उहू अकचका गे रहय, का होवत हे कहिके, आखिर म सब चीज जाने के बाद कहिस- कि, ददा के जमाना म शिकार के चलन रिहिस, जंगल म रहय अउ पेड़ पात के सहारा जिये, अब वो जऊन करिस जीयत म सजा पातिस मरे म काबर? अउ येमा मोर का गलती हे? जवाब आइस कि तोर गलती ये हे कि तैं ओखर टूरा अस। कार्यवाही आघू बढ़िस, छोटे बेटा अपन पक्ष रखे बर वकील करिस, लाखो रुपिया खर्चा करिस, पइसा भरात गिस तारिक बढ़त गिस एक दिन ओखरो देहांत होगे। अब बारी आइस ओखर लइका मन के। ओखरो दू लइका रहय, एक झन कही दिस, मैं ददा बबा नइ माँनव, त दूसर जे ददा बबा के मया म बँधाय रहय ते केस लड़े बर तैयार होइस। आखिर म कम पइसा खर्चा अउ कमती धियान देय के कारण वो केस हारगे। अब उमर कैद के सजा अर्थ दंड म बदल गे, वो मरे आदमी ल 10,000 के जुर्माना होइस, अउ फाइल ल बन्द करे बर ओतका पइसा के माँग करिस। ओखर नाती  इती उती करके पइसा पटाइस, तब जाके वो फाइल बंद होइस। कहूँ नइ पइसा फेकतिस त बपुरा ल घलो हथकड़ी लग सकत रिहिस, कानून ए भई, अभियुक्त तो चाहिच। आज आदमी के जिनगी जतका दिन नइ चले, ओखर ले जादा दिन तो केस चलथे, तभे तो कोनो निर्दोष सजा नइ पाय, सत्य के जीत होथे, अउ सत्य बड़का, सजोर,पद पइसा वाले तीर रथे। देख आज कोनो राजा महाराजा मन के पोथी ल झन खोले, नही ते जे अपन आप ल,फलाना वीर के वंसज काहत हे,तहू कन्नी काट लिही, काबर कि वो जमाना म लड़ई झगड़ा, इकार शिकार चलते रिहिस।


              अउ कखरो फाइल खुले झन, नही ते आज के जमाना म वो मरे मनखे के कोई नइ मिलही, त ओखर आत्मा ल केस लड़े बर पड़ जाही। मरे आदमी के केस म कई साहेब सिपइहा पइसा पीट मोटा गे। जउन बबा ददा के मया म बँधाय रिहिस, तउन फोकटे फोकट पेरा गे। तभे तो कानून के डर म आज मनखे मन कोनो घटना ल, देख सृन के घलो आँखी कान ल मूंद देवत हे। इहाँ जीयत मनखे मन अत्याचार के ऊपर अत्याचार करत हे, अउ जे कुछ बोल नइ सके(मरे आदमी कस), जे कोट कछेरी ले डरथे, तेला सोज्झे फोकटे फोकट सजा मिल जावत हे। चाल बाज, पद पइसा, अउ पहुँच के जमाना हे। गलत ह सही अउ सही ह गलत, ये कोर्ट के मैदान म साबित हो जावत हे। "*नियाव के उप्पर वाले देवता शुन्न हे,त नीचे वाले देवता मन टुन्न*" पद,पइसा, मंद मउहा के भारी नशा हे। अतिक अकन कानून कायदा अउ दंड विधान होय के बाद घलो अपराध के नइ थमना, अउ सिधवा मनखे ल सजा हो जाना कानून के मुँह म तमाचा पड़े जइसे हे। कोनो सरकारी पद पाये बर अदालती कार्यवाही नइ होना चाही, फेर सरकार चलाये बर जे नेता के पद होथे, तेमा सब चलथे, चोर चंडाल,गुंडा बदमाश मन अघवा नेता कहलाथे, वाह रे कानून। कतको बड़े करम कांड होय पइसा के दम म सही हो जावत हे, बड़े बड़े अत्याचारी मन साबुत बरी हो जावत हे। का कानून के आँखी म पट्टी एखरे सेती बंधाय हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

खेती अपन सेती.......

 ......खेती अपन सेती.......

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बांचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा ईरसा के आगी,

कुंदरा  किसन्हा  के  लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

रेंगइया गरीबहा बपुरा रेता  झन जाय |


मूड़  मुड़ागे, ओढ़ना -चेंदरा चिरागे,

फेर सिर पागा गल फेटा झन जाय|


बधेव बधना बिधाता तीर रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया अऊ बिजरात हे हमला,

अवइया पिड़ही ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

अब इती-उती कहीं फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के हमला किसानी के पेसा झन जाय|


दंऊड़े हन खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कंहू बंभरी  कॉटा  तंहू ल ठेसा झन जाय |


जा अब सहर नगर म बुता कर,

मोर कस भूख मरे बर खेत कोनो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)

कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आलू राजा साग के, आज रूप देखाय।

किम्मत भारी हे बढ़े, हाड़ी ले दुरिहाय।।

हाड़ी ले दुरिहाय, हाथ नइ आवत हावै।

बिन आलू के संग, साग भाजी नइ भावै।

हे कालाबाजार, काय कर सकही कालू।

एक बहावै नीर, एक हाँसे धर आलू।।


होवत हावय सब जघा, आलू के बड़ बात।

का कहिबे छोटे बड़े, सबला हे रोवात।

सबला हे रोवात, सहारा जे सब दिन के।

आये आलू आज, सैकड़ा मा तक गिन के।

आलू के बिन साग, कई ठन रोवत हावय।

महँगा जम्मों चीज, दिनों दिन होवत हावय।


जादा के अउ चाह मा, बुरा करव ना काम।

होय बुरा के एक दिन, गजब बुरा अंजाम।

गजब बुरा अंजाम, भोगथे बुरा करइया।

का वैपारी सेठ, सबे मनखे अव भइया।

करव बने नित काम, राख के नेक इरादा।

बित्ता भर के पेट, काय कमती अउ जादा।


दाना पानी छीन के, झन लेवव जी हाय।

जीये खाये के जिनिस, सहज सदा मिल जाय।

सहज सदा मिल जाय, अन्न पानी सब झन ला।

मनखे झन कहिलाव, बरो के मनखेपन ला।

फैलाके अफवाह, जेन करथे मनमानी।

हजम कभू नइ होय, उसन ला दाना पानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कइसन कइसन मनखे हे

 कइसन कइसन मनखे हे

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कोनो काटे - कोचके, ककोने   कका।

कोन जन ए मनखे मन,कोन ए कका।


का उंहला भारत माता ले,

पिंयार नइ ह?

लगथे वो दाई भारती के उद्धार बर ,

तियार नइ हे।

का भुखमरी ,गरीबी ल,

बाँधेच रिबोन घेंच म।

कोन जन कोन ए,

ए मनखे के भेस म।

बदलेल लगही चलत,

गलत परिपाटी ल।

सिधोएल लगही मिल,

बनखरहा माटी ल।

बढ़ेल लगही,

नवा-नवा सोच लेके।

फेर कतको ठोंनकत हे,

चोक्खी चोंच लेके।

कब पहिचानही,ए माटी सोन ए कका।

कोनो काटे - कोचके, ककोने   कका।

कोन जन ए मनखे मन,कोन ए कका।


कोनो करे काम बने,

टी गोड़ ल तिरईय्या हजार हे।

मनखे मनखे ल इंहा तोर मोर के,

धरे अजार हे।

झगरा-लड़ई झंझट ल,

चगलेल लगही।

सोंच  ल अपन,

बदलेल लगही।

दुनिया भर में भारत के,

नांव बगरही।

जब हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,

एक दूसर के हाथ ल धरही।

तंय काम कर नेक।

सब साथ हे देख।

कतको के बोलइ-बखनई,तो टोन ए कका।

कोनो काटे - कोचके, ककोने   कका।

कोन जन ए मनखे मन,कोन ए कका।

  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

   बालको(कोरबा)

     9981441795

Friday, 8 November 2024

धान पर कविता

 धान पर कविता


*किसम किसम के धान(सार छंद)*


धान कटोरा हा धन धरके, धन धन अब हो जाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।

देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।

लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।

सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।

मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।

मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।

चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।

बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।

बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।

पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।

आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।

समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।

कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।

साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।

स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।

गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।

बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।

कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।

कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।

कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली

रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।

सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।

जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।

जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।

सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।

गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।

रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।

तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।

गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।

दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।

हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।

लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।

कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची ललचाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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पिंयर-पिंयर करपा(गीत)

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आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर हँसिया के बेंठ।

पिंयर -पिंयर   पैरा     डोरी।

पिंयर- पिंयर  लुगरा   पहिरे।

धान       लुवे            गोरी।

     पिंयर -पिंयर  पागा  बांधे।

     पिंयर -पिंयर  पहिरे धोती।

     पिंयर -पिंयर  बइला  फांदे,

     जाय किसान खेत  कोती।

खुशी        छलकत        हे,

किसन्हा    के ,अंग-अंग म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर  -  पिंयर     धुर्रा        उड़े,

पिंयर  -  पिंयर    मटासी   माटी।

पिंयर  -  पिंयर पीतल बँगुनिया म,

मेड़   म   माड़े    चटनी  -  बासी।

     पिंयर -पिंयर  बंभरी  के फूल,

     पिंयर -पिंयर  सुरुज  के घाम।

     पिंयर -पिंयर    करपा    माड़े,

     किसान पाये महिनत के दाम।

सपना   के    डोर     लमा,

उड़ जा बइठ   पतंग    म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर दिखे भारा,

पिंयर -पिंयर भरे गाड़ा।

पिंयर -पिंयर लागे खरही,

पिंयर -पिंयर दिखे ब्यारा।

           पिंयर -पिंयर छुही मा,

           लिपाहे  घर  के कोठ।

           पिंयर -पिंयर फुल्ली पहिरे,

           हाँसे    नोनी    मन  पोठ।

पिंयर - पिंयर बिछे पैर मा,

कूदे लइका मन उमंग मा।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

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करजा छूट देहूँ लाला(गीत)


धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।


मोर थेभा मोर बेटा बेटी, दाई ददा सुवारी।

मोरेच जतने खेत खार,घर बन अउ बारी।

येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।

घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।

नइ मानों कभू हार,लोर उबके चाहे छाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।

मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।

नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।

धान  लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।

अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटव तोर तलवा।

असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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धान लुवाई- सार छंद


पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।

भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।


चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।

काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।


चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।

चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।


बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी भरे कटोरी।

बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।


भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।

लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।


हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।

अमली बोइर हवै मेड़ मा, खावत हें सब टोरी।


बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड़ मा छोरी।

लाख लाखड़ी जामत हावय, घटकत हवै चनोरी।


आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।

ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।


महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।

लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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