संगे संग मया
अब कइसे रचही, मधूबन म रास रे ? मोर तीर हे बंसरी, अऊ तोर तीर हे साँस रे ।
कलेचुप खड़े हे, कदम के रूखवा । तंय पूर्वाइयाँ, अऊ मंय हर पात ||
कइसे ममहाही, मया के मोंगरा ? मंय हर पतझड़, अऊ तंय मधूमास रे ।।
चलत हे बरोड़ा, उड़ावत हे धूर्रा । तंय हर बिरौनी, मंय हर आँख रे ।।
मइलहा मन, मनभात नइहे मनखे के । मया के तरिया म, मन ल काँच रे ।।
फेंक के देख मया के गरी, छत्तीसगढ़ भर । अइसने अरझ जही, फेर छल ले झन फाँस रे ।।
न रो, न रोवा, खा तेंदू -चार - कोवा ।
टपका मुंहुँ ले मंदरस, अऊ मन भर हाँस रे ।।
थोरकिन ते खा, थोरकिन भूखाय ल खवा । कर सिंगार महतारी के, नंवाके माथ रे ।।
ओनहा- कोनहाल, करदे अंजोर । मया के माटी ले, उँच-नीच ल पाट रे ।।
का हे भरोसा, जिनगी के सिरतोन म ? मया - पिरीत ल, झंऊहा- झंऊहा बाँट रे ।।
जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
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