..........नोट के माया.............
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पहिली चक्की-चक्की गुड़ राहय,
बोरी-बोरी सक्कर।
टीपा-टीपा तेल रखे,
कोन लगाय रासन बर चक्कर।
काठा-काठा नून राहय,
बोरा-बोरा आलू,पियाज।
आनी-बानी के खोइला राहय,
मजा म बीते काली आज।
रंग-रंग के साग,निकले कोलाबारी म।
कभू कुछु कमी नइ होय,घर के हांड़ी म।
भराय राहय पठंऊवा म,
लकड़ी,छेना,पेरा-भूंसा।
गंहु -चना , खरी- बरी,
पुरे सालभर कांदा-कुसा।
खई-खजानी रोटी - पीठा,
रंग-रंग के रोज चूरे।
धनिया,मेथी,मिरचा,मसाला,
बनेच दिन ले पूरे।
बिन चिंता फिकर के गुजारा होय।
खाय कमाय अउ घर बन ल सिधोय।
फेर अब तो ले ले के खवई चलत हे।
चांउर-दार,तेल-नून ल,सकलई खलत हे।
धान,गंहु,चना,सरसो,
कोठी म अब कहाँ धरात हे?
पइसा के चक्कर म,
कोठारे ले बेंचात हे।
कोठी,पठंउवा,मइरका के जघा,
घर-घर तिजोरी बनगे हे।
चांउर,दार,तेल,नून नही,
रुपिया-पइसा मनखे के जोड़ी बनगे हे।
मनखे धरेल धरिस धन,
बढ़ेल लगिस मंहगई।
फेर आज बड़े नोट बेन होगे,
कतको के होगे कल्लई।
खाये के चीज हरे,
त खा अब।
पइसा म दार-चांउर,
बना अब।
जेन मनखे रिहिस पोठ।
जोड़े रिहिस गजब नोट।
तेला आज लगगे,
भारी भरकम चोट।
सिरतोन म छलथे माया।
छोड़े म बड़ रोथे काया।
नोट घलो मोह माया ए,
आज छोड़ दिस देख।
जोड़ना हे त मया जोड़,
कतको ल बोर दिस देख।
नोट बर बेंक हे,
उंहचे धर।
फेर पहिली कस,
मइरका,कोठी ल भर।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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