धान पर कविता
*किसम किसम के धान(सार छंद)*
धान कटोरा हा धन धरके, धन धन अब हो जाही।
लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।
हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।
देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।
लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।
सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।
मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।
मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।
चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।
बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।
बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।
लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।
पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।
पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।
आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।
समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।
कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।
साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।
स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।
गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।
बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।
लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।
क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।
कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।
कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।
कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली
रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।
सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।
जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।
जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।
सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।
लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।
पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।
गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।
रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।
तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।
गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।
दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।
हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।
लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।
कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची ललचाही।
लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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पिंयर-पिंयर करपा(गीत)
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आ नाच ले किसान संग म।
पाके धान के पिंयर रंग म।
पिंयर -पिंयर हँसिया के बेंठ।
पिंयर -पिंयर पैरा डोरी।
पिंयर- पिंयर लुगरा पहिरे।
धान लुवे गोरी।
पिंयर -पिंयर पागा बांधे।
पिंयर -पिंयर पहिरे धोती।
पिंयर -पिंयर बइला फांदे,
जाय किसान खेत कोती।
खुशी छलकत हे,
किसन्हा के ,अंग-अंग म।
आ नाच ले किसान संग म।
पाके धान के पिंयर रंग म।
पिंयर - पिंयर धुर्रा उड़े,
पिंयर - पिंयर मटासी माटी।
पिंयर - पिंयर पीतल बँगुनिया म,
मेड़ म माड़े चटनी - बासी।
पिंयर -पिंयर बंभरी के फूल,
पिंयर -पिंयर सुरुज के घाम।
पिंयर -पिंयर करपा माड़े,
किसान पाये महिनत के दाम।
सपना के डोर लमा,
उड़ जा बइठ पतंग म।
आ नाच ले किसान संग म।
पाके धान के पिंयर रंग म।
पिंयर -पिंयर दिखे भारा,
पिंयर -पिंयर भरे गाड़ा।
पिंयर -पिंयर लागे खरही,
पिंयर -पिंयर दिखे ब्यारा।
पिंयर -पिंयर छुही मा,
लिपाहे घर के कोठ।
पिंयर -पिंयर फुल्ली पहिरे,
हाँसे नोनी मन पोठ।
पिंयर - पिंयर बिछे पैर मा,
कूदे लइका मन उमंग मा।
आ नाच ले किसान संग म।
पाके धान के पिंयर रंग म।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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करजा छूट देहूँ लाला(गीत)
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।
मोर थेभा मोर बेटा बेटी, दाई ददा सुवारी।
मोरेच जतने खेत खार,घर बन अउ बारी।
येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।
घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।
नइ मानों कभू हार,लोर उबके चाहे छाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।
मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।
नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।
अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटव तोर तलवा।
असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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धान लुवाई- सार छंद
पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।
भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।
चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।
काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।
चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।
चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।
बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी भरे कटोरी।
बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।
भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।
लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।
हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।
अमली बोइर हवै मेड़ मा, खावत हें सब टोरी।
बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड़ मा छोरी।
लाख लाखड़ी जामत हावय, घटकत हवै चनोरी।
आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।
ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।
महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।
लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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