Monday, 8 December 2025

सपना

 ...............सपना.............

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रतिहा रोत रहेंव,

रहि-रहि के सपना म |

डरे-डर म,सुते सुते,

दबे-दबे   दसना  म  |


जंगल गे रेहेंव, 

पिकनिक मानेल |

करेन हो हल्ला,

नाचेन- गायेन |

भूँकर-भूँकर के,

गोल्लर कस,

उछर-उछर के खायेन |

मँउहा मारिस मितान मन,

मँय मन मडा़येव चखना म|

रतिहा रोत रेहेंव,

रहि-रहि के सपना म....|


जिंहा बँसरी बाजे,

तिहा डिस्को बाजत हे|

जिहा राहस राचे,

तिहा जुआ  मातत हे |

मॉस मछरी कस मजा,

नइहे मटर मखना म....|

रतिहा रोत रेहेंव,

रहि-रहि के सपना म...|


चारो मुड़ा सीसी-बॉटल,

अऊ गुटका पाऊच पड़े हे|

बीड़ी-सिकरेट म,

झुंझकुर झाड़ी अऊ पेड़़ जरे हे|

हुरहा हलिस पहाड़,

चपकागेव बड़का पखना म...|

रतिहा रोत रेहेंव,

रहि-रहि के सपना म............|


अलगागे गोड़ के जोंड़,

कुटी-कुटी टुटगे कनिहा,

दाई-ददा बरजत रिहिस,

अति करेल पिकनिक झनि जा|

टुटिस सपना ताहन कहॉ के पथना,

गोड़ खुसरे राहय खटिया के गँथना म..|

रतिहा रोत रेहेव,

रहि-रहि के सपना म........................|


सिरतोन म का ददा,

सपना म घलो नइ गोड़ तोड़वांव |

कान धरलेव अतलंगहा बन,

पिकनिक नई जांव |


             जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बाल्को(कोरबा)

Thursday, 27 November 2025

आनलेन पेमेंट-रोला छंद

 आनलेन पेमेंट-रोला छंद


आनलेन के दौर, हवै सब झन हा कहिथन।

फेर बखत ला देख, जुगत मा सबझन रहिथन।।

आनलेन पेमेंट, लेत हें पसरा ठेला।

बड़का मॉल दुकान, करैं नित पेलिक पेला।


अफसर बाबू सेठ, पुलिस नेता वैपारी।

माँगे नकदी नोट, कहत झन करबे चारी।।

भरे जेन के जेब, उही हा जेब टटोले।

उँखरे ले हे काम, कोन फोकट मुँह खोले।।


लुका लुका के नोट, धरत हावैं गट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, कहाँ चलथे भठ्ठी मा।।

मांगै नगदी नोट, बार भठ्ठी मुँह मंगा।

सरकारी हे छूट, लूट होवै बड़ चंगा।।


सट्टा पट्टी खेल, चलत हे चारो कोती।

विज्ञापन के धूम, लगत हे जस सुरहोती।

मिले हवै सरकार, खिलाड़ी अउ अभिनेता।

जनता ला बहकाँय, बताके विश्व विजेता।।


मुँहफारे घुसखोर, माँगथे नकदी रुपिया।

आनलेन पेमेंट, लेय ये कइसे खुफिया?

देखे जभ्भे नोट, तभे कारज निपटाये।

आनलेन के नाम, सुनत आँखी देखाये।।


आनलेन पेमेंट, देन कइसे छट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, देन कइसे भट्ठी मा।।

आनलेन मा बोल, देन कइसे नजराना।

आनलेन मा काज, करे नइ कोरट थाना।।


रोवत लइका लोग, मानही का बिन पइसा।

कइसे करहीं काम, जौन बर आखर भइसा।।

छोड़वाय बर संग, काय अब करना पड़ही।

आनलेन पेमेंट, बता का आघू बढ़ही?


उद्योगी के हाथ, हवै पावर अउ टॉवर।

रोवय धोवय नेट, इहाँ चौबीसों ऑवर।।

निच्चट हे इस्पीड, फोर जी फाइभ जी के।

सब झन हवन गुलाम, नेट के नौटंकी के।


डिजिटल होही देश, बता कइसे गा भइया।

पर के कुकरी गार, संग दूसर सेवइया।।

नेटजाल सरकार, बुने अउ देवैं सुविधा।

सोसल सेवा होय, तभे दुरिहाही दुविधा।।


आनलेन पेमेंट, कहाँ देथें लेथें सब।

तोर मोर बड़ छोट, यहू मा मिलथे देखब।।

ठगजग तक हें खूब, देख के काँपे चोला।

बढ़िया हो हर काम, तभे तो भाही मोला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday, 22 November 2025

ग़ज़ल – आम आदमी

 ग़ज़ल – आम आदमी

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं आम आदमी हूँ, फिर से छला जाऊँगा।  

कोई कहीं बुलाए, दौड़ा चला जाऊँगा।।1


मुझे खौफ़ इस क़दर है, क्या कहूँ मैं गैरों को।  

चूल्हे की आग में मैं, खुद ही जला जाऊँगा।।2


बहुमंजिला महल हो, सोना जड़ित हो शय्या।  

उस ठौर में बताओ, कैसे भला जाऊँगा।।3


हर युग में गिर रहा हूँ, हर युग में घिर रहा हूँ।  

कोई मुझे बताए, मैं कब फला जाऊँगा।।4


बदहाल ज़िंदगी है, चिंता कहाँ किसी को।  

ऊँच-नीच की भट्ठी में, हर पल गला जाऊँगा।।5


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'

 विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'


                       "विद्याददाति विनयम" बचपन ले ये सूक्त वाक्य ल पढ़त-सुनत आवत हन, कि विद्या माने शिक्षा/ज्ञान/समझ ले मनखें मा विनम्रता आथे, फेर का ये देखे बर मिलथे? आखिर विद्या/ज्ञान/समझ काय ए?  आज के हिसाब से, पहली ले लेके बड़का बड़का डिग्री इही तो ज्ञान आय न? इही तो समझ बढाथें न? जे जतका बड़े डिग्री धारी ते वोतके बड़े ज्ञानी, है न? ता फेर वो ज्ञानी के  ज्ञान/शिक्षा/समझ वोखर बानी, काम-काज अउ आदत- व्यवहार मा झलकना चाही, पर अइसन तो अब दिखबे नइ करे, बल्कि आज तो जे जतके ज्ञानी ते ततके अभिमानी। अइसन मा विद्या ले विनय वाले बात तो लबारी होगे। अनपढ़, नासमझ घलो अइसन नइ करे जउन आज डिग्रीधारी बड़का बड़का ज्ञानी मन करत दिखथें। डिग्रीधारी डॉक्टर, मास्टर, वकील, अफसर, बाबू, इंजीनियर अउ बड़े बड़े पदवी मा बइठे, आपके जानती मा, के झन मनखें विनयशील हें? के झन ईमानदार हे? के झन के डिग्री मा समझदारी झलकथे? शायद मोला डाटा बताये के जरूरत नइहें, काबर कि सिर्फ पेड़े भर फर मा लद के झुके दिखथे, पर मनुष एक्का दुक्का। ता अइसन काबर? का हमर शिक्षा नीति या फेर जेन ज्ञान दिए जावत हे, तिही मा कमी बेसी हे? ये आज चिंतन के विषय हे। बड़े बड़े स्कूल-कॉलेज के लइका मन रद्दा बाट मा मुँहफोर बकत दिखथें। मान गउन, इज्जत-आदर, छोटे-बड़े संग सही-गलत के तको खियाल नइ रखें। आज ज्यादातर पढ़े लिखे मन अंधाधुन मोटर गाड़ी कुदावत, मोबाइल मा दिन रात समय गँवावत, मंद-मउहा, सिगरेट अउ ड्रग्स के नसा मा चूर, होटल-ढाबा मा खावत घूमत अँटियात हें। डिस्को-नाइट क्लब, पब, कौसिनो जइसे बेकार जघा मा आज के मनखें मनके अड्डा हें। येमा पढ़इया लिखइया लइका मन संग बड़े बड़े साहब, सिपैहा सब शामिल दिखथें। का इही सब बुराई मन आय पढ़े लिखे के पहिचान? मनखें अनपढ़ रहिके कतको धीर-वीर, समझदार हो जाय, फेर आज आखर ज्ञान,देश दुनिया के जनइया ही पढ़े लिखे कहाथें।

               इंजीनिरिंग, मेडीकल अउ बड़े बड़े कॉलेज, हास्टल मन मा रैगिंग के नाम मा मार पीट, पार्टी सार्टी के नाम मा अश्लीलता, शोर- शराबा, गाली-गलौज, बेढंगा मौज मस्ती आज सहज देखे बर मिलथे। केक, स्प्रे, गुब्बारा आदि अउ कतको चीज ला फेकना-फाकना, बर्थ डे ब्वाय कहिके वोला मारना पीटना, लड़की-लड़का होय के बाद भी अश्लील नाच अउ गारी गल्ला देना, आंय बाँय कपड़ा लत्ता पहिनना, ये सब काय ए? येला पढ़े लिखे लइका मन रोजे करत हें। अइसन मा का आघू उंखर आदत व्यवहार मा विनम्रता अउ समझदारी झलकही? कहाँ जावत हे हमर शिक्षा? नैतिकता के तो नाँवे बुझागे हे। सभ्य, सहजता, सत्यता कुछ तो पढ़े लिखे मा झलके। आज तो चोर चंडाल बरोबर पढ़े लिखे मन ही समाज ला लूटत हें, बर्गालात हें, गलत नियम धियम परोसत हें। रीति नीति, नेत-नियम, संस्कृति- संस्कार ला बरो के सेवा- सत्कार अउ ईमानदारी के कसम खाके पद पाय साहब सिपैहा भ्रष्ट होके, ज्ञान अउ पद के नाम ला डुबोवत हें। शिक्षा के अपमान शिक्षित मन ही करत हें। घूसखोरी, दादागिरी, देखमरी, लालची, हवसी, मुँहजोरी, कामचोरी, स्वार्थी, दुश्मनी, जिद्दी, उज्जटपन असन अउ कतकोन बुराई जे शिक्षा ले भागथे कथे, ते शिक्षित मनखें मन के रग रग मा दिखत हें।  विद्यालय जे ज्ञान के मंदिर कहावै ते आज शोरूम/दुकान बनगे हे। पइसा देव ,डिग्री लेव। अइसन मा भला समझदारी, सहजता, विनम्रता जइसन चीज कइसे मिलही? लइका मन दाई ददा के बात बानी ला घलो नइ सुनत हें, ता आन के बरजना ला का मानही? इंज्वाय, इस्टाइल, एटीट्यूड, पर्सनाल्टी कहिके पढ़इया-लिखइया मन आज का का नइ करत हें, अउ जउन करत हें तेला सब  तो देखते हन।

           "विद्या ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्।

            पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥"

मतलब  विद्या ले विनय, विनय ले पात्रता, पात्रत्रा ले धन, धन ले धर्म अउ धर्म ले सुख के प्राप्ति होथे। ये सोला आना सच हे, फेर आज विद्या पाके मनखें कइसनों होय धन कमाए के सोचत हें। अनपढ़ घलो जांगर खपा के अपन दिन गुजारथे, फेर पढ़े लिखे मन आज अपन जिम्मेदारी, विधि-विधान अउ फर्ज ले भागत दिखथें। साहब, बाबू, डॉक्टर, मास्टर, अभियंता-------कस कतकोन मन ला निर्माण के जिम्मेदारी मिले हें, फेर आज स्वार्थ, हवस अउ जादा के चाह मा मनखें मन विनाश करे बर घलो तियार दिखथें। ऑनलाइन ठगी, लूट, चापलूसी, अनैतिक कृत्य, मिलावट, कालाबाजारी, स्मगलिंग, जासूसी, अपहरण, लफुटी, वसूली-----जइसे काम आज पढ़े लिखे मनखें मन डंका बजाके करत हें, काबर कि पदवी धारी लगभग सबे झन के इही हाल हे। अभिच देखे हन बड़का बड़का डिग्रीधारी डॉक्टर आतंकवादी हो जावत हे। मास्टर मनके आय दिन शिकायत आवत हे। टीटी, पटवारी, साहब-सिपैहा मन घूसखोरी मा सने मिलत हें। खोज-खबर देवइया, जज-वकील, साहब- बाबू, पुलिस-प्रशासन पैसा मा बिक जावत हें। जइसे जइसे देश मा शिक्षा अउ शिक्षित व्यक्ति मन के संख्या बढ़त हें, तइसे तइसे विसंगति अउ बुराई घलो बढ़त जावत हे।जे चिंता अउ चिंतन के बिषय आय।

                   एक अनपढ़ बनिहार धान के खेत ला निंदत बेरा, बन/खरपतवार ला ही फेकथे, रिस या बदला मा धाने धान ला नइ खने। वो समय मा आथे, समय मा जाथे, समय मा खाथे, ता पढ़े लिखे मन अपन फर्ज ले काबर डिग जथे? काबर लालच या स्वार्थ मा मेहनताना मिले के बावजूद भी लूट मचाय मा तुले रथें? पढ़ लिख के मनखें आज अपन  तन मन ला क़ाबू मा नइ कर पावत हें, परलोभ अउ मोह मा पर जावत हे, उजाड़ के बाना बोहे हें, ता फेर पढ़े लिखे के का मतलब? आज पढ़े लिखे मनखें मन ये सब करत हें, ता अनपढ़, अज्ञानी के बारे मा का कहन? अइसे नही के सबे पढ़े लिखे मन अइसन करत हे, आज भी ईमानदारी अउ मानवता के मिशाल हे, फेर नगण्य। पढ़ाई/शिक्षा/विद्या/तालीम तर्क वितर्क के साथ साथ तौर तरीका घलो सीखाथे, फेर कहाँ दिखथे- समझदारी, सकारात्मकता, सृजन अउ मानवता जइसे शैक्षणिक बोध? भला मनखें तीर मानवता नइ रही ता काखर तीर रही। पढ़े लिखे मनखें के आदत व्यवहार, कथनी करनी मा विद्या झलकना चाही, तभे विद्या अउ विनय वाले सूक्त वाक्य शोभा पाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)...

पेट--जयकारी (चौपई) छंद

 पेट--जयकारी (चौपई) छंद 


पेट देख के होवय गोठ,कखरो पातर कखरो मोठ।

पेट देख के जाहू जान,कोन सेठ मजदूर किसान।1।


पेट करावय करम हजार,कोनो खावय दर-दर मार।

नाचा गम्मत होय व्यपार,सजे पेट बर हाट बाजार।2।


पेट पालथे कोनो हाँस,कोनो ला गड़ जाथे फाँस।

धरे पेट बर कोनो तीर,ता कोनो बन जावय वीर।3।


मचे पेट बर कतको रार,कोनो बेंचें खेती खार।

पेट पलायन कभू कराय,गाँव ठाँव सबला छोड़ाय।4।


नाप नाप के कतकों पेट,खान पान ला करथें सेट।

कई भूख मा पेट ठठाय,कोनो खा पी के अँटियाय।5।


कखरो पेट ल भाये नून,कतको झन पी जावय खून।

कोनो खोजे मँदिरा माँस,पेट फुलावय कोनो हाँस।6।


पेट भरे तब लालच आय,धन दौलत मनखे सिरजाय।

पेट जानवर के दमदार,तभो धरे नइ चाँउर यार।7।


बित्ता भर वाले ला देख,रटे पेट ताकय कर रेख।

रखे पेट खातिर धन जोर,कतको मन बन जावय चोर।8।


ऊँच नीच जब खाना होय,पचे नहीं बीमारी बोय।

पेट पीरा हर लेवय चैन,पेट कभू बरसावय नैन।9।


लाँघन ला दौ दाना दान,पेट हरे सबझन के जान।

दाना चाही दूनो जून,पेट भरे ता मिले सुकून।10।


ढोंगी अधमी पावै दुःख, मरे पेट ओ मन के भूख।

करे जउन मन हा सतकाम,पेट भरे सबके गा राम।11।


 जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

अरझगे बेर बर म

 ........अरझगे बेर बर म

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अगोरत हे बबा,

बड़ बेर ले बेर ल।

घाम उतरही कहिके,

देखत हे बर पेड़ ल।


हरियर-हरियर पाना म,

अरझगे सोनहा घाम।

बिन सेके तन ल,

नइ भाय बुता काम।


कथरी,कमरा म,

जाड़ जात  नइहे।

अंगरा,अंगेठा,भुर्री,

भात नइहे।


घाम के अगोरा म।

बबा बइठे बोरा म।

खेलाय नान्हे नाती ल,

बईठार अपन कोरा म।।


लामे डारा-खांधा,

अउ घम-घम ले छाये पाना।

बर पेड़ घेरी बेरी ,

बबा ल मारे ताना।


एक कन दिख के,लुका जात हे।

घाम बर बबा,भूखा जात हे।

करिया कँउवा काँव-काँव करत,

बिजरात हे बबा ल।

बिहनिया ले बिकट जाड़,

जनात हे बबा ल।


पँडकी,सल्हई,गोड़ेला,पुचपुची,

ए डारा ले वो डारा उड़ाय।

रिस म बबा बर पेड़ ल,

कोकवानी लउठी देखाय।


थोरिक बेरा म,

भुँइयॉ म घाम बगरगे।

बबा केहे लउठी देख,

बर पेड़ ह डरगे।


पाके घाम बबा हाँसत हे।

थपड़ी पीटत नाती सँग नाचत हे।

बइठे-बइठे मुहाटी म,

बबा घाम तापत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

बढ़ोना अउ झरती कोठार

 बढ़ोना अउ झरती कोठार


                   हमर पहली के बूता काम, नेंग जोग, रीति रिवाज अउ पार परम्परा आज नवा जमाना मा कथा कन्थली बरोबर होगे हे, काबर कि धीरे धीरे वो सब आज नँदावत जावत हे। अइसने आज नँदावत खेती किसानी के एक नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार। खेत खलिहान अउ ओमा बोये फसल किसान मनके जिनगी के एक धड़कन होथे, तभे तो किसान मन अपन खेत खलिहान अउ धान पान ला देवता बरोबर पूजथें अउ बेरा बेरा मा बरोबर मान गउन करत, फसल के बढ़वार के संग सब बर सुख समृद्धि के कामना करथें। अक्ति तिहार बर टेड़गी डोली मा ठाकुरदैया ले लाए धान ला बोके, बोनी मुहतुर करे के परम्परा हे, ता धान लुए के बेरा जब, लुवाई के काम उसरने वाला रथे ता बढ़ोना के नेंग करे जाथे। बढ़ोना माने फसल काटे के बूता खतम होना। किसान मन धान के फसल जब पूरा कटने वाला रथे, ता एक कोंटा मा थोरिक धान ला छोड़ देथें अउ छोड़े धान मेर जम्मों लुवइया मनके हँसिया ला मढ़ाके, नरियर फूल-दूबी चढ़ाके, हूम-धूप जलाके, मिठाई नही ते कोनो पकवान भोग लगाके धरती दाई के पूजा करथें। घर वाले किसान संग वो बेरा मा जतका धान लुवइया आय रथें, सब बढ़ोना नेंग मा शामिल होथें अउ माटी महतारी ला बढ़िया फसल देय बर नमन, जोहार करथें, अउ आने वाले साल मा अउ बढ़िया फसल के वर मांगत माथ नॅवाथें। बढ़ोना के पकवान/मिठाई अउ प्रसादी ला खेत मा काम करइया मनके संगे संग घर लाके पारा परोसी ला घलो बाँटे जाथें, जेखर ले सब जान जाथें कि धान बढ़गे हे, लुए के बूता झरगे हे। कतको किसान मन खेत मा फांता घलो बनाथें, जेला घर के डेहरी मा लाके टाँगथें। फांता जेला धान के झालर घलो कथन। फांता ला बढ़िया फसल होय के प्रतीक के रूप मा घर मा टाँगे जाथे। बढ़ोना के नेंग लगभग सबे किसान मन करथें। आज भले हार्वेस्टर के जमाना हे, तभो बढ़ोना होथेच। किसान मन धान लुना चालू घलो टेड़गी डोली ले हूमजग देके करथें। टेड़गी डोली के मुहतुर करई ल गजब शुभ माने जाथे। 

                  बढ़ोना कस एक नेंग अउ होथे, जेला झरती कोठार कथन। खेत के जम्मों धान पान ला कोठार मा लाके सिधोये जाथे। माने खेत के धान ला भारा बांध के, गाड़ा मा जोर जोर के कोठार मा लाके, खरही गांजे जाथे अउ पैर डार के मिंजे ओसाये के बाद कोठी मा नाप के धरे जाथे। खेत ले कोठार आये बड़का बड़का धान के खरही देखत मन गदगद हो जथे। पहली किसान मन धान के खरही ला खेत के जम्मों काम बूता झरराये के बाद धीरे धीरे महीना भर मा मिंजे, ओसाये अउ कोठी मा धरे। काबर कि खेती किसानी ही उंखर मुख्य कार्य रहय। आज थ्रेसर हार्वेस्टर के जमाना मा हप्ता भर मा लुवई मिंजई झर जावत हे, तभो मनखें वो बचे समय ला ठलहा गंवा देवत हे। झरती कोठार माने धान पान मिंजे धरे के काम झर जाना। 

                     धान के बड़का बड़का खरही, पैरावट, पैर, रास आदि के का कहना? येला जेन देखे होही तिही ओखर सुखद अनुभव कर सकथें। सियान मन संग लइका मन घलो सीला बीनत, धान मिंजावत पैर मा खेलत कूदत, दाई ददा मन संग छोट मोट बूता करत बड़ आनंद पाँय। हरिया, पाँत, करपा, भारा, खरही, पैर कस खेती किसानी के काम मा एक अउ चीज देखे बर मिलथे, जेला रास कथन। रास धान के मिंजे ओसाये के बाद कोठर के एक कोंटा मा धान ला बढ़िया गांज के बनाये जाथे, सोझ कहन ता धान के कूढ़ी। कलारी, सूपा, मोखला कांटा, चुरी पाठ, गोंदा फूल, काठा, चरिहा, खरसी, बोर्झरी आदि रास मेर सजे रथे ता देखके अइसे लगथे, सँउहत अन्न के देवी पधारे हे। रास के धान ला काठा मा नाप नाप के चरिहा मा भरके कोठी या फेर बोरा मा भरे जाथे। नापत बेरा हर खांड़ी मा एक मुठा धान गिने बर किसान मा रखथें, अउ बीस खांड़ी होय के बाद एक गाड़ा के कूड़हा मड़ाथें। नापतोल के बात करन ता बीस काठा माने एक खाँड़ी, अउ बीस खाँड़ी माने एक गाड़ा। वइसने चार पैली के एक काठा होथे। आजकल अइसन काठा, पैली, चरिहा, मा नापजोख कमती होवत जावत हे। काठा मा जब धान नापथें ता पहली ला एक ना गिनके राम कथे, वइसने बीस काठा होय के बाद, भगवान के नाम लेवत एक कूड़हा रखथें। धान ला जब कोठी मा धरना होथे तब चरिहा मा भरके घर मा ले जाय के पहली एक लोटा पानी ओरछ के अन्न महतारी के सुवागत करत पायलागी करे जाथे। किसान मन झरती कोठार करथें ता सबो धान ला कोठी मा नइ रखें, कुछ ला बोरा चुंगड़ी मा भरके रखथें, काबर कि पौनी पसारी(ठाकुर, बैगा, चरवाहा, कोतवाल आदि सब के जेवर), दान दक्षिणा देय बर घलो लगथे। धान मिंजे के बाद घरो घर भाट भटरी मन दान पुण्य के आस मा आथे, अउ धान के दान लगभग सब किसान खुशी खुशी करथें, काबर कि अन्न दान ला महादान कहे गय हे। फसल होय के खुशी मा किसान मा दान देथें। आज तो धान ला मंगइया मन घलो मुँह फेरत पैसा माँगथें। फसल आय के बाद दान धरम के तिहार के रूप मा पूस पुन्नी बर  छेरछेरा तिहार घलो मनाये जाथे। फसल आय के बाद मेला मड़ाई, नाचा गम्मत घलो गांव गांव मा होथे। हमर संस्कृति संस्कार अउ परब तिहार किसानी के अनुसार ही चलथे। 

                  झरती कोठार के खुशी मा किसान मन घर मा बढ़िया बढ़िया पकवान अउ रोटी-पीठा राँधथें अउ पारा परोसी मन ला खवाथें। कोमहड़ा पाग, सेवई, तसमई अउ कतरा झरती कोठार मा बनबेच करथे। कोठार अउ कोठी संग धान के रास मा हूम देके गुरहा चीला चढ़ाए जाथे। रास जब नपा जाथे ता ओमा चढ़े मोखला कांटा अउ चूड़ी पाठ ला बोइर के छोटे पेड़(बोर्झरी) मा चढ़ाये के नेंग हे। झरती कोठार खरीफ फसल धान, कोदो आदि मुख्य खाद्यान फसल के बूता ला झर्राये के बाद करे जाथे। तेखर बाद किसान मन नगदी फसल के रूप मा खेत मा अरसी, सरसो, मसूर, चना, गहूं के खेती करथें।  चौमासा भर के महीनत ला किसान मन पाके गदगद रथें। छत्तीसगढ़ जेखर नाम से जाने जाथे, वो धान के बड़ सुघर नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार के। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

भाजी चना के

 भाजी चना के


भाजी चना के।

खा ले बना के।।

बढ़िया भूंज बघार,

चना दार नाके।।


खवाथे अंगरी चाँट,

जघा नइ रहै मना के।।

अब चना कम बोवाय,

रेट बढ़गे दनदनाके।


पहली मिल जाय,

सिर्फ चार अना के।

आज नइ घलो पाबे,

पांच छः कोरी गनाके।।


लुकाय लुकाय फिरत हे,

भाजी अपन गुण जनाके।।

बिजरात है मनखें मन ला,

बाजार हाट म आके।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday, 16 November 2025

चउथ के चाँद- लावणी छंद

 चउथ के चाँद- लावणी छंद


घूप दीप आगर इत्तर मा, सजे चउथ के थाली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


भाव भजन व्रत जप तप गूंजे, नाँव सजन के हे मुख मा।

माँगय वर माता करवा ले, बीतय जिनगी नित सुख मा।।

लाली लुगरा लाली लहँगा, महुर मेंहदी लाली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


जप तप देख अशीष सुखी नित, देय विधाता बिन बोले।

जनमो जनम रहय रिस्ता हा, नेव ठिहा के झन डोले।।

हवय सजाना कइसे बगिया, जाने जउने माली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


करवा चउथ उपास रहइया, बाढ़त हावय सब कोती।

मया पिरित मा चहकय डेरा, बरे खुशी सुख के जोती।।

टिके आस मा हे सरि दुनिया, बिन आसा जग खाली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday, 14 November 2025

गीत--आ जाबे नदिया तीर म(कातिक पुन्नी स्नान)

 गीत--आ जाबे नदिया तीर म


आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ।

कुनकुन-कुनकुन जाड़ जनावै, मँय कोयली कस बोलत हौं या ।


महुर लगे तोर पांव लाली, धूर्रा म सनाय मोर पांव पिंवरा हे ।

चिंव-चिंव करे चिरई-चिरगुन, नाचत झुमरत मोर जिवरा हे ।।

फूल गोंदा कचनार केंवरा, चारों खुंट ममहाये रे ।

तोर मया बर रोज बिहनिया, तन-मन मोर पुन्नी नहाये रे । 

मया के दीया बरे मजधारे, मारे लहरा मँय डोलत हौं या ।

आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ------------------


कातिक के जुड़ जाड़ म घलो, अगोरत होगेंव तात रे ।

आमा-अमली ताल तलैया, देखत हे तोर बॉट रे ।

परसा पारी जोहत हावै, फगुवा राग सुनाही रे । 

होरी जरे कस तन ह भभके, देखत तोला बुझाही रे ।।

आमा मँउर कस सपना ल, झोत्था-झोत्था जोरत हौं या।

आ जाबे नंदिया तीर म, अगोरत हौं या -----------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई



कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई

वाह रे पानी-सार छंद

 वाह रे पानी-सार छंद


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल – आम आदमी जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल – आम आदमी

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं आम आदमी हूँ, फिर से छला जाऊँगा।  

कोई कहीं बुलाए, दौड़ा चला जाऊँगा।।1


मुझे खौफ़ इस क़दर है, क्या कहूँ मैं गैरों को।  

चूल्हे की आग में मैं, खुद ही जला जाऊँगा।।2


बहुमंजिला महल हो, सोना जड़ित हो शय्या।  

उस ठौर में बताओ, कैसे भला जाऊँगा।।3


हर युग में गिर रहा हूँ, हर युग में घिर रहा हूँ।  

कोई मुझे बताए, मैं कब फला जाऊँगा।।4


बदहाल ज़िंदगी है, चिंता कहाँ किसी को।  

ऊँच-नीच की भट्ठी में, हर पल गला जाऊँगा।।5


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

खेती अपन सेती

 खेती अपन सेती

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बाँचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा आफत के आगी,

कुंदरा  किसनहा के लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

किसनहा बपुरा मन रेता  झन जाय|


मूड़  मुड़ागे,ओढ़ना - चेंदरा चिरागे,

मुड़ के पागा अउ गल फेटा झन जाय|


बधिन बधना, बिधाता तीर जाके रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया, सब बिजरात हे उनला,

अवइया पीढ़ी ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

कहीं अब इती-उती फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के उन ला किसानी के पेसा झन जाय|


दँउड़े हें खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कहूँ बंभरी कॉटा तहूँ ल ठेसा झन जाय |


नइ धराय मुठा म रेती, खेती अपन सेती,

भूख मरे बर खेत कखरो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)


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फेर ए बारी किसन्हा के हार होइस

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न बारी;बारी रिहिस,

न बारी कोठार होइस|

फेर ए बारी ,

किसन्हा के हार होइस|


न जमके असाड़ अइस,

न    जमके    सावन |

मरे के जघा सजोर होगे,

अऊ   बइरी    रावन |

जे हुदरत हे;हपटत हे;झपटत    हे|

किसन्हा  रो-रोके  मुडी़  पटकत हे|

न हरेली;न तीजा पोरा,

न बने देवारी तिहार होइस......|

फेर ए बारी,किसन्हा के हार होईस|


कइसे खवाओ तोला,

कोला  के  साग |

ढेला तरी धान बोजागे,

नइ पइस बने जाग |

चांऊर सिरागे अंदहन डबकत हे|

साग-दार के भाव भभकत हे|

गिस चांऊर-दार कोठी ले गोदाम म |

त बढ़ोतरी होगे जँउहर ओखर दाम म |

मिल-उद्धोग सोना उपजात  हे|

खेत-खार म करगाअऊ बन झपात हे  |

भूंजात ले घाम होइस,

ठुठरत हे जाड़ होइस|

एक तो नइ गिरे पानी,

गिरिस त उजाड़ होइस.....|

फेर ए बारी किसन्हा के हार होइस|


बस घाम -पानी चाल के चाही|

ताहन सुख-समृद्धि साल के आही|

गांज देबोन मया के खरही |

त कइसे छ.ग.आघू नइ बढ़ही|

सुखाय हे भुंइया  ,

फेर भींगे हे ऑखी|

सुलगत हे तन हर,

चिराय  हे  छॉती |

फेर ए दरी घर म,

खुशी नही गोहार होइस |

पथरा लादे सुनत हौ,

छाती मोर पहाड़ होइस.....|

फेर ए बारी किसन्हा के हार होइस|

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                  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                     बाल्को  {कोरबा}

छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के आप सबो ल सादर बधाई लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के आप सबो ल सादर बधाई


लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये नारा हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई


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गीत


..........मोर छत्तीसगढ़ महतारी..............

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लोहा धरे हे, कोइला धरे हे ,हीरा धरे  हे रे।

तभो मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


हरियर    लुगरा  लाल  होगे।

जंगल  - झाड़ी  काल  होगे।

बैरी लुकाय हे ,पेड़ ओधा म,

निच्चट महतारी के हाल होगे।


होगे  धान   के , कटोरा   रीता।

डोली-डंगरी बेंचागे,बीता-बीता।

घर - घर  म, महाभारत माते हे,

रोवत हे देख,सबरी - सीता।

महानदी, अरपा ,पइरी  म, आंसू भरे हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


बम्लाई , महामाई , का  करे?

बाल्मिकी , सृंगी,नइ अवतरे।

नइ मिले अब,धनी-धरमदास,

कोन  बीर नारायन,बन लड़े?


कोन  संत  बने , घासी  कस?

कोन राज बनाय,कासी कस?

कोन करे ,सिंगार महतारी के?

कोन सोहे , शुभ गुण  रासी  कस?

सेवा-सत्कार भूलाके,तोर-मोर म पड़े हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


बर बिरवा बुचवा होगे ,सइगोन-सरई सिरात हे।

पीपर-लीम-आमा तरी मा,अब कोन ह थिरात हे?

गाँव गंवई के नांव  भर  हे, गंवागे हे सबो गुन रे।

बरा - भजिया भूलागे मनखे, भूलागे बासी-नून रे।


महतारी    के   गोरिया  अंग  म,

करिया-करिया  केरवस  जमगे।

कुंदरा उझरगे, खेत परिया परगे,

उधोग,महल ,लाज,टावर लमगे।

छेद   के   छाती   महतारी    के,

लहू   ल      घलो    डुमत    हे।

करमा  -  ददरिया  म  नइ नाचे,

मंद  -  मऊहा   म    झूमत   हे।

जतन करे बर विधाता तोला,छ.ग.म गढ़े हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया  म  पीरा  धरे हे रे।

           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

            बालको(कोरबा)

            9981441795

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छतीसगढ़ी महतारी भाँखा(गीत)


मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात हे भाँखा बोली।

     बड़ई नइ करे अपन भाँखा के,करथे खुद ठिठोली।


गिल्ली भँवरा बाँटी भुलाके,खेले क्रिकेट हाँकी।

       माटी   ले दुरिहाके   संगी,मारत रइथे  फाँकी।

चिरई के पिला चींव चींव कइथे,कँउवा के काँव काँव।

    गइया के बछरू हम्मा कइथे,हुँड़ड़ा के हाँव हाँव।     

मंदरस कस गुरतुर बोली मा,मिंझरत हे अब गोली। 

  मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात--------।


     हटर हटर जिनगी भर करे,छोड़े मीत मितानी।

देखावा  हा  आगी  लगे हे,मारे  बड़   फुटानी।

    पाके माया गरब करत हे,बरोवत  हवे  पिरीत ला।

नइ  जाने  दया मया ला,तोड़त  हावय  रीत  ला।

   होटल ढाबा लॉज ह भाये,नइ भाये रँधनी खोली।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात--------।


सनहन पेज महिरी बासी,अउ अँगाकर नइ खाये।

    अपन मुख ले अपन भाँखा के,गुण घलो नइ गाये।       

छत्तीसगढ़ महतारी के अब,कोन ह नाँव जगाही।

   हमर छोड़ अउ कोन भला,छत्तीसगढ़िया कहाही।  

तीजा पोरा ल काय जानही,नइ जाने देवारी होली। 

   मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात-------।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


 मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं


मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।

पीके नरी जुड़ालौ सबझन,सबके मिही निसानी औं।


महानदी के मैं लहरा औं,गंगरेल के दहरा औं।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी,ठिहा ठौर के पहरा औं।

दया मया सुख शांति खुसी बर,हरियर धरती धानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-----।


बनके सुवा ददरिया कर्मा,मांदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस,द्वेष दरद दुख ला बॉचौं।

बरा सुहाँरी फरा अँगाकर,बिही कलिंदर चानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी,छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी मैं, मैं अक्ती अगवानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


ग्रंथ दान लीला ला पढ़लौ,गोठ सियानी ला गढ़लौ।

संत गुनी कवि ज्ञानी मनके,अन्तस् मा बैना भरलौ।

मिही अमीर गरीब सबे के,महतारी अभिमानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं--।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा


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छत्तीसगढ़ महतारी


मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।

नरियर दूबी पान फूल धर, आरती  करौं।।


रथे लबालब धान कोटरा, महिमा तोर बड़ भारी।

जंगल झाड़ी नदिया नरवा, आये तोर चिन्हारी।।

तोर डेरउठी मा दियना बन,नित रिगबिग बरौं।।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


महानदी अरपा के पानी, अमृत सही बोहावै।

साल्हो सुवा ददरिया कर्मा, मन ला तोरे भावै।

सरइ सइगोंन बन नभ अमरौं, गोंदा सही झरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


होरी हरेली तीजा पोरा, हँस हँस तैं मनवाथस।

सत सुमता के बीजहा बोथस, फरा अँगाकर खाथस।

भौंरा बांटी फुगड़ी खेलौं, जब जब जनम धरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


बनभैसा के गुँजे गरजना, मैना के किलकारी।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, जानै दुनिया सारी।

तोर कृपा ले बन खरतरिहा, कोठि काठा भरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

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गीत-भाँखा छत्तीसगढ़ी मोर


ये भाँखा छत्तीसगढ़ी मोर।

बाँधे सब ला जइसे डोर।।

बोले बर मँय नइ छोवँव....


ये महतारी के ए बानी।

बहे बनके अमृत पानी।।

घर गाँव गली बन खोर।

सबे खूँट हावय एखर शोर।

बोले बर मँय नइ छोवँव....


समाथे अंतस मा जाके।

मिठाथे जइसे फर पाके।।

आलू बरी मुनगा के फोर।

डुबकी अउ इड़हड़ के झोर।

बोले बर मँय नइ छोवँव....


बोले मा लाज शरम काके।

बोलव सब छाती ठठाके।।

मन के अहं वहं ला टोर।

मया मीत बानी मा लौ घोर।

बोले बर कोई झन छोवव....


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई


💐छत्तीसगढ़ी बोलव, लिखवा अउ पढ़व💐


छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के आप सबला बहुत बहुत बधाई

देवउठनी एकादशी अउ मांगलिक काज

 देवउठनी एकादशी अउ मांगलिक काज


                 मां भारती के कोरा मा सुशोभित छलकत धान के कटोरा 'छत्तीसगढ़' अपन संस्कृति-संस्कार, परब-तिहार, बन-बाग, नदी पहाड़ अउ खनिज संपदा बर जाने जाथे। हमर देश भारत होय या फेर हमर राज छत्तीसगढ़, दूनो के परब तिहार, संस्कृति संस्कार अउ उछाह मंगल के जम्मो कारज खेती किसानी के अनुसार चलथे। कतको झन मन प्रश्न करथें, कि कोनो भी मांगलिक काज देवउठनी एकादशी के बाद ही काबर करना चाही? कतको विद्वान में एखर कई कारण बताथें, फेर मूल कारण खेती किसानी अउ मौसम ही आय। देवउठनी एकादशी जेला छत्तीसगढ़ मा जेठवनी के नाम से जाने जाथे। ये दिन ला छोटे देवारी के रूप मा घलो मनाये जाथे। मनखें मन पूजा अर्चना, दान धरम करत फाटाका फोड़थें अउ खुशी मनाथें। ये दिन कतकोन गांव मा मातर होथे, गोधन ऊपर सोहाई बन्धाथे ता कतकोन कोती मड़ई मेला भराथे। संझा मनखें मन अपन तुलसी चौरा के तीर मा सुघर मंडप बनाके कुसियार अउ तोरन ताव ले सजाके, रिगबिग रिगबिग दीया जलाके भगवान सालिग्राम अउ तुलसी दाई के बिहाव के नेंग करथें। पूजा पाठ के बाद घरों घर प्रसाद दिए जाथे। वइसे तो कतकोन मन हर एकादशी के उपास रथे फेर देवउठनी तिहार के उपास के अलगे महत्ता हे। कथे ये उपास रहे ले सबे उपास के पुण्य प्रताप मिल जथे। महाभारत काल मा महाबली भीम हा घलो एकमात्र इही एकादशी के उपास रिहिस, जेखर ले प्रसन्न होके, भगवान विष्णु हा ओखर नाम ले एक अलग तिथि मा भीमसेन एकादशी व्रत अउ व्रत करइया मन ला विशेष पुण्य प्राप्ति के वरदान दिस। पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के चार मास के योगनिद्रा ले जागथे, ते पाय के ये तिहार मनाए जाथे। भगवान विष्णु के जागे के एक अउ कथा मिलथे- मुर नामक एक दानव हा भगवान विष्णु ला सुते देख ओखर ऊपर हमला कर देथे, जेखर ले विष्णु जी के निद्रा भंग हो जथे अउ 11 इंद्री ( 5 कर्म इंद्री+5 ज्ञान इंद्री+मन) के तेज ले एक दिव्य देवी उत्पन्न होथे, जे वो दानव के वध करथे। ये दिन घरों घर होवइया तुलसीविवाह के घलो पौराणिक कथा हे। एक समय रानी बृन्दा के सतीत्व के कारण ओखर पति राजा जलन्धर बहुते शक्तिशाली हो जथे, अउ अपन शक्ति ले देव अउ ऋषि मन ला सताएल लग जथे, ओखर वध बृन्दा के सतीत्व के कारण कोई नइ कर सकत रहय, ते पाय के भगवान विष्णु हा लोकद्धार बर छलपूर्वक रानी बृन्दा के सतीत्व ला भंग करके, जलन्धर के संहार करथे। जब ये बात बृन्दा जानथे ता भगवान विष्णु ला पथरा होय के श्राप दे देथें, अउ खुद सती हो जथें। उही पथरा सालिग्राम के रूप मा आजो पूजे जाथे, अउ रानी बृन्दा जेन जघा अपन आप सती करे रिहिस वो राख ले तुलसी के जन्म होथे। तब ले तुलसी अउ भगवान सालिग्राम के विवाह के चलागन हे। 


                आसाढ़ के देवशयनी एकादशी ले लेके कातिक के देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु जब योगनिद्रा मा रथे, ता पृथ्वी के पालन पोषण भगवान महादेव सपरिवार करथें। ते पाय के आसाढ़, सावन, भादो अउ कुवाँर भर उही मन ला सुमिरथन। चाहे पोरा तिहार मा नन्दी महाराज होय, नांगपांचे मा नांग देवता होय, सावन सोममारी मा शंकर जी होय, तीजा मा पार्वती होय, गणेश चतुर्थी मा गणेश जी होय या फेर नवरात्रि मा मां भगवती। देवउठनी के बाद भरण पोषण के काज फेर भगवान विष्णु अपन हाथ मा  ले लेथें अउ जम्मों प्रकार के उछाह  मंगल के काज होएल लगथे। उछाह मंगल के काम देवउठनी के बाद होय के एक अउ महत्वपूर्ण कारण हमर कृषि परम्परा आय। काबर कि चतुर्मास(चौमास) भर बादर ले पानी बरसथे, घर-खेत, गली-खोर जम्मो कोती चिखला रथे, आदमी मन आये जाये मा असहज महसूस करथें, संगे संग खेती किसानी के बूता घलो चरम मा रथे अउ बरसा घरी जर बुखार के घलो डर रहिथे, एखरे सेती कोनो भी जुड़ाव अउ उत्सव के काज मा सब सपरिवार शामिल नइ हो पाए अउ व्यवस्थापक ला सहज व्यवस्था करे मा घलो कतको  दिक्कत होथे। ते कारण देवउठनी के बाद के समय ला अइसन काम बर  चुने जाथे। ये समय पानी बादर लगभग बन्द हो जथे, गुलाबी ठंड जनाय बर लगथे अउ धान पान के बूता घलो उसरे बर लग जथे। अइसन बेरा मा बर बिहाव, छट्ठी बरही, पूजा पाठ, भगवत रमायन, मड़ई मेला सब उत्साह अउ मंगल ले सबके उपस्थिति मा सुघ्घर ढंग ले निर्बाध सजथे। 


                       ये दिन घर भर भगवान के भक्ति मा लीन रथे। बिहना स्नान ध्यान के साथ पूजा पाठ चालू हो जथे। घर ला सुघ्घर रंगोली अउ तोरण ताव मा सजाये जाथे। आमा पाना अउ गन्ना के मंडप बनाये जाथे। घर के कतको झन उपास रथे अउ दीया जलाके, मेवा मिठाई, फरा चीला अउ नरियर के प्रसादी चढ़ाथें। ये दिन आयुर्वेद में विशेष स्थान रखइया तुलसी के पौधा लगाए अउ जतन करे के संकल्प लिए जाथे। कथे जे घर तुलसी के पौधा हे वो घर मा सुख समृद्धि अउ शांति रहिथे अउ इही सुख समृद्धि, शांति अउ दया मया के पावन परब आय देवउठनी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-मया

 गीत-मया

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फोकटे-फोकट मया,बदनाम होथे रे।

बुझथे  बाती ; दीया के , नाम होथे रे।


ये  झेख्खर  टूरा , लफरहा  मन।

बन -  बदऊर  के ,  थरहा   मन।

गोल्लर कस  मनखे , हरहा मन।

मया के रद्दा रेंगइया,अड़हा मन।

चढ़ मया के छानी म,आगी रुतोथे रे।

फोकटे-फोकट मया,बदनाम होथे रे।


जाने नही , पिरीत  तभो।

गाथे मया के, गीत तभो।

दू  दिन  घलो  नइ   चले,

बदथे मितानी-मीत तभो।

सोरियाथे मयारू ल,जब काम होथे रे।

फोकटे-फोकट मया , बदनाम होथे रे।


मया तो जग ल ,देखाय के आय।

कोनहा म थोरे, लुकाय के आय।

मया करइया ल,सब कोनो भाथे,

मया  बाँटे अउ , बताय के आय।

मया सबो बर होथे,मया धाम होथे रे।

फोकटे-फोकट मया,बदनाम होथे रे।

             जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                          बालको(कोरबा)

                          9981441795

तह विकास के-हाकलि छंद

 तह विकास के-हाकलि छंद


तह विकास के पोला हे।

सब खुँट विष के घोला हे।।

बरत गाँव घर टोला हे।

उसलत बारी कोला हे।।


खतरा तोला मोला हे।

बम बारुद गन गोला हे।।

गिरे फसल मा ओला हे।

सुख मासा अउ तोला हे।।


नेता मन बड़बोला हें।

जनता निच्चट भोला हें।।

नश्वर माटी चोला हे।

तब ले नखरा सोला हे।।


इक देखावत रोला हे।

घर भीतर हिंडोला हे।।

इक के हाथ फफोला हे।

चिरहा खीसा झोला हे।।


सत के निकलत डोला हे।

संगी सगा सपोला हे।।

मोला मोला मोला हे।

बरत जिया मा होला हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

किसम किसम के धान(सार छंद)*

 *किसम किसम के धान(सार छंद)*


धान कटोरा हा धन धरके, धन धन अब हो जाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।

देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।

लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।

सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।

मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।

मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।

चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।

बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।

बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।

पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।

आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।

समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।

कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।

साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।

स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।

गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।

बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।

कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।

कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।

कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली

रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।

सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।

जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।

जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।

सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।

गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।

रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।

तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।

गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।

दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।

हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।

लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।

कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची ललचाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे

 लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे


मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।

मार काट होवत हे भारी, रोज रक्त बोहावत हे।।


मया बाप बेटा मा नइहे, कलपत हे महतारी हा।

भाई भाई लड़त मरत हे, थकगे टँगिया आरी हा।

धरम जात पद पइसा खातिर, कतको मर खप जावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


मोल भुलाके मनुष जनम के, मनखे बनगे बजरंगा।

मया प्रीत के गाँव शहर मा, फैलावत हावय दंगा।।

उफनत हावय रिस मा कोनो, ता कोनो उकसावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


सरग नरक अउ पाप पुण्य ला, कहिके ढोंग दिखावा सब।

बिना डरे काटत भूँजत हे, बनके मिर्मम लावा सब।

शिक्षा हे संस्कार सिरागे, ये कलयुग मतलावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Monday, 3 November 2025

तह विकास के-हाकलि छंद

 तह विकास के-हाकलि छंद


तह विकास के पोला हे।

सब खुँट विष के घोला हे।।

बरत गाँव घर टोला हे।

उसलत बारी कोला हे।।


खतरा तोला मोला हे।

बम बारुद गन गोला हे।।

गिरे फसल मा ओला हे।

सुख मासा अउ तोला हे।।


नेता मन बड़बोला हें।

जनता निच्चट भोला हें।।

नश्वर माटी चोला हे।

तब ले नखरा सोला हे।।


इक देखावत रोला हे।

घर भीतर हिंडोला हे।।

इक के हाथ फफोला हे।

चिरहा खीसा झोला हे।।


सत के निकलत डोला हे।

संगी सगा सपोला हे।।

मोला मोला मोला हे।

बरत जिया मा होला हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कानून के डर

 कानून के डर


जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


खास आदमी, कानून कायदा ला नइ माने।

पइसा पहुँच के दम मा, घुमथे सीना ताने।।

धन बल ज्ञान गुण के, रोब झाड़त दिखथे।

अइसन मनके आघू, सबे चीज हा बिकथे।

ये मन सब घातक हें, साँप बिच्छू घून ले।

जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


पढ़े लिखे मनखें के, अंतस मा कोइला भरगे।

दया मया धरम करम, पाके पना कस झरगे।।

मनखें अब सिर्फ डरथे, कुदरत के कानून ले।

आसाढ़ के बाढ़, अउ टघलत मई जून ले।।

विकास खेलत हे होली, मनखें के खून ले।

जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


कथे झूठ सच पकड़े के, नवा नवा मशीन हे।

तभो जज वकील, अदालती खेल मा लीन हें।।

कानून के लंबा हाथ, आम जन के गला नापथे।

खास के आघू मा, साहब सिपइहा मन काँपथें।।

मनखें दूर भागत हें, धरम करम पाप पुण्य ले।

जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

सर्दी मा सब्जी भाजी-कुकुभ छंद

 सर्दी मा सब्जी भाजी-कुकुभ छंद


अबक तबक सब्जी सस्ताही, सोचत हन सब सर्दी मा।

फेर कहाँ बखरी बारी हे, नवयुग गुंडागर्दी मा।।


खुलत कारखाना हे भारी, टेकत महल अटारी हे।

बनत हवै रोजे घर कुरिया, जिहाँ न बखरी बारी हे।

उपजइया गिनती के दिखथें, हवैं खवइया बर्दी मा।।

अबक तबक सब्जी सस्ताही, सोचत हन सब सर्दी मा।


सबे चीज के किम्मत बढ़गे, बढ़गे महिनत बेगारी।

बिचौलिया के हाथ लगे बिन, बेंचाये नइ तरकारी।।

माटी संग सनइया कम हें, घुमैं मनुष सब वर्दी मा।

अबक तबक सब्जी सस्ताही, सोचत हन सब सर्दी मा।


फसल समय के बोवाये हे, परिया खेती बाड़ी हे।

फुदरे उद्योगी बैपारी, फँसे किसनहा गाड़ी हे।।

आज जमाना अइसन हावय, कल बितही बेदर्दी मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Friday, 17 October 2025

माटी ले जुंड़बोन मितान

 माटी ले जुंड़बोन मितान

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नखरा नवा जमाना के,

मनखे ल चुरोना कस कांचही |

माटी ले जुंड़बोन  मितान,

तभे जिवरा  बांचही |


फिरिज टीभी कम्पूटर सस्तात हे,

मंहगात हे चांऊर दार |

सपना म घलो सपनाय नही खेती,

बेंचात हे खेतखार |

उद्धोग ढॉबा लाज बनत हे,

टेकत हे महल अटारी|

स्वारथ म रौंदाय भूंईया,

नईहे कोनो संगवारी |

पेट म मुसवा कुदही,

त कोन भला नांचही........ |

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |


खेती आज बेटी होगे,

भात नईहे कोनो |

चाहे देखावा कतरो बखाने,

फेर अपनात नईहे कोनो |

करजा म किसान ,

कलहर-कलहर के अधमरहा होगे |

मेहनत भर ओखर तीर ,

ब्यपारी तीर थरहा होगे |

भूख मरही किरसी भूंईया भारत,

म बिदेसिया घलो हांसही.......|

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही  |


तंहू हस नंवकरी म,

मंहू हंव नंवकरी म,

पईसा हे ईफरात |

फेर दुच्छा हे हंड़िया,

दुच्छा हे परात |

कल कारखाना अंखमुंदा लगात  हे |

दार-चांउर छोंड़,आनी-बानी के चीज बनात हे|

हाय पईसा-हाय पईसा होगे,

का दुच्छा पेंट पईसा ल चांटही....?

मांटी ले जुंड़बोन मितान,

तभे जिवरा बांचही |

            

              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

भूलागेन

 @@@@भूलागेन@@@@

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संडे   मंडे   के     चक्कर   म,

एक्कम      दूज      भूलागेन।


दुनिया ल   भरमात   भरमात,

अपन तन  के  सुध  भूलागेन।


जिनगी  भर लकर-धकर करेन,

फेर  ठंऊका बेरा सुत भूलागेन।


गंजहा-मंदहा के संगत म पड़के,

अमरित कस दही दूध भूलागेन।


तंऊरे नइ जानन तभो देखावा म,

बीच   दहरा   म   कूद  भूलागेन।


अपन  अपन  कहिके  , जपन लगेन,

फेर का अपन ए,तेला खुद भूलागेन?


मनखे     होके    ,  मूरख    बनगेन,

सियान के बताय,बने बूध भूलागेन।


           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

               9981441795

नइ जाने

 नइ जाने

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मुड़ म  नचईया मन, पाँव   नइ    जाने।

उजाड़ करईया मन,सहर-गाँव नइ जाने।


फोकटे-फोकट कल्हरत हे,मारे-काटे कस,

जेन  जिनगी   म   कभू  , घाव  नइ जाने।


अइसन   मनखे   के  ,  भाव   बाढ़े   हे,

जेन   तेल  नून के घलो ,भाव नइ जाने।


वो   मनखे    जरत   हे   ,  कायरी    म,

जेन कभू आगी-बुगी के , ताव नइ जाने।


जेन मरखंढा बन,एला-ओला मारत फिरथे,

वो  मनखे  कभू मया के ,  छाँव नइ जाने।


नांव   कमाय  म  ,  उमर    गुजर   जथे,

जेन नांव बोर दे,वो कभू  नांव नइ जाने।


          जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

               9981441795

पुस्तक परिचय-माटी के सोंध*

 *पुस्तक परिचय-माटी के सोंध*


                    राजकुमार चौधरी रौना जी के पहली काव्य संग्रह, माटी के सोंध, शीर्षक अनुरूप माटी के महक ला जन जन के अन्तस् मा समोवत हे। आज ईटा, पथरा अउ कांक्रीट के मोह मा मनखे माटी ले दुरिहावत हें, ता उँखर भाग मा माटी के सोंध कहाँ रही। अइसन समय मा जेन माटी ले जुड़े कलमकार होथें, तेन मानव समाज के बीच माटी के महक ल महाकाय के उदिम करथें। समाज ला बताथें माटी के महत्ता, श्रम साधना, तप- जप संग वो समय के गुण अउ दोष। वइसने आशा बाँध के न सिर्फ देखे-सुने बल्कि जीये जिनगी के रंग ला अपन अनुभव के पाग मा पाग के, जन मानस के बीच श्री राजकुमार चौधरी"रौना" जी परोसे हे- अपन पहली छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "माटी के सोंध" मा। माटी के सोंध मा जिनगी के सबो रंग समाहित हे- चाहे सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक,सांस्कृतिक होय या फेर प्राकृतिक। मया पीरा, सुख दुख, छल कपट, भाव भजन, ऊँच नीच,शोषण, संस्कार, संस्कृति, धरम करम सबे के आरो चौधरी जी अपन कविता संग्रह मा लेय हे। नाँगर मुठिया, रापा कुदारी धरइया हाथ ला कलम धरे बर उंखर अन्तस् मजबूर करिस। मजबूर करिस देश काल के वस्तु स्थिति अउ सामाजिक राजनीतिक ताना बाना हा। डिग्री उही आय जेन किरदार मा झलके, चौधरी जी पढ़ई लिखई मा जादा डिग्री नइ ले हे, तभो जिनगी के पाठशाला मा बरोबर महिनत करे हे। तभे तो उंखर कलम ले "माटी के सोंध" जइसे अनमोल संग्रह सृजित होय हे। न सिर्फ कविता मा बल्कि गद्य के सबो विधा मा रौना जी बरोबर कलम चलाथे। रौना जी कवि, छंदकार, गीतकार,गजलकार के संगे संग व्यंग्यकार अउ कहानीकार के रूप मा घलो जाने जाथे। माटी के सोंध के बाद उंखर अन्य विधा के पुस्तक घलो पाठक बीच आ चुके हे। माटी मा उठइया बठइया, माटी मा खेलइया खवइया, माटी ले मया करइया, माटी ला महतारी मान के सेवा बजइया, माटी पूत चौधरी जी भला माटी के सोंध ले कइसे अंजान रही। उही महक ला,राजकुमार चौधरी जी बिखरे हे, अपन काव्य संग्रह मा।

              ता आवन उही काव्य संग्रह के भाव अउ कला पक्ष ले वाकिब होथन। रौना जी के काव्य संग्रह माटी के सोंध मा भाव पक्ष गजब सधे हुए हे, उंखर मन के भाव सीधा सीधा पुस्तक मा समाय हे। बिना लाग लपेट के अपन मन के बात ल बहुत ही बढ़िया ढंग ले ठेठ छत्तीसगढ़ी शब्द के संग जनमानस के बीच, रौना जी मन रखे हें। जइसे के घाव के पीरा देखावटी नइ होय, वइसनेच रौना जी के भाव हे, जे न सिर्फ तन बल्कि अंतर्मन के उद्गार आय। पुस्तक मा सिरजे जन्मो कविता मा रौना जी के व्यक्तित्व तको सहज झलकत हे, जिहाँ बने ला बने अउ गिनहा ला फरी फरी गिनहा केहे हे। शोषक के प्रति क्रोध अउ शोषित के प्रति दया रौना जी के सरल सहज व्यक्तित्व ला उकेरत हे। एक बानगी देखन--

*हाड़ा गोड़ा टोर के कमाये*

*फेर कभू नइ डपट के खाये*

*सिरतोन मा तोर हिस्सेदारी*

*लोभिया झपटिन हें तोर थारी*


               चाहे देश राज होय या पार परिवार बिना एकता के कखरो कल्पना नइ करे जा सके। फेर तोर मोर, जात पात आज मनखे ला खँड़त हे, एकता बर जोर देवत रौना जी कथें--

*मनखे के कहूँ एक धरम, एक जात होतिस*

*तब काबर कोनो बर, पर बिरान के बात होतिस*


                 रौना जी के कविता मा फुहड़ता, फैशन अउ देखावा कस नवा जमाना के कतको जिनिस बर विरोध के स्वर दिखथे, एखर मतलब ये नही कि रौना जी जुन्ना सोच के। अरे उहू का नवा जेन दवा के जघा अउ जहर बन जाये।चाहे नवा होय या फेर जुन्ना हर बने चीज के सपोट अउ हर बुरा चीज के विरोध रौना जी मन खुलके करे हे। पहली आदि मानव मन तो नग्न ही रहय, फेर जब धीरे धीरे विकास करत गिन तब उन मन कपड़ा लत्ता पहिरत गिन। आज यदि नग्नता फेसन आय ता आदि मानव मन  ला का कहिबों? लोक लाज सिरिफ़ नारी मनके गहना नोहे पुरुष मन ला घलो मर्यादा मा रहना चाही।

*मुड़ी ला ढाँक नोनी, मरजाद बाँचही*

*फेसन के घुँच दुरिहा,तोर लाज बाँचही*


             मनखे के सोहलियत बर खोजे अविष्कार, मनखे के ही गल के फाँस बनत जावत हे, चाहे बम बारूद होय, चाहे मोटर कार होय चाहे प्लास्टिक झिल्ली, ये सब आज प्रदूषण बढ़ावत हे, अउ जिनगी के बाढ़त बिरवा ला ठुठवा करत जावत हे।

*फसल खेत के ठुठवा हे, सब खागे कीरा इल्ली*

*साठ बरस मनखे जिही अउ सौ बरस के झिल्ली*


             कथे कि कवि के कलम देखे बात ला लिखथे, फेर रौना जी के कलम जीये जिनगी ऊपर चले हे। चाहे घाव होय या अभाव सब ला झेलत,दाई ददा अउ बड़का मन के बात ला धरत, रौना जी सतत आघू बढ़िन--

*झाँझ झोला तन ताला बेली बरजत हे महतारी*

*सीथा कमती पसिया जादा, चटनी फूल अमारी*


            रौना जी के स्वाभिमानी सुभाव उंखर कविता मा सहज दिखथे। संगे संग यहू बात लिखथें कि,बखत पड़े मा अपन हक के बात करे मा तको नइ पाछू हटना चाही, माने बैरी हितवा देखत स्वाभिमानी संग अभिमानी तको होना चाही। 

*मुड़ी गड़िया के रबे, ता चेथी ला मारही*

*छाती अँड़िया के रबे, बैरी हा भागही*


            रौना जी के कविता संग्रह"माटी के सोंध",मा वर्तमान, भूत अउ भविष्य ला समेटे देश राज गांव के चिंतन हे, साज सिंगार के सुख स्वप्न हे, महँगाई भूखमरी बेरोजगारी अकाल दुकाल के दुख दरद हे, मिटावत,भ्रस्टाचार,मंद मउहा,जुआ चित्ती, दहेज कस बुराई के जहर हे, ता पेड़ प्रकृति,संस्कृति अउ संस्कार के संसो तको हे। मनके के सबे मनोभाव ला रौना जी शब्द देहे। भाव पक्ष के दृष्टि ले रौना जी के ये संग्रह बनेच पोठ हे।


*कला पक्ष*--

"माटी के सोंध" मा अलंकारिक छटा सहज समाय हे। ज्यादारत अनुप्रास अलंकार दिखथे। जइसे

*छेकानुप्रास*

तोर तिसर आँखी ला उघार।

सुरता कर लव सुरवीर के।

मान माटी के राखे बर।

चाल चिन्हारी।

लाली लगाही।

सुरता हे सुभाष के नारा। आदि आदि


*वृत्तानुप्रास*

हितवा के हिनमान होवय।

परही पाछू पछताना।

कतका करम के गीत।

हर हाथ हा धरही।

मैं मिल जाहूँ माटी मा।

बल बैरी के बढ़े। 

दुरिहा ले देखे दुख देवइया।

महल मिले मोला।आदि आदि


*उपमा/रूपक अलंकार*

नील गगन।

सुआ पाँखी हरियर धरती।

ऊँच पहाड़ कस ऊँच।

चंद्र खिलौना।

आस के झुलनी मा झूलत हन।

गिल्ली बाँटी भँवरा लइका के भूख सरी।


*यमक अलंकार*

माटी के मान ला माटी करथें।


*मानवीकरण अलंकार*

धरती ओढ़े कार्तिक मा कथरी सोन सोन के।

मैं ठुड़गा मुस्कावत हँव।

सुरुज देव बउराय।

परसा देख ठेही मारे।

शहर जगमगाये गांव ढिबरी बारत रहिगे।


*पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार*

गली-गली,भाई-भाई,नेता-नेता, महर-महर,बाढ़त-बाढ़त, तिनका-तिनका, खाँव-खाँव।


*अतिश्योक्ति अलंकार*

अंगरा कस बरसहूँ।

खरतिहा बन अंगद कस।


*विरोधाभाष अलंकार*

मूंदे आँखी मा रूप रंग।

बिन फुलवा भौरा के बगिया


*चिपके/युगल शब्द*

पास-परोस, पाँव-पलेगी,लाली-गुलाली, संगी-जँहुरिया, लकर-धकर, घर-बार,सज-धज।


*मुहावरा,हाना*

चुरवा भर पानी मा डूब मर।

जेखर लाठी तेखर भैंस।

नाव अमर कर।

कानून हाथ मा लेना।

मेंछा टेंड़े मजा उड़ावै।

लबरा के नांगर नौ नब्बे।

जोगनी चाबे अंधियार ला।

जियत मा जुल्मी मरे मा सोरियाय।

आँखी पनियाना।

जरे मा नून डारे।

चूल्हा मा गय। 


*ठेठ छत्तीसगढ़ शब्द*

ओथराये, पोटारे, चाकर,पातर, ऑंखर, टरक, संडेबा,लुवाठी, सथरा, टेहरावत, मेड़रावत, कनकरहा, अनचिन्हार, घोरनाहा, सधनोहरा, खुरखेत, दनाक।


*समनार्थी शब्द*

लहू-रकत, रद्दा-बाट, संसो-फिकर


            ये सब उदाहरण के अलावा अउ कतको कन उदाहरण पाठक मन पढ़त बेरा मिल जही,चाहे उदाहरण भावपक्ष बर होय या फेर कलापक्ष बर। रौना जी के,कलम अउ व्यक्तित्व के रौनक उंखर काव्य संग्रह मा बरोबर बने हे। उंखर कलम ले कुछु नइ छूटे हे। ये संग्रह मा कुछ जघा लिखावट मा त्रुटि हे अउ कुछ जघा वचन दोष घलो दिखथे। जे प्रकाशक डहर के तको खामी जनाथे, प्रकाशक मण्डल मा छत्तीसगढ़ी के जानकार सदस्य होना चाही, नही ते अइसन त्रुटि दिखते रही। कवि या लेखक कतको बेर पढ़े अपन गलती ला नइ पकड़ सके। खैर येला मैं गलती नही,बल्कि टंकन त्रुटि मात्र कथों। रौना जी के ये संग्रह ला सब ला पढ़ना चाही,अउ माटी के सोंध ला अन्तस् मा उतारना चाही।रौना जी ला अइसन उत्कृट कृति बर बारम्बार बधाई। आघू तको अइसने सरलग नवा नवा विधा मा सृजन होवत रहय।


पुस्तक नाम-माटी के सोंध(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

कृतिकार-राजकुमार चौधरी रौना

प्रकाशक-विचार विन्यास सोमनी,राजनांदगांव

प्रकाशन वर्ष-2016

मूल्य-50 रुपये मात्र

आवरण सज्जा-डॉ दादूलाल जोशी"फरहद"

कुल कविता-55

भूमिका लेखन-डॉ मुकुंद कौशल जी, डॉ पीसी लाल यादव जी,दादू दयाल जोशी"फरहद"


परिचयकर्ता

जीतेंद्र कुमार वर्मा"खैझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बैपारी- सार छंद

 बैपारी- सार छंद


ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।

जब किसान के महिनत आथे, सबे चीज बोहाथें।।


अब किसान कर नइहे कोठी, ना पउला ना पैली।

उपज जाय गोदाम खेत ले, भरा भरा के थैली।।

औने पौने दाम थमाके, गरी फेंक ललचाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


आलू मुनगा मेथी धनिया, का बंगाला भाँटा।

बैपारी कर सोना बनथे, अउ किसान कर काँटा।।

बिकै अन्न फर भाजी पाला, बिचौलिया के हाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


कई चीज मा करैं मिलावट, अउ काला बाजारी।

नियम धियम शासन राशन ले, बड़का हें बैपारी।।

अधिकारी अउ नेता चुप हें, आम मनुष गरियाथें।

ताग ताग के बैपारी मन, कीमत बड़ पा जाथें।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Tuesday, 30 September 2025

जीभ लमाये के का जरूरत

 जीभ लमाये के का जरूरत


जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।

शोभा देय नही चम्मच हा, कलम दवात साथ मा।।


मंच माइक सम्मान के खातिर, कलमकार नइ भागे।

कला गला के दम मा छाये, उही शारद पूत लागे।।

शब्द जोड़ के फूल बनालव, काँटा वाले पाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


ताकत हौ मुँह कखरो काबर, जानव कलम के ताकत।

ये दुनिया के रथ ला आजो, साहित्य हावय हाँकत।।

मुड़ी उँचाके कलम चलावव, झन अरझो गेरवा नाथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


सूर कबीरा तुलसी जायसी, आजो अजर अमर हे।

जीभ लमाके नाम कमइया, नइ बाँचे स्वार्थ समर हे।।

सेवा मान के साहित गढ़लव, सजही ताज माथ मा।

जीभ लमाये के का जरूरत, हे कलम जब हाथ मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday, 13 September 2025

हिंदी दिवस

 हिंदी दिवस


घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1

कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,

हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।

साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,

महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।

प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,

उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।

साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,

भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।1।।।

               2

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,

आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।

माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,

सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।

भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,

चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।

सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,

भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।2।

                3

सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।

गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।

समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।

पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।

ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।

निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।

नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।

बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़


हिंदी दिवस की आप सबको सादर बधाई


हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाँखा म अन्तर्सम्बन्ध


          जइसे पानी ढलान कोती बहिथे, उसने भाषा घलो सरलता ल धरत जाथे। अब हिंदीच ल ले लौ संस्कृत- पाली- प्राकृत- तेखर बादअपभ्रंस होवत हिंदी। जइसे सरल सहज मनखे ल सबो चाहथे, वइसने भाषा के सरलता घलो ओखर अपनाये के कारण बनथे। पूर्वी हिंदी के अंतर्गत हमर छत्तीसगढ़ी भाषा आथे, जेमा अवधी, बघेली अउ हमर छत्तीसगढ़ी भाषा मिंझरे हे। ब्राम्ही लिपि ले उपजे जइसे हिंदी हे वइसने छत्तीसगढ़ी घलो हे। आज जब हमन हिंदी के बात करथन, तब आधुनिक युग के पहली के कवि सुर, तुलसी, कबीर, जायसी, केशव, बिहारी जैसे कवि मनके कालजयी रचना घलो हमर आँखी म झुलथे, जेमन के भाषा अवधी, ब्रज के साथ साथ कई ठन मिंझरा भाषा बोली रहिस। आधुनिक युग म तो ठेठ खड़ी बोली म जबर रचना होइस, जेमा भारतेंदु, पन्त, निराला, प्रसाद,महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जइसे कतको कवि लेखक मन अपन जीवन ल खपा दीन। मोर कहे के मतलब हे कि हिंदी के समानांतर ही ब्रज अउ अवधी अपन स्थान रखथे, त छत्तीसगढ़ी काबर नइ रखे? जबकि हमर भाँखा घलो लगभग हिंदी के सबे गुण ल समेटे हे।  हो सकथे हमर साहित्य कमसल होही, या फेर ब्रज अउ अवधी कस ऊंचाई नइ पाइस होही। फेर हमर साहित्य घलो पोठ हे, कतको उत्कृष्ठ साहित्य हमर पुरखा कवि मन लिखे हे अउ आजो लिखावत हे, अइसन उदिम होवत देख इही कल्पना मन म आथे कि वो दिन दूर नइहे जब छत्तीसगढ़ी घलो ब्रज, अवधी के साहित्य कस हिंदी म मिल जही। 


        अब बात हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अन्तर्सम्बन्ध के हो जाय। दूनों भाँखा के महतारी एके आय(ब्राम्ही), दूनो के रंग रूप, चेहरा- मुहरा एक्के जइसे हे, दूनो सगे बहिनी बरोबर हे। आजकल के कवि लेखक मन हिंदी वर्णमाला के जम्मो आखर ल बउरत घलो हे, जे बड़ खुसी के बात आय। *आन राज के कई मनखे मन हमर छत्तीसगढ़ी के बारे म कहिथे कि हिंदी ल बिगाड़ दव त छत्तीसगढ़ी हो जही* का सच म अइसने हे???? आपो मन कस मोरो न हे। येखर ले बचे बर छत्तीसगढ़ी के पाँच परगट शब्द ल बउरे ल लगही अउ हिंदी ल तोड़ मरोड़ करे ले बचेल लगही। हमर भाँखा के व्याकरण घलो हिंदी ले पहली बने हे, जेन हम सब बर गर्व के बात ये। एक बात अउ *जइसे मैं उप्पर म परगट शब्द लिखेंव, जे हिंदी के प्रगट के अपभ्रंश ये। परगट कहे म घलो अर्थ म कोनो प्रकार के भटकाव नइ लगत हे, अउ ये छत्तीसगढ़ म पूर्णतः चलन म घलो हे। अइसने कई ठन शब्द हे, जे हिंदी के अपभ्रंश के रूप म हमर भाँखा म रचे बसे हे ,अउ चलत घलो हे। जइसे ह्रदय(हिरदे),उम्र(उमर), दर्द(दरद), बज्र(बजुर), तीर्थ(तीरथ), छतरी(छत्ता)त्यौहार(तिहार) आदि आदि। कई ठन शब्द ल चिटिक बदलाव के साथ घलो बउरथन, जइसे व्याकुल(ब्याकुल), विनास(बिनास), व्रत(बरत), पर्व(परब), व्यवहार(ब्यवहार), वरदान(बरदान), वंदन(बंदन), वजन(बजन), वन(बन) आदि आदि। फेर येला देख के कतको झन कहि देथे की छत्तीसगढी म "व" नइ होय,, तेहा नइ जमे। पहली चलत घलो रिहिस हे, फेर ये बात गलत हे की 'व' ल लिखेच नइहे। होवत , बोवत, खोवत, पोवत काखर शब्द ये,,,, हमरे न,, त कइसे "व" नइ होही। यदि पहली कस(व बर ब लिखबों) आजो करबों त वर(दूल्हा) ल बर कहिबो। तब तो पेड़ वाले बर, काबर वाले बर अउ दूल्हा वाले बर, सब एक्के म जर बर जही। आज के लइका मनके रामेश्वरी, जागेश्वरी, रामेश्वर, ईश्वर, श्रवण, आदि घलो होथे, तिखर मरना हो जही। मोर एके इशारा हे अर्थ संगत शब्द ल बउरे जाय, अउ निर्थक या जेन वो संज्ञा ल बदल देय ओखर ले परहेज करना चाही। जइसे हिंदी म प्रकृति अब येला परकिरिती, प्रकार ल परकार, प्रकास ल परकास, क्षमा ल छिमा,शक्कर ल सककर, रायगढ़ ल रइगढ़,आदि आदि। ये मन थोड़ीक भ्रम पैदा करथे, तेखर सेती येमा चिंतन जरूरी हे अउ सही अउ स्पस्ट शब्द के माँग आज होवत घलो हे।*


       हिंदी के आखर अउ शब्द छत्तीसगढ़ी म घुरे हे,काहन या फेर  छत्तीसगढ़ी के शब्द मन हिंदी म घुरे हे काहन,,, येला सिद्ध करे म हमला कोनो ल नइ घूरना चाही। काबर भाँखा गतिमान हे, पानी असन स्वरूप बदलत जथे, कखरो पोगरी घलो नोहे। *एक छत्तीसगढिया मनखे घलो हिंदी लगभग समझ जथे, अउ हिंदी वाले छत्तीसगढ़ी, त येखर ले बढ़के अउ का अन्तर्सम्बन्ध देखन* हिंदी वाले घलो सहज छत्तीसगढ़ी पढ़ सकथे,अउ छत्तीसगढ़ी वाले घलो आखर ज्ञान के बाद हिंदी। काबर के पहली घलो केहेंव दुनो के रंग, रूप, चेहरा-मुहरा एके हे दुनो के *क* एक्के हे दुनो के *ट* एक्के हे। हिंदी के पिक्चर ल घलो छत्तीसगढिया मन मन लगाके देखथे अउ समझथे ,अब छत्तीसगढ़ी के पिक्कर आन कोती काबर नइ देखे जाय येखर बर खुद ल सोचेल लगही। *ब्रज भाँखा ले हिंदी के शान बाढ़िस, अवधी भाँखा ले हिन्दी के शान बाढ़िस त छत्तीसगढ़ी भाँखा ले हिंदी के शान काबर नइ बाढ़ही*।खच्चित बाढ़ही फेर उसने साहित्य हमर बीच म आय उसने पठन, पाठन अउ वाचन होय अतकी विनती हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)

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गीत---हिंदी भाषा


हिंदी है हाँ हिंदी है जो, जोड़े हिंदुस्तान को।

हिन्दू को ईसाई को, सिक्ख और मुसलमान को।।


अक्षर अक्षर निर्झर जैसे, बहते हैं सबके मुख से।

अरमानो से उत्थानों से, जुड़ी हुई है सुख दुख से।

आसाओ की जोत जलाती, हरती हर अज्ञान को।

हिंदी है हाँ हिंदी है जो, जोड़े हिंदुस्तान को।।।


तुलसी की सुर मीरा की, पंत प्रसाद निराला की।

सारी दुनिया है दीवाने, गूँथे साहित्य माला की।।

जादूगरी हिंदी की ऐसी, जो खीचें सारे जहान को।

हिंदी है हाँ हिंदी है जो, जोड़े हिंदुस्तान को।।।


अपनो की भाषा है हिंदी, स्वप्नों की भाषा है हिंदी।

मेरी भी आशा है हिंदी, तेरी भी आशा है हिंदी।।

मिले राष्ट्र भाषा का दर्जा, आये सुकूँ तब जान को।

हिंदी है हाँ हिंदी है जो, जोड़े हिंदुस्तान को।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday, 24 August 2025

छत्तीसगढ़ी गीत अउ बालीवुड के गायक गायिका*

 *छत्तीसगढ़ी गीत अउ बालीवुड के गायक गायिका*


                छत्तीसगढ़ अपन संस्कृति,संस्कार, बन, नदिया, पहाड़, खनिज, खेल,खेती किसानी, साहित्य,समाज अउ गीत संगीत के दम मा दिनों दिन वैश्विक पटल मा छावत जावत हे। नवा राज बने के बाद सरलग विकास के रद्दा मा रेंगत हे। आखिर भारत के ह्रदय के रूप मा विख्यात मध्यप्रदेश के एक चानी छत्तीसगढ़(ह्रदय के टुकड़ा) कइसे सबके चहेता नइ रही। आज बात  करबों हमर राज के गीत संगीत मा बॉलीवुड के गायक गायिका मनके योगदान के बारे मा। वइसे तो हमर राज मा कतको सुर साज के धनी गायक गायिका हे, जिंखर सुमधुर आवाज सुबे शाम जम्मो छत्तीगढ़िया मनके कान मा मधुरस घोरत रहिथे, तभो कोई गीत ला कोनो नामी गायक गायिका स्वर देथे, ता ओखर का कहना। बॉलीवुड मा बतैर अभिनेता, अभिनेत्री, गीतकार, संगीतकार, नर्तक, निर्देशक, अउ कतको काम मा छत्तीसगढ़ के शक्स मन अपन स्थान बना चुके हे, अउ अभो अपन लोहा मनवावत हे। बॉलीवुड अउ छत्तीसगढ़ के बड़ जुन्ना नता हे, जे आजो सरलग निभत हे। छत्तीसगढ़ के पहली फिल्म कहि देबे संदेश(1965) मा भारत के मशहूर गायक रफी साहब अपन आवाज के जादू बिखेर चुके हे। छत्तीसगढ़ के पहली(कहि देबे सन्देश 1965) के अलावा दूसरा फिलिम(घर द्वार 1971) मा पूरा बॉलीवुड गीत संगीत मा दिखिन। एखर आलावा राज निर्माण के बाद घलो बॉलीवुड के महान हस्ती मन अपन स्वर ले छत्तीसगढ़ी गीत ला अमर करिन।बॉलीवुड के बहुत अकन गायक गायिका मन छत्तीसगढ़ी फिलिम अउ एलबम मा अपन आवाज देहे,आवन कोन कोन बॉलीवुड के गायक गायिका मन का का छत्तीसगढ़ी गीत गायें हें ,उंखर विस्तार ले चर्चा करिन-


1, *मोहम्मद रफी साहब*

रफी साहब ना सिर्फ भारत बल्कि पूरा विश्व मा अपन आवाज के जादू बिखेर चुके हे। उन मन  कतको अकन गीत कतको भाषा मा गायें हें। उंखर मुखारबिंद ले छत्तीसगढ़ी गीत घलो सुने बर मिले हे, जे हम सब छत्तीगढ़िया मन बर गर्व के बात आय। रफी साहब सन 1965 के छत्तीसगढ़ी फिलिम कहि देबे सन्देश अउ सन 1971 के फिलिम घर द्वार मा छत्तीसगढ़ी गीत गा चुके हे, जे आजो मन ला मोह लेथे।

*झमकत नदिया बहिनी लागे,पर्वत मोर मितान* (फिलिम कहि देबे संदेश, ये रफी साहब के पहली छत्तीसगढ़ी गीत रिहिस।)

*तोर पयरी के झनर झनर, जीव ला ले लेइस* (फ़िल्म कहि देबे सन्देश)

*मैना तही मोर मैना,आजा नैना तीर, आजा रे* (फ़िल्म कहि देबे सन्देश)

*गोंदा फुलगे मोर राजा, छाती ला मारे बाण* (फिल्म- घर द्वार)

*सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे, आजा जिवरा तीर आजा रे* (फ़िल्म घर द्वार)

ये दुनो शुरूवाती फिलिम मा हरि ठाकुर, हेमन्त नायडू राजदीप जइसन सशक्त गीतकार अउ रफी साहब, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, सुमन कल्यानपुर, मीनू पुरषोतम जइसन महान गायक, गायिका मनु नायक, मलय चक्रवती के महिनत, छत्तीसगढ़ी गीत संगीत के दुनिया मा आजो धूम मचावत हे।


2, *सुमन कल्याणपुर जी*

सुमन कल्याणपुर जी रफी साहब के संग कहि देबे सन्देश अउ घर द्वार फिलिम मा मुख्य गायिका रिहिन, उंखर गाये गीत- *झन मारो गुलेल, बाली उमर लरकइयाँ, सुन सुन मोर मया पीरा के संगवारी रे, मोर अँगना के सोन चिरइया नोनी* बेहद मनभावन हे। 

*मोर अँगना के सोन चिरइया वो नोनी, ये गीत ला फिल्मकार मन लता जी ला गवाना चाहत रिहिन, फेर समय अउ बजट के चलते सम्भव नइ हो पाइस, तेखर बाद मुबारक बेगम जी मन तैयार होगिन, पर गीत के एक शब्द "राते अँजोरिया" ला बार बार रिहर्सल के बाद घलो राते अँझुरियाँ केहे के कारण, अंततः सुमन जी ला ये गीत ऑफर होइस।*


3, *लता मंगेशकर दीदी जी*

सुर सम्राज्ञी लता जी  घलो अनेक भाषा मा कतको अकन अमित गीत गाइन, जेखर पार पाना असम्भव हे। साक्षात सुर साज के देवी लता जी के मुख के छत्तीसगढ़ी गीत निकलना छत्तीसगढ़ वासी मन बर वरदान बरोबर हे। सन 2005 मा भकला फिलिम मा लता दीदी मन एक विदाई गीत *(छूट जाही अँगना अटारी)* गाये रिहिन, जे आजो बर बिहाव के बेरा खूब बजथे। लता जी ये गीत के एवज मा घलो कुछु नइ ले रिहिस, गीतकार मदन शर्मा जी के योगदान घलो अविस्मरणीय हे। लता जी मन छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग के एक टाइटल सांग घलो गाइन हे। कहि देबे सन्देश मा विदाई गीत, फिल्मकार मन लता जी ला सन 1965 मा गवाना चाहत रिहिन, पर संयोग ले 2005 मा लता जी मन अंततः भकला फिलिम मा एक दूसर विदाई गीत गाइन।


4, *सोनू निगम जी*

सोनू निगम जी के जतका छत्तीसगढ़ी  गीत सुने बर मिलथे, ओला देखत अइसे लगथे कि, बॉलीवुड गायक गायिका मन मा सोनू निगम जी मन छत्तीसगढ़ी मा सबले ज्यादा गीत गाये हे। उन मन खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय ले संगीत के शिक्षा घलो लेहे।उंखर गाये 20 ले घलो ज्यादा गीत हे, कुछ एलबम अउ कुछ फिलिम मा घलो ले गेहे। सोनू निगम जी के कुछ सुपरहिट छत्तीसगढ़ी गीत-


*तोर नथनी के मोती रे, मारे टूरा मन ला गोंटी रे।*

*तैं आगास के बन जा सुरुज।*

*ना धरती मा हे कोनो, ना कोनो आगासे मा।*

*छुनुर छुनुर पैरी बाजे।*

*गोरा बदन मा लाली चुनरिया, उड़ा देथे मोर निदिया।*

*कारी कजरेरी गोरी, झूम के नाचे रे।*

*तोर नाम ला सुनके करौंदा।*

*टूरी निकले हे सज सँवर के रे, येला लाज नइ लागे।*

*ऐ वो जवैया का नाम।*

*मोर प्रेम प्रसंग मा।*

*दौना के पान ला।*

*ऐ हँसनी, ऐ रागिनी।*

*मोर मैना मंजूर।*

*तैं हलो हलो केहे।*

*मोर सोना चाँदी हीरा रे।*

*जब ले देखेंव दिल मा।*

*तोर पाँव मा काँटा गड़ जाही, गोरी धीरे धीरे रेंग*

*जिनगी के आजा गोरी मजा उड़ाले, नैन लड़ाले*

*खोंच मोंगरा के फूल, तोर बेनी मा झूले झूल*

*मात गेहे बगिया मा फूल रे संगी झुलबो झूलना रे झूल।*

*तोर मया के मारे।* (फिलिम- तोर मया जे मारे, टाइटल सांग)

*मैं होगेंव दीवानी रे।* (फिलिम मया देदे मया लेले)

सोनू निगम जी के ये सब गीत सन 2000 मा आइस, तब छत्तीसगढ़ी संगीत मा एक तूफान आगे रिहिस, सबे कोती इहिच गीत मन सुनाये, ये गीत मनके आजो माँग बरोबर हे।  लोक गायिका पद्म श्री ममता चन्द्राकर जी मन संग सोनू निगम जी मन एलबम अउ फिलिम मा गीत गाये हे।


5,*मोहम्मद अजीज जी*

बॉलीवुड के मशहूर गायक मोहम्मद अजीज जी दूसर नम्बर मा सबले ज्यादा छत्तीसगढ़ी गीत गाये हे। उन मा फिलिम मयारू गंगा(2017), जय जगन्नाथ, मोर धरती मइया के संगे संग एलबम तै मोला जहर देदे, तोला अब्बड़ मया करथों,गाबों अउ गवाबों  मा घलो स्वर दिये हें, कुछ मनभावन गीत प्रस्तुत हे-


*गुइयाँ रे ऐ गुइयाँ, परी कि तैं सोन चिड़िया।* (एलबम गीत)

*तँय मोला जहर देदे।* (दर्द भरे गीत)

*खिलौना समझ के दिल ला तोड़े।* (दर्दीला गीत)

*जिनगी मा आके तैं चल दे रे।*

*चैत कुंवार मा मोर महारानी,महामाया दाई।* (जस गीत)

*मैं आयेंव दुवारी तोर।* (जस गीत)

*तोला जब ले देखे हँव हिरनिया।*

*सुख दुख मा जिनगी बीते।*

*मयारू गंगा।* (फिलिम मयारू गंगा टाइटल सांग)

*कलयुग के नारायण तिहीं जगन्नाथ हो।* (फिलिम- जय जगन्नाथ,2007)

*महाशक्ति सुन मोर विनती, नटखट ये सब तिहीं करे हस।* (फिलिम जय जगन्नाथ)

*महामाया दाई वो मैं*

एखर आलावा अउ कई गीत अजीज साहब मन गाये हे, जे आजो बरोबर मन लगाके पूरा छत्तीसगढ़ मा सुने जाथे।


6, *कुमार सानू जी*

बॉलीवुड के मशहूर गायक कुमार सानू जी मन घलो छत्तीसगढ़ी गीत ला अपन आवाज दे हें, कुछ गीत देखिन-

*मोर मनके मनमोहनी, मोर दिल के तैं जोगनी वो। *

*देखे हँव जबले तोला, मोला प्यार होगे रे।*

*फुलगे मनके फूल, होगे पिरित कुबूल।*

*मन के मन मोहनी, मोर दिल के तैं जोगनी वो।*

*मया करबे का।* (मया करबे का छत्तीसगढ़ी एलबम)

*तै बिलासपुरहिंन अस।*

*तोर संगी मोला बनाले*

*तोला मया होगे न*

*मोला चुम्मा दे दे(मयारू भौजी फिलिम)।*

*बइहा पगला दीवाना गाये गाना।*

*तोर संग जीना तोर संग मरना फिलिम मा घलो कुमार सानू जी मन अपन आवाज दिये हे।*

*खिलगे मन के फूल- प्यार होगे रे*


7, *अलका याग्निक*

*आजा रे निंदिया, चंदा के पलना मा झूला झुलाये* ये छत्तीसगढ़ी लोरी गीत ला अलका जी मन सुमधुर स्वर दे हवे।


8, *साधना सरगम*

*अबड़ तैं गोठियाथस तोर मनके भरम गा, ठुमुक डार के* ये प्रसिद्ध गीत ला साधना जी मन अपन आवाज मा  घलो गाये हे।

*साधना जी मन फिलिम मोर संग चलव रे मा अपन सुमधुर आवाज दिये हे, उंखर गाये गीत कोन इहाँ बाँसुरी बजाथे, बाँसुरी के धुन मा सोये ला जगाथे।* बहुत ही मनभावन हे।

*साधना सरगम जी महान संगीतकार कल्याणसेन जी के निर्देशन मा मयारू भौजी अउ जय महामाया फिलिम मा अपन आवाज देय रिहिस* 

कुछ गीत- *बन रसिया के मारे।*

*ए भौजी मोर मन हा उड़त हे आगास मा।*

*महिमा हे तोर अपार।*

*जा रे पिरोहिल।*

*महामाया सुन ले पुकार।*

*मैया फूल गजरा।*

*सिद्ध हे माई*

*बर तरी खड़े हे बरतिया*


9, *अनुराधा पौडवाल*

अनुराधा जी मन अपन खनकत आवाज मा कतको एलबम *(झर झर नदिया, माँ तारा तारिणी, जान ले पहिचान ले)* मा गीत गाइन। फिलिम मोर संग चलव रे मा घलो अनुराधा जी मन अपन आवाज के जादू बिखेरे हें। कुछ गीत के मुखड़ा प्रस्तुत हे-


*छम छमाछम पैरी बाजे आयेंव सजन के द्वार।*

*झर झर नदिया के पानी, नीम अउ पीपर के छाँव, मोर सजना के गाँव।*

*जरा हलू हलू मया मा पास आना।*

*तारे नारे तारे नाना, तोर मोर एके गाना,संगे जीना संगे मरना*

*जिनगी के दुख हरौ माँ।* (जस गीत)

*लेजा लेजा पतिया लेजा, मया के चिठिया ले जा।*

*कोन रे इहाँ बंसुरी बजात हे/दिल दीवाना गावय गाना* (फिल्म-मोर संग चलव)

*नीम अउ पीपल के छाँव, मोर सजना के गांव*


10, *नितिन मुकेश जी*

तोला अब्बड़ मया करथों एलबम मा अजीज जी के संग नितिन मुकेश जी मन घलो अपन आवाज के जादू बिखेरे हे।  लक्षमण मस्तूरिहा जी के गीत- *तोला अब्बड़ मया करथों रे, तोला अब्बड़ मया करथों* येला नितिन मुकेश जी गाये हे। नितिन मुकेश जी मन छत्तीसगढ़ी भक्ति एलबम  *शबरी के राम* मा अपन आवाज दिन। गीत के बोल *शबरी वो दाई चीख चीख जूठा बोइर ला खवाये सिया राम ला।*

*मस्तूरिहा जी के गीत -तोला अबड़ मया करथों रे, यहू गीत ल नितिन जी मन गाये हे*


11, *सुरेश वाडेकर*

मस्तूरिहा जी के प्रसिद्ध गीत *मोर संग चलव जी* ला वाडेकर जी मन अपन आवाज मा घलो स्वर दिये हे। एखर आलावा छत्तीसगढ़ी फिल्म बनिहार मा *कइसे आवँव तोर दुवारी* गीत ला स्वर दिन। मोर संग चलव फिल्म मा साधना सरगम, सुरेश वाडेकर, अभिजीत, अनुराधा पौडवाल मन लक्ष्मण मस्तूरिहा के लिखे गीत मन ला अल्का चन्द्राकर, मस्तूरिहा अउ दिलीप षडंगी मन संग मिलजुल के गायें हें।


12, *शान जी*

*सजनी हा दिल चुराये हे, मया के गीत सुनाये हे, दिलबर जानी* अइसन मनभावन गीत ला शान जी मन अपन आवाज देके अउ मनमोहक बना दिये हे।


13, *उदित नारायण जी*

बॉलीवुड के मश्हूर सिंगर उदित जी घलो छत्तीसगढ़ी गीत अउ ददरिया ला अपन आवाज  मा गाके अउ मनमोहक कर दे हे।


*बटकी मा बासी अउ चुटकी नून*

*बागे बगीचा दिखेल हरियर*

*चना के दार राजा।*

*लाली चुनरिया तोर लचके कमरिया तोर।*


14, *शंकर महादेवन जी*

स्वच्छता बर शंकर महादेवन जी एक गीत गाये हे,*स्वच्छ बने छत्तीसगढ़, छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया*


15, *विनोद राठौर जी*

विनोद राठौर जी के गाये गीत *ऐ हंसनी, ऐ रागनी, तोला सपनावँव* बहुतेच जादा प्रसिद्ध होइस, आजो सुने मा मन बड़ भावन लगथे। एखर आलावा कल्याण जी के निर्देशन मा मयारू भौजी फिलिम मा *तँय बिलासपुरहिन अउ मैं रायगढ़िया(गीतकार- रामेश्वर वैष्णव), अउ खनके जब चूरी जइसे मनभावन गीत गाये हे।


16, *अभिजीत जी*

सुपरहिट छत्तीसगढ़ी फिलिम *मोर संग चलव रे* मा अभिजीत जी ला सुने जा सकथे।

*दिल दीवाना गावय गाना*(फिल्म- मोर संग चलव रे)


17, *महेंद्र कपूर जी*

महेंद्र कपूर साहब मन घलो छत्तीसगढ़ी मा बड़ अकन मनभावन गीत गाये हें। कपूर साहब मन *कहि देबे सन्देश के आलावा मोर धरती मइया फिलिम मा अपन आवाज के जादू बिखेरे हे।* उंखर कुछ गीत के मुखड़ा-


*ऐ वो नखरा वाली, जान देना वो।* (फिलिम- मोर धरती मइया)

*होरे होरे होरे होरे, कोयली कुहके आमा के डार।* (कहि देबे सन्देश)

*संगी हाथ लमाबो, संगी हाथ बढ़ाबो।* (गीतकार- दुर्गाप्रसाद पारकर, फिल्म- मोर धरती मइया )

*दुर्गा भवानी जग कल्याणी*

             *बालीवुड के अउ कतको सिंगर  मन ला मोर धरती मइया फिलिम मा कोरस करत सुने जा सकथे जेमा- *हेमलता, एस ए कादर, चंदारानी,सतीश,अउ दीपमाला जी मन के नाम प्रमुख हे।*


18, *मन्ना डे साहब*

मशहूर गायक मन्ना डे साहब मन छत्तीसगढ़ के पहली फिलिम कहि देबे सन्देश के टाइटल साँग *(कहि देबे सन्देश, दुनिया हा आघू बढ़गे।)* के आलावा रफी जी ला उही फिलिम मा कोरस मा साथ दे रिहिन।


19, *मीनू पुषोत्तम*

*मीनू पुरषोत्तम जी सुमन कल्याणपुरी जी कस कुछ गीत ला कहि देबे सन्देश फिलिम मा अपन आवाज देय हे।*

*बिहनिया के उगत सुरुज देवता।* (कहि देबे सन्देश)

*सुवा गीत- तरी हरी* (कहि देबे सन्देश)

*होरे होरे होरे, कोयली कुहके।* (कहि देबे सन्देश)


20, *कविता कृष्णमूर्ति जी*

 मोर धरती मइया फिलिम मा कविता जी मन मुख्य प्लेबैक गायिका रिहिन हे। उंखर कुछ गीत प्रस्तुत हे-

*मोर बगिया मा तैं गोंदा असन, ममहावत रबे।*

*ये कजुवा के मन डोले, मादर थाप मा।*

*ए गा बैला गाड़ी वाला, लॉन देना*

*ए मइया वो, तोर तीर आएंव तार लेबे हो।*

*तोर संग जीना तोर संग मरना फिलिम मा घलो कविता जी मन अपन स्वर दिये हें।*

*खिलगे मन के फूल*- कुमार शानू के संग


21, *बाबुल सुप्रियो*- 

*ए हंसिनी, ए रागिनी, तुही ला मैं गाओं,तोला सपनाओं*

*कुछु कुछु होय गोरी मोला,जोन दिन ले देखेंव गोरी तोला-फिल्म गीत*


22, *कैलाश खेर*- फिल्म भूलन काँदा के टाइटल गीत- भूले से जो खुंद गया


अउ कतको अकन बॉलीवुड के मशहूर गायक गायिका मनके सुर साज मा सजे छत्तीसगढ़ी गीत जे समय बनिस वो समय अउ आजो कर्णप्रिय हे, मनभावन हे। छत्तीसगढ़ के गीत संगीत बॉलीवुड के गायक गायिका मन ला खासा प्रभावित करिस, तभे तो उंखर लगाव,झुकाव अतिक अकन दिखिस अउ आघू घलो दिखही। छत्तीसगढ़ी गीत संगीत मा बॉलीवुड के गायक गायिका मनके योगदान ला कभू नइ भुलाये जा सके। लगभग बनेच अकन बॉलीवुड के गायक गायिका मन छत्तीसगढ़ी गीत ला अपन आवाज दिन,फेर छत्तीगढ़िया मन के रग मा छत्तीसगढ़ के लोकल गायक गायिका मनके गीत जादा रचे बसे दिखथे। केदार यादव जी, साधना यादव जी, लक्षमण मस्तूरिहा जी, भैया लाल हेड़ाऊ जी, कविता वासनिक जी, अनुराग ठाकुर जी, पंचराम मिर्झा जी,धुर्वा राम मरकाम जी, लता खापर्डे जी, राकेश तिवारी जी,मेहतर राम साहू जी,सुनील सोनी जी, ममता साहू जी, कुलवंतीन बाई जी, रेखा बाई देवार जी, पद्मश्री तीजन बाई जी, चम्पा निषाद जी,ममता चन्द्राकर जी, गंगाराम शिवारे जी, अलका चन्द्राकर जी, छाया चन्द्राकर जी,  झाड़ूराम देवांगन जी,ऋतु वर्मा जी,बैतल राम साहू जी, महादेव हिरवानी जी, दीपक चन्द्राकर जी,गोरे लाल बर्मन, दिलीप सडंगी जी, दुकालू यादव जी, कुलेश्वर ताम्रकर, भूपेंद्र साहू,देवदास बंजारे, लक्ष्मीनारायण पांडे, नीलकमल वैष्णव,पूनम तिवारी,पंडित विवेक शर्मा, कंचन जोशी, डिमान सेन, सीमा कौशिक, अनुपमा मिश्रा, अनुराग शर्मा, नवलदास मानिकपुरी जी जइसे अनेको लोक गायक मनके स्वर, छत्तीसगढ़ के माटी के महक ला छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् मा बगरावत दिखथे। छत्तीसगढ़ के कतको नवा जुन्ना गायक मन बॉलीवुड के गीत तको गा चुके हे। तभे तो कथे छत्तीगढ़िया सबले बढ़िया।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-राखी*

 *गीत-राखी*


बाँध मोर कलाई मा,राखी वो बहिनी।

तोर मोर मया के, साखी वो बहिनी।


सावन महीना भर नैना बाट तकथे।

पुन्नी हबरथे मोर किस्मत चमकथे।

रेशम के डोरी, मोर पाँखी वो बहिनी।

बाँध मोर कलाई मा राखी बहिनी---।


दाई के आशीष हे, ददा के दुलार हे।

सावन पुन्नी,भाई बहिनी के तिहार हे।

सदा शुभ रही हमर,राशि वो बहिनी।

बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी--।


लामे रही जिनगी भर मया के डोरी।

बाधा बिघन के,  जरा देहूँ होरी।

देखाही कोन तोला,आँखी वो बहिनी।

बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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गीत


न रेशम न धागा न डोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया।।


तोर मोर नत्ता के, इही डोरी साखी।

दुख दरद ले बचाही, तोला मोर राखी।

लाही जिनगी मा सुख के हिलोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया----------


देखे बर तोला तरसत रहिथे नैना।

उड़थे सावन भर मोर मन मैना।।

लेवत रहिबे सुख दुख के शोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया---------


सुरता के संदूक ला मिल दूनो खोलबों।

मया अउ पीरा के दू बोली बोलबों।

बसे रही अन्तस् मा घर खोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया---------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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,,,,भैया मोर राखी(गीत),,,,


नोहे रेशम,न धागा,न डोर भैया।

ये  राखी   मया  हरे  मोर  भैया।


पंछी कस बनही,भैया  ये तोर पाँखी।

सबो दुख ले बँचाही,मोर बांधे राखी।

लाही जिनगी म,खुशी के हिलोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-----------|


सुरुज कस चमकही,तोर माथा के कुमकुम।

सुख रहै जिनगी भर,पाँव ला चुम चुम।

लेवत रहिबे सबर दिन,मोर सोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-----------।


दाई  अउ  ददा के,तँय नाम जगाबे।

मोरो डेहरी म नित,आबे अउ जाबे।

लाहू लोटा म पानी,मया घोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

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परेवना राखी देके आ

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परेवना कइसे जावौं रे,

भइया तीर तँय बता?

गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,

तँय राखी देके आ.............|


दाई-ददा के छँइहा म रहँव त,

बइठाके भइया ल मँझोत में।

बाँधौं राखी कुंकुंम लगाके,

घींव के दीया  के  जोत   में।

मोर   लगगे    बिहाव   अउ,

होगे भइया देस  के।

कइसे दिखथे मोर भइया ह,

आबे  रे   परेवना   देख  के।

सुख के सुघ्घर समाचार कहिबे,

जा भइया के संदेसा ला........|


सावन पुन्नी आगे जोहत होही,

मोर राखी के बाट रे।

धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,

फइलाके दूनो पाँख रे।

चमचम-चमचम चमकत राखी,

भइया ल बड़ भाही रे।

नाँव जगा के ,दाई-ददा के,

बहिनी ल दरस देखाही रे।

जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,

भइया  के  पता...............|


देखही तोला भइया ह परेवना,

बहिनी  के   सुरता  करही  रे।

जे हाथ म भइया के राखी बँधाही,

ते हाथ देस बर लड़ही रे।

थर-थर कापही बइरी मन ह,

गोली के बऊछार ले,

रक्षा करही राखी मोर भइया के,

बइरी अउ जर-बोखार ले।

जनम-जनम ले अम्मर रही रे,

भाई-बहिनी के नता...........।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                 बालको(कोरबा)

                  998144175

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....@@राखी@@...(गीत)


बॉध मोर कलाई म,

राखी वो बहिनी..........|

हे तोर मोर मया के,

ये साखी वो बहिनी......|


ददा के आसीस हे,

दाई के दुलार हे  |

सावन पुन्नी,

भाई-बहिनी के तिहार हे |

बने रेसम के डोरी,

मोर जिनगी के पॉखी वो बहिनी...|

बॉध मोर................................|


रिमझिम सावन म,

मन मोर नाचे  |

बहिनी के मया ले,

गुथाही मोर हाथे  |

बिनती करव भगवान ले,

शुभ रहे तोर रासि वो बहिनी....|

बॉध मोर.............................|


तोर मया के डोरी,

मोर साथ रहे जिनगी भर |

तोर सुख-दुख म लामत,

मोर हाथ रहे जिनगी भर |

किरिया रॉखी हे,

कोन देखाही तोला ऑखी वो बहिनी..|

बॉध मोर ....................................|

                                 जीतेन्द्र वर्मा

                               बाल्को(कोरबा)


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राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


रक्षाबन्धन की ढेरों बधाइयाँ💐💐

कुआँ के मेचका- हरिगीतिका छंद

 कुआँ के मेचका- हरिगीतिका छंद


निकलिस कुँआ ले मेचका, ताना सुनिस जब लोग के।

सोचिस जमाना संग चलहूँ, सुक्ख सुविधा भोग के।।

जग देखहूँ बिरवा तरी, बइठे कुआँ के पार मा।

आइस कटइया पेड़ के, भागिस बचा जी खार मा।।


माते दिखिस मारिक पिटा, बीता अकन भूभाग बर।

थक हार के भागिस लुका, होही बने बन बाग हर।।

बन बाग मा तक चैन नइ, पाइस चिटिक कन मेचका।

होही बने कहि गांव कोती, गीस तज बन मेचका।।


घर गांव के जब हाल देखिस, चाल देखिस लोग के।

गे अकचका जर हर धरे, सब ला शहरिया रोग के।।

सबले बने होही शहर, कहिके शहर के धर डहर।

कूदत चलिस हे मेचका, धूलउ धुँआ लागे जहर।।


आगी लगत गाड़ी रिहिस , ले दे बचाइस जान ला।

आगिस शहर किसनो करत, देखिस शहर के शान ला।

बड़ अटपटा लागिस छटा, घर ऊँच अउ सब नीच हे।

बस्सात नाली हा शहर अउ, घर डहर के बीच हे।।


दरुहा पड़े नाली तरी, गरुवा कुकुर चांटत हवै।

मनखें खुदे अपने नरी बर, डोर मिल आंटत हवै।

देखिस लड़त अपने अपन, मनखें शहर अउ गांव के।

सोचिस खुशी सुख बाहरी, सब हा हवै बस नांव के।।


ये बाहरी दुनिया सुवारथ, मा सने जंजाल हे।

हे सुख कुँआ मा फेर ये, बाहिर जगत हा काल हे।।

बाहिर निकल के कूप ले, पछतात हावै मेचका।

अउ फेर कुँआ मा रहे बर, आत हावै मेचका।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कुकुभ छंद-पोरा जाँता

 पोरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई


कुकुभ छंद-पोरा जाँता


सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।

राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।


भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।

बेटी माई मन हर ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।

हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।

होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।

हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1


मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हर रोवै।

भोला जब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।

तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा में।

सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा में।

पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2


कथे इही दिन द्वापर युग में,पोलासुर उधम मचाये।

मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।

किसन कन्हैया हर तब आके,पोलासुर दानव मारे।

गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।

पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3


दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।

परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।

बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।

पोरा परब तिहार मनावय,नाचयँ गावयँ नर नारी।

खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4


बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी

नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।

पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा में रोटी।

भरे अन्न धन सबके घर में,नइ होवै किस्मत खोटी।

परिया में मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5


सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।

दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।

धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवय संदेशा।

महिनत के फल खच्चित मिलथे,कभू रहै नइ अंदेशा।

लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6


छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)


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पोरा(ताटंक छंद)


बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।

जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।


बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।

नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।


दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।

पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।


कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।

धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।


भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।

हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।


चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।

धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।


पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।

संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।


बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।

पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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आज पोरा हे

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चूरे   हे   ठेठरी-खुरमी,

चूरे   हे   बरा-भजिया।

टिपटिप ले भरे हे तरिया,

छापा  चलत हे नदिया।

नाचत हे,डोली म धान।

होवत हे,खेती के  मान।

बेटी माई घर अमराय बर,

रोटी-पिठा म ,भरे  झोरा हे।

आज पोरा हे,आज पोरा हे।


माड़े  हे माटी के बइला,

माटी के पोरा -  जांता।

अधियागे      किसानी,

जंउहर  जुड़े  हे नाता।

बाजत    हे       घण्टी,

नाचत     हे      बइला।

झन पूछ लइका मनके,

खेलई  -  कूदई    ला।

घरो - घर बेटी के अगोरा हे।

आज पोरा हे,आज पोरा हे।


कहूँ  मेर   फुगड़ी माते हे,

त  कहूँ  मेर   खो-कबड्डी।

कतको अतलंगहा टुरामन,

बइठे  हे   धरे  तास  गड्डी।

रोटी - पिठा ले फुले हे पेट।

नई गेहे  आज  कोनो खेत।

किसानी   के   तिहार पोरा,

जुड़ धरती दाई के कोरा हे।

आज पोरा हे,आज पोरा हे।

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

        बालको(कोरबा)

         9981441795

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बनगे हवै कबीर- सरसी छंद

 बनगे हवै कबीर- सरसी छंद


कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।

घात लगाये कस रहिरहि के,टीपे धरम ल तीर।।


मइल हवै जे अंतस भीतर, ते तन नइ ममहाय।

जस देखे तस दिखथे दुनिया, अँधरौटी जब छाय।।

धरम सिखाथे गूढ़ जिये के, छीच सुमत सत नीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


पंथ राज दल बल समाज के, सब पहिरें हें ताज।

अपन अपन गुरु इष्ट देव ला, पूजैं सरी समाज।।

जनम मरन ला जान सके नइ, ज्ञानी गुणी अमीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


येला वोला गरियाये मा, करियाये अउ भाग।

ये जग ला बस जोड़े रखथे, मीठ बोल अनुराग।।

माँस मंद  बिन मन नइ माड़े, भाय दूध ना खीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


मानवता मनखें मा राहय, जाने जिनगी मोल।

होय करम बढ़िया नित जग मा, कहै शास्त्र मुँह खोल।।

ज्ञान नयन ए धरम जिया ए, करम बनाथे वीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


कबिरा के कथनी करनी मा, रिहिस चिटिक ना भेद।

फेर आज करिया तन उप्पर, हावै बसन सफेद।।

एक आँख मा दिखे कोइला, एक आँख मा हीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


कुकरा आज कबीर बने हे, सुबे शाम दै बांग।

देखावा मा बुड़े रहै नित, पीके गांजा भांग।।

गुण गियान के दरस परख ना, ना अंतस मा पीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


धरम बुरा नइ होय कभू भी, करम लगाथे दाग।

घर बन उँखरो जलबे करथे, जेन लगाथे आग।।

जिया झाँकना चाही खुद के, भेदभाव पट चीर।

कलम धरे नइ आय तहू हा, बनगे हवै कबीर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Thursday, 14 August 2025

अमृतध्वनि छंद

 अमृतध्वनि छंद 


महतारी मन आज तो, रहिथे सुघर उपास।

बेटा बेटी खुश रहय, माँगय वर जी खास।

माँगय वर जी,खास सबो के,उम्मर बाढ़य।

पोती मारय,मुड़ मा विपदा, झन तो माढ़य।

एक ठउर मा,अउ जुरियाके,जम्मो नारी।

महादेव के,पूजा करथे,सब महतारी।।


घर के बाहिर कोड़ के, सगरी ला दय साज।

गिन गिन पानी डार के, करथे पूजा आज।

करथे पूजा,आज नेंग जी,करथे भारी।

लइका मन के,रक्षा बर तो,हे तैयारी।

हूम धूप अउ,फूल पान ला,सुग्घर धरके।

सुमिरन करथे, महतारी मन,जम्मो घरके।।


पतरी महुआ पान के, भाजी के छै जात।

चुरथे घर-घर मा इहाँ, पसहर के अउ भात।

पसहर के अउ,भात संग मा,दूध दही ला।

महतारी मन,खाय थोरकिन,डार मही ला।

गहूँ चना अउ,महुआ के सन,लाई-लुतरी।

सुघर चघावै,नरियर काँशी,दोना पतरी।।


विजेन्द्र वर्मा

नगरगाँव(धरसीवाँ)

Wednesday, 13 August 2025

घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया

 घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया


अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,

भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।

बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,

जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।

बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,

भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।

ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,

भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।


भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,

भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।

मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,

कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।

कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,

जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।

देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,

अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।


काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,

पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।

कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,

नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।

घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,

रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।

हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,

देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।


गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,

लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।

बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,

बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।

देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,

भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।

आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,

रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।


फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,

रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।

करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,

कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।

पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,

सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।

बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,

माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।


बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,

तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।

भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,

हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।

राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,

अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।

भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,

पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको, कोरबा

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भोले बाबा-सार छंद


डोल डोल के डारा पाना, भोला के गुण गाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


सावन महिना भर भगतन मन, नहा खोर बिहना ले।

शिव मंदिर मा पान फूल धर, दिखथें डेरा डाले।।

चाँउर धतुरा चना दार सँग, नरियर दुबी चढ़ाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


बम बम बोलत सबे चढ़ायें, लोटा लोटा पानी।

मन के भाव भजन ला देखत, फल देवय शिव दानी।।

काँवरिया मन काँवर बोहे, बम बम रटन लगाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें।


चारों मूड़ा भक्ति भाव के ,बोहत रहिथे धारा।

शिव भोला के जयकारा मा, गुँजे गाँव घर पारा।।

रहि उपास लइका सियान सब, भोला के हो जाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


खैरझिटिया

Friday, 1 August 2025

मनभावन कोरबा-रूपमाला छंद

 मनभावन कोरबा-रूपमाला छंद


कोइला हा कोरबा के आय करिया सोन।

नीर हा हसदेव के जिनगी हरे सिरतोन।।

हे कटाकट बन बगीचा जानवर अउ जीव।

अर्थबेवस्था हमर छत्तीसगढ़ के नीव।।


माँ भवानी सर्वमँगला के हरे वरदान।

कोसगाई मातु मड़वा देय धन अउ धान।।

टारथे चैतुरगढ़िन दुख आपदा डर रोग।

एल्युमिनियम संग बिजली के बड़े उद्योग।।


बाँध बांगो हा बँधाये हे गजब के ऊँच।

बेंदरा भलवा कहे पथ छोड़ दुरिहा घूँच।।

साँप हाथी संग मा औषधि हवे भरमार।

मन लुभाये ऊँच झरना अउ नदी के धार।।


वास वनवासी करें संस्कृति अपन पोटार।

हाथ मा धरके धनुष खोजे बहेड़ा चार।।

मीठ बोली कोरवा गूँजय गली बन खोर।

आय बेपारी घलो सुन कोरबा के शोर।।


आय मनखे कोरबा मा सुन  इहाँ के नाम।

देख के बन बाग झरना पाय सुख आराम।।

कारखाना झाड़ झरना कोइला के खान।

देश दुनिया मा चले बड़ कोरबा के नाम।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

रंग रंग के गहना गुठिया-लावणी छंद

 रंग रंग के गहना गुठिया-लावणी छंद


रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।

खुले रूप सजधज बड़ भारी, सँहिरायें मनखें सबझन।।


सूँता सुर्रा सुँतिया सँकरी, साँटी सिंगी अउ हँसली।

चैन चुड़ी सोना चांदी के, आये असली अउ नकली।।

कड़ा कोतरी करण फूल फर, ककनी कटहर अउ करधन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


बिधू बुलाक बनुरिया बहुटा, बिछिया बाली अउ बारी।

बेनिफूल बघनक्खा बिछुवा, माला मुँदरी मलदारी।।

चुटकी चुरवा औरीदाना, पटा पाँख पटिया पैजन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


तोड़ा तरकी टिकली फुँदरी, रुपिया लगथे बड़ अच्छा।

पटा लवंग फूल नथ लुरकी, झुमका ऐंठी अउ लच्छा।।

ढार नांगमोरी नकबेसर, पैरी बाजे छन छन छन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


कटवा कौड़ी फुल्ली पँहुची, खूँटी खिनवा गहुँदाना।

हार हमेल किलिप हर्रइयाँ, माथामोती पिन नाना।।

सोना चाँदी मूंगा मोती, गहना गुठिया आये धन।

रंग रंग के गहना गुठिया, पहिरें बेटी माई मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सरकारी दारू-सरसी छंद

 सरकारी दारू-सरसी छंद


गांव गांव मा दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।

मंद पियइया बाढ़त हावै, बाढ़त हावै रार।।


कोष भरे बर दारू बेंचय, शासन देखव आज।

नशा नाश ए कहि चिल्लावै, आय घलो नइ लाज।।

पीयैं बेंच भांज दरुहा मन, घर बन खेती खार।

गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।


दारू गांजा के चक्कर मा, होवत हवै बिगाड़।

मंद पियइया मनखें मन हा, लाहो लेवैं ठाड़।।

कहाँ सुधर पावत हे कोई, खावँय चाहे मार।

गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।


नशा करौ झन कहिके शासन, पीटत रहिथे ढोल।

मंद मिलत हावै सरकारी,  खुल जावत हे पोल।।

कथनी करनी मा अंतर हे, काय कहौं मुँह फार।

गांव गांव में दारू भट्ठी, खोलत हे सरकार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को नगर कोरबा(छग)

बइरी पइरी(गीत)😥😥

 😥😥बइरी पइरी(गीत)😥😥


कइसे बजथस रे पइरी बता।

मोर  पिया  के,मोर पिया के,

अब  नइ मिले  पता......।।


पहिली सुन,छुनछुन तोर,

दँउड़त    आय     पिया।

अब   वोला    देखे   बर,

तरसत  हे  हाय   जिया।

ओतकेच   घुँघरू  हे,

ओतकेच के साज हे।

फेर काबर बइरी तोर,

बदले    आवाज   हे।

फरिहर  मोर मया ल,

झन तैं मता..........।।


का करहूँ राख अब,

पाँव    मा    तोला।

धनी मोर नइ दिखे,

संसो   होगे  मोला।

पहिरे पहिरे तोला,

अब पाँव लगे भारी।

पिया के बिन कते,

सिंगार  करे  नारी।

धनी  के   रहत  ले,

तोर मोर हे नता..।।


देख नइ  सकेस,

मोर सुख पइरी।

बँधे बँधे पाँव म,

होगेस तैं बइरी।

पिया  के  मन  ला,

काबर नइ भावस।

मया  के गीत अब,

काबर नइ गावस।

मैं  दुखयारी,

मोला झन सता--।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

मर लगगे फोटू विडियो-कुकुभ छंद

 मर लगगे फोटू विडियो-कुकुभ छंद


कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।

सबे चीज के फोटू विडियो, सदा मान थोरे पाही।।


सेवा सत सुख गुण गियान ला, देखाये बर नइ लागे।

तोपे ढाँके के उघरत हे, उघरे के हा तोपागे।।

हवै मनुष के आय जातरी, धारेच धार बोहाही।

कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।।


बर बिहाव छट्ठी बरही के, समझ आय विडियो फोटू।

मरनी हरनी जलत लाश ला, नइ छोड़त हावय मोटू।।

रील बनाये के चक्कर मा, नवा जमाना बोहाही।

कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।।


फोटू विडियो मा हे नत्ता, असल बइठगे हे भट्ठा।

मरगे हावय मान मनुष के, भक्ति भाव होगे ठट्ठा।।

आँखी मूँदे बर लागत हे, अउ का काली देखाही।

कई काम ला चुपेचाप रहि, मनखे ला करना चाही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)