Wednesday, 13 August 2025

घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया

 घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया


अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,

भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।

बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,

जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।

बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,

भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।

ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,

भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।


भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,

भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।

मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,

कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।

कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,

जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।

देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,

अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।


काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,

पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।

कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,

नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।

घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,

रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।

हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,

देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।


गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,

लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।

बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,

बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।

देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,

भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।

आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,

रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।


फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,

रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।

करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,

कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।

पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,

सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।

बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,

माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।


बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,

तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।

भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,

हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।

राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,

अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।

भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,

पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको, कोरबा

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भोले बाबा-सार छंद


डोल डोल के डारा पाना, भोला के गुण गाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


सावन महिना भर भगतन मन, नहा खोर बिहना ले।

शिव मंदिर मा पान फूल धर, दिखथें डेरा डाले।।

चाँउर धतुरा चना दार सँग, नरियर दुबी चढ़ाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


बम बम बोलत सबे चढ़ायें, लोटा लोटा पानी।

मन के भाव भजन ला देखत, फल देवय शिव दानी।।

काँवरिया मन काँवर बोहे, बम बम रटन लगाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें।


चारों मूड़ा भक्ति भाव के ,बोहत रहिथे धारा।

शिव भोला के जयकारा मा, गुँजे गाँव घर पारा।।

रहि उपास लइका सियान सब, भोला के हो जाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


खैरझिटिया

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