मोर अपन मन
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हुदरे,कोचके,ककोने,काटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
ताग - ताग ल, बाँटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
कोन जनी कब टाँग दिही,मिंयार म?
नरी बर डोरी, नापे म लगे हे,
मोर अपन मन।
पइसा हे तभो डर।
पइसा नइ हे तभो डर।
बहिरी के मन टंगिया टेंत हे,
त घर के मन घोरत हे जहर।
फोर - फोर ल खाके,
पियावत हे ,झोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,.......।
चूना कस चर देत हे,पता नइ लगय।
घूना कस दर देत हे,पता नइ लगय।
काखर उप्पर बिश्वास करबे?
जठा के कथरी,
खोंचका कर देत हे,पता नइ लगे।
सुताके काँटा के दिसना म,
भाग गे मोला छोड़, अपन मन।
हुदरे,ककोने,कोचके,..............।
मोर - मोर कहिके, लगे रेहेंव जिनगी भर।
समे के काँटा म, चघे रेहेंव जिनगी भर।
कोन जन काखर बर टोरेंव,जांगर रात - दिन?
फोकटे-फोकट पखना म,दबे रहेंव जिनगी भर।
घिल्लत रहि गेंव बंधाये,मोह माया के गेरवा म।
अब बाँध के घिरलात हे, डोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,..............................।
भीड़ म भाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
दाई ल दाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
मिलेल लगिस फूल- मितान कस घेरी - बेरी।
रेंग पाई-पाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
फेर अपन बनाके घलो छलत हे,
पाप करत हे , घोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने ,.............................।
बिस्व के बात होइस,
त अपन देस कहिदेस,
अउ देस के बात म,
अपन राज।
राज में गाँव कहिदेस ,
अउ गाँव म समाज।
स्वारथ म अइसन गिरिस मनखे,
अपन म पहुँचगे आज।
फेर अपन घलो तपन लगे,
त गोहराये बिधाता ल,जोड़ तन मन।
हुदरे ,कोचके,ककोने ,काटे म लगे हे...।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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हुदरे,कोचके,ककोने,काटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
ताग - ताग ल, बाँटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
कोन जनी कब टाँग दिही,मिंयार म?
नरी बर डोरी, नापे म लगे हे,
मोर अपन मन।
पइसा हे तभो डर।
पइसा नइ हे तभो डर।
बहिरी के मन टंगिया टेंत हे,
त घर के मन घोरत हे जहर।
फोर - फोर ल खाके,
पियावत हे ,झोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,.......।
चूना कस चर देत हे,पता नइ लगय।
घूना कस दर देत हे,पता नइ लगय।
काखर उप्पर बिश्वास करबे?
जठा के कथरी,
खोंचका कर देत हे,पता नइ लगे।
सुताके काँटा के दिसना म,
भाग गे मोला छोड़, अपन मन।
हुदरे,ककोने,कोचके,..............।
मोर - मोर कहिके, लगे रेहेंव जिनगी भर।
समे के काँटा म, चघे रेहेंव जिनगी भर।
कोन जन काखर बर टोरेंव,जांगर रात - दिन?
फोकटे-फोकट पखना म,दबे रहेंव जिनगी भर।
घिल्लत रहि गेंव बंधाये,मोह माया के गेरवा म।
अब बाँध के घिरलात हे, डोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,..............................।
भीड़ म भाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
दाई ल दाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
मिलेल लगिस फूल- मितान कस घेरी - बेरी।
रेंग पाई-पाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
फेर अपन बनाके घलो छलत हे,
पाप करत हे , घोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने ,.............................।
बिस्व के बात होइस,
त अपन देस कहिदेस,
अउ देस के बात म,
अपन राज।
राज में गाँव कहिदेस ,
अउ गाँव म समाज।
स्वारथ म अइसन गिरिस मनखे,
अपन म पहुँचगे आज।
फेर अपन घलो तपन लगे,
त गोहराये बिधाता ल,जोड़ तन मन।
हुदरे ,कोचके,ककोने ,काटे म लगे हे...।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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