बरसा घरी तरिया-लावणी छंद
पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।
लात तान के जीव ताल के, पानी भीतर सोगे हे।।
छिनछिन बाढ़य घाट घठौदा, डूबत हावय पचरी जी।
झिमिर झिमिर जल धार झरत हे, नाचै मेढ़क मछरी जी।
गावत छोटे बड़े मेचका, कूदा मारे पानी मा।
हाथ गोड़ लहरावै कछुवा, बरखा के अगवानी मा।
सबे जीव खुश नाचय गावय, डर दुख संसो खोगे हे।
पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।
ढेर मरत नइ हवै ढोंड़िहा, सरपट सरपट भागत हे।
लद्दी भीतर बाम्बी मोंगर, सूतत नइहे जागत हे।
बिहना ले मुँधियारी होगे, भइसा भैइसी बूड़े हे।
लइका कस चढ़ चढ़ कूदे बर, मेढ़क मछरी जूड़े हे।
डड़ई डुडुवा रोहू कतला, गरमी भर दुख भोगे हे।
पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।
पाँखी माँगत हावै पखना, सरलग पानी देख बढ़त।
घूरौं झन कहि डर के मारे, हावय मंतर पार पढ़त।
बने हवै बर पाना डोंगा, सब ला पास बुलावत हे।
मनमाड़े खुश होके लहरा, संझा बिहना गावत हे।
लहू चढ़ाये बर लागत हे, धरे जोंक ला रोगे हे।
पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।
हरियर हरियर पार दिखत हे, भरे लबालब तरिया हे।
ताल कभू नइ पूछे पाछे, कोन गोरिया करिया हे।
तिरिथ बरोबर तरिया लागे, तँउरे तर जावै चोला।
मुचुर मुचुर मुस्कावत हावै, नन्दी सँग शंकर भोला।
जीव जरी का कमल कोकमा, सबे मया मा मो गे हे।
पानी गरमी घरी रिहिस कम, अब टिपटिप ले होगे हे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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