चौमास मा बिजुरी के डर-हरिगीतिका छंद
पानी गिरे चौमास मा, बादर करे गड़गड़ गजब।
जिवरा डरे सुनके अजब, बिजुरी गिरे कड़कड़ गजब।
छाये घटा घनघोर अउ, टकराय घन आगास मा।
बिजुरी गिरे के डर रथे, चारो डहर चौमास मा।।
का जानवर अउ का मनुष, सब बर बिजुरिया काल हे।
घर बन घलो जाथे उजड़, बिजुरी बिकट जंजाल हे।।
गिरही कते कोती बिजुरिया, ये समझ मा आय ना।
फोकट मरे झन पेड़ पउधा ना मनुष गरु गाय ना।।
खींचे बिजुरिया ला अपन कोती सुचालक चीज हर।
रहिथे तड़ित चालक जिहाँ तौने सुरक्षित गाँव घर।।
यमराज बनके गिर जथे, अउ प्राण ला लेथे झटक।
पानी गिरत रहिथे गजब ता, बाग बन मा झन भटक।।
बादर गजब गर्जन करे तब, टेप टीवी बंद रख।
नित होश मा रहि काम कर, मुख मा कहानी छंद रख।।
बाहिर हवस ता बैठ उखड़ू, मूंद के मुँह कान ला।
रख जानकारी सावधानी अउ बचाले जान ला।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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