गुरु-कुंडलियाँ
होवै गुरुवर के कृपा, बाढ़ै तब गुण ज्ञान।
चेला के चरचा चले, पावै यस जस मान।।
पावै यस जस मान,गुणी अउ ज्ञानी बनके।
पा गुरु के आशीष,चलै नित चेला तनके।।
देख जगत इतिहास, बिना गुरु ज्ञानी रोवै।
गुरु हे जेखर तीर, ओखरे यस जस होवै।।
दुरगुन ला दुरिहा करे, मार ज्ञान के तीर।
बड़े कहाए देव ले, गुरु ए गंगा नीर।।
गुरु ए गंगा नीर, शरण आये ला तारे।
अँधियारी दुरिहाय, ज्ञान के जोती बारे।।
बने ठिहा के नेंव, सबर दिन छेड़े सत धुन।
जे घट गुरु के वास, तिहाँ ले भागे दुरगुन।।
गुरु के गुण अउ ज्ञान ले, खुलै शिष्य के भाग।
जगा शिष्य ला नींद ले, धोय चरित के दाग।।
धोय चरित के दाग, हाथ चेला के धरके।
चेला होय सजोर, सहारा पा गुरुवर के।।
हाँकिस जीवन डोर, कृष्ण बल पार्थ पुरु के।
महिमा अपरंपार, जगत मा हावै गुरु के।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
घर की नाली जाम है, और कोसी की बात कर रहे हो।
चाटुकारिता में जुबान है और सरफ़रोशी की बात कर रहे हो।
बाप ही कातिल है, जमाने का, यह जानते हो फिर भी,
दोषी में लिस्ट में पड़ोसी की बात कर रहे हो।।
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