Monday, 14 July 2025

आगे का मानसून(गीत)

 आगे का मानसून(गीत)  


बुलके नइहें मई घलो हा, लागे नइहें जून।

रझरझ रझरझ बरसे पानी, आगे का मानसून।।


नवतप्पा मा चप्पा चप्पा, माते हावय गैरी।

टुहूँ देखाये कस लागत हे, ये बादर बन बैरी।।

कोई बतावव करहूँ बाँवत, खाके बासी नून।।

रझरझ रझरझ बरसे पानी, आगे का मानसून।।


होरी हरिया संसो मा हें, नाँगर धरै कि पेरा।

घर अउ खेत के काम बचे हे, काँपे आमा केरा।।

उमड़त घुमड़त देख बदरा ला, अँउटत हावय खून।

रझरझ रझरझ बरसे पानी, आगे का मानसून।।


साँप सुते नइ हावय मन भर, बतर किरी हे बौना।

कांदी कुल्थी नार लमेरा, जागे तुलसी दौना।।

हरियर होवत हवै धरा, पुरवा छेड़य धून।

रझरझ रझरझ बरसे पानी, आगे का मानसून।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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