जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के छप्पय छंद
1,खुदखुशी
विनती हे कर जोर,गला झन फंदा डारव।
जिनगी हे अनमोल,हँसी अउ खुशी गुजारव।
जाना हे यम द्वार,एक दिन सब्बो झन ला।
जीवन अपन सँवार,रखव ये जग मा तन ला।
जीना हे दिन चार गा,थोरिक सोंच बिचार गा।
आखिर तो जाना हवै,अलहन खड़े हजार गा।
2,सागर तीर
बइठे सागर तीर,मजा लेवव लहरा के।
फोकट करौ न नाप,रेत पानी दहरा के।
कुदरत के ये देन,पार पाना मुश्किल हे।
इहाँ ठिहा घर ठौर,असन कतको ठन बिल हे।
सागर जब शांत हे, तब तक तट मा खेल लौ।
करनी झन बिरथा करौ,दया मया नित मेल लौ।
3,पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण बँचाव,उजारौ झन बिरवा बन।
पुरवा पानी साफ,रहै ठाँनव ये सब झन।
गलत कभू झन होय,भूल के सपना मा जी।
होही घर बन राख,लगाहू जब जब आगी।
करौ जतन जुरमिल सबो,होही तब उद्धार जी।
पुरवा पानी बन धरा,जिनगी के हे सार जी।
1,खुदखुशी
विनती हे कर जोर,गला झन फंदा डारव।
जिनगी हे अनमोल,हँसी अउ खुशी गुजारव।
जाना हे यम द्वार,एक दिन सब्बो झन ला।
जीवन अपन सँवार,रखव ये जग मा तन ला।
जीना हे दिन चार गा,थोरिक सोंच बिचार गा।
आखिर तो जाना हवै,अलहन खड़े हजार गा।
2,सागर तीर
बइठे सागर तीर,मजा लेवव लहरा के।
फोकट करौ न नाप,रेत पानी दहरा के।
कुदरत के ये देन,पार पाना मुश्किल हे।
इहाँ ठिहा घर ठौर,असन कतको ठन बिल हे।
सागर जब शांत हे, तब तक तट मा खेल लौ।
करनी झन बिरथा करौ,दया मया नित मेल लौ।
3,पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण बँचाव,उजारौ झन बिरवा बन।
पुरवा पानी साफ,रहै ठाँनव ये सब झन।
गलत कभू झन होय,भूल के सपना मा जी।
होही घर बन राख,लगाहू जब जब आगी।
करौ जतन जुरमिल सबो,होही तब उद्धार जी।
पुरवा पानी बन धरा,जिनगी के हे सार जी।
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