Thursday 4 October 2018

दाई(शंकर छँद)

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के शंकर छंद
(महतारी)

महतारी कोरा मा लइका,खेल खेले नाँच।
माँ के राहत ले लइका ला,आय कुछु नइ आँच।
दाई दाई काहत लइका,दूध पीये हाँस।
महतारी हा लइका मनके,हरे सच मा साँस।1।

करिया टीका माथ गाल मा,कमर करिया डोर।
पैजन चूड़ा खनखन खनके,सुनाये घर खोर।
लइका के किलकारी गूँजै,रोज बिहना साँझ।
महतारी के लोरी सँग मा,बजै बाजा झाँझ।2।

धरे रथे लइका ला दाई,बाँह मा पोटार।
अबड़ मया महतारी के हे,कोन पाही पार।
बिन दाई के लइका के गा,दुक्ख जाने कोन।
दाई हे तब लइका मनबर,हवे सुख सिरतोन।3।

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