Monday 8 October 2018

कज्जल छंद(देवारी)

कज्जल छंद
मानत हे सब झन तिहार।
घर कुरिया सब हे तियार।
उज्जर उज्जर घर दुवार।
महल घलो नइ पाय पार।

बोहावय जी मया धार।
लामे हावय सुमत नार।
बखरी बारी खेत खार।
नाचे  घुरवा कुँवा पार।

चमचम  चमके सबे तीर।
बने  घरो  घर फरा खीर।
महके  होयव  मन अधीर।
का राजा अउ का फकीर।

झड़के भजिया बरा छान।
नाचे लइका अउ सियान।
सुनके  दोहा  सुवा गान।
भरे अधर हे ग मुस्कान।

देवारी   हे    परब   आय।
हाँस हाँस  के सब मनाय।
सबके मन मा खुसी छाय।
दया  मया  के सुर लमाय।

रिगबिग  दीया  के अँजोर।
का घर अउ का गली खोर।
परले पँउरी हाथ जोर।
भाग बनाही दाइ तोर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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