Wednesday 17 October 2018

किसनहा आशिक


📝किसन्हा आसिक📝
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.....माटी ले जुंड़बोन.....
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नखरा नवा जमाना के,
मनखे ल चुरोना कस कांचही |
माटी ले जुंड़बोन  मितान,
तभे जिवरा  बांचही |
फिरिज टीभी कम्पूटर सस्तात हे,
मंहगात हे चांऊर दार |
सपना म घलो सपनाय नही खेती,
बेंचात हे खेतखार |
उद्धोग ढॉबा लाज बनत हे,
टेकत हे महल अटारी|
स्वारथ म रौंदाय भूंईया,
नईहे कोनो संगवारी |
पेट म मुसवा कुदही,
त कोन भला नांचही........ |
मांटी ले जुंड़बोन मितान,
तभे जिवरा बांचही |
खेती आज बेटी होगे,
भात नईहे कोनो |
चाहे देखावा कतरो बखाने,
फेर अपनात नईहे कोनो |
करजा म किसान ,
कलहर-कलहर के अधमरहा होगे |
मेहनत भर ओखर तीर ,
ब्यपारी तीर थरहा होगे |
भूख मरही किरसी भूंईया भारत,
म बिदेसिया घलो हांसही.......|
मांटी ले जुंड़बोन मितान,
तभे जिवरा बांचही  |
तंहू हस नंवकरी म,
मंहू हंव नंवकरी म,
पईसा हे ईफरात |
फेर दुच्छा हे हंड़िया,
दुच्छा हे परात |
कल कारखाना अंखमुंदा लगात  हे |
दार-चांउर छोंड़,आनी-बानी के चीज बनात हे|
हाय पईसा-हाय पईसा होगे,
का दुच्छा पेंट पईसा ल चांटही....?
मांटी ले जुंड़बोन मितान,
तभे जिवरा बांचही |
           
              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
                बाल्को(कोरबा

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